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दिल्ली से लखनऊ तक बिछी छत्तीसगढ़ की चुनावी बिसात

दिल्ली और लखनऊ के नेताओं का भी छत्तीसगढ़ में आना-जाना लगातार बना हुआ है। तीनों दलों का एक मकसद है, भाजपा को सरकार बनाने से रोकना।

By Vikas JangraEdited By: Published: Sun, 22 Jul 2018 10:45 PM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 10:45 PM (IST)
दिल्ली से लखनऊ तक बिछी छत्तीसगढ़ की चुनावी बिसात
दिल्ली से लखनऊ तक बिछी छत्तीसगढ़ की चुनावी बिसात

रायपुर [अनुज सक्सेना]। छत्तीसगढ़ की चुनावी बिसात दिल्ली से लखनऊ तक बिछ गई है। राजनीतिक दल केवल इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव नहीं, अगले साल के लोकसभा चुनाव को लेकर भी रणनीति बनाने में जुट गए हैं।

जहां, कांग्रेस नेताओं का लगातार दिल्ली दौरा हो रहा है, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं को लखनऊ से बुलावा आ रहा है। दिल्ली और लखनऊ के नेताओं का भी छत्तीसगढ़ में आना-जाना लगातार बना हुआ है। तीनों दलों का एक मकसद है, भाजपा को सरकार बनाने से रोकना।

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जिन दलों का मुख्यालय उप्र में है, वे अब दूसरे राज्यों में न केवल अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि सत्ता का भी हिस्सा बनने की चाह रख रहे हैं। पहली बार बसपा और सपा की छत्तीसगढ़ में इतनी सक्रियता देखने को मिली रही है। इसका कारण राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस, बसपा और सपा के बीच बदला राजनीतिक परिदृश्य है।

कर्नाटक चुनाव में भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए जिस तरह से विपक्षी दल एक छतरी के नीचे आए, अब उसकी धुंधली तस्वीर दूसरे राज्यों में भी दिखने लगी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी बसपा के साथ गठबंधन का आधार तलाशने में लगे हैं। प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और नेता-प्रतिपक्ष को लगातार दिल्ली बुलाकर चुनावी तैयारी की समीक्षा तो हो ही रही है, बसपा के साथ गठबंधन के नफा-नुकसान को समझने की कोशिश भी जारी है। इधर, बसपा सुप्रीमो मायावती भी कांग्रेस के साथ गठबंधन में कोई रोड़ा नहीं चाहती हैं। इस कारण पिछले दिनों उन्होंने एक पदाधिकारी को सारे पदों से हटा दिया, क्योंकि उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ टिप्पणी कर दी थी। कांग्रेस और बसपा के बीच बढ़ती नजदीकी ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की बैचेनी बढ़ा दी है।

आधार तैयार करने में जुटी सपा
अभी तक छत्तीसगढ़ में एक भी सीट पर सपा का प्रभाव देखने को नहीं मिला है, लेकिन इस बार सपा ने जी-जान लगा दी है। अखिलेश के तीन करीबी नेता हर विधानसभा सीटों पर न केवल संगठन को मजबूत करने में लगे हैं, बल्कि पूरी 90 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का भी दावा कर रहे हैं। सपा मैदान में खुद को बसपा के बराबर दिखाने की कोशिश कर रही है। आगे की रणनीति बनाने के लिए 28 जुलाई को राष्ट्रीय कार्यसमिति की लखनऊ में बैठक बुलाई गई है, जिसमें प्रदेश अध्यक्षों को भी बुलाया गया है। प्रदेश अध्यक्ष तनवीर अहमद का कहना है कि बैठक में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव को लेकर भी चर्चा होगी।

तीनों दलों के सुप्रीमो खुद कर रहे मॉनीटरिंग
कांग्रेस, बसपा और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष छत्तीसगढ़ की सीधी मॉनीटरिंग कर रहे हैं। राहुल गांधी की विशेष टीम आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में लगी है। तीन में से एक प्रदेश प्रभारी को भी बदल दिया। मायावती ने चार नेताओं को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया है। लालजी वर्मा, एमएल भारती, भीम राजभर और अजय साहू पार्टी की जमीन और गठबंधन की संभावना को समझने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे ही अखिलेश यादव ने भी उप्र के तीन नेता तिलक यादव, राजपाल कश्यप, सुनील सिंह साजन को प्रभारी बनाकर भेजा है, जो सीधे उन्हें रिपोर्ट दे रहे हैं।


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