Move to Jagran APP

कोरोना वायरस के कहर में सियासी उबाल वाले बड़े-बड़े मुददे चर्चाओं से हुए गायब

आंधी-तूफानों में भी न ठहरने वाली राजनीति को कोरोना वायरस के कहर ने पूरी तरह लॉकडाउन की स्थिति में ला खड़ा किया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 26 Mar 2020 05:39 PM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2020 11:54 AM (IST)
कोरोना वायरस के कहर में सियासी उबाल वाले बड़े-बड़े मुददे चर्चाओं से हुए गायब
कोरोना वायरस के कहर में सियासी उबाल वाले बड़े-बड़े मुददे चर्चाओं से हुए गायब

 नई दिल्ली, संजय मिश्र। आंधी-तूफानों में भी न ठहरने वाली राजनीति को कोरोना वायरस के कहर ने पूरी तरह लॉकडाउन की स्थिति में ला खड़ा किया है। इस महामारी का यह खौफ ही है कि अभी हफ्ते भर पहले तक देश की सियासत को गरमाते रहे बड़े-बड़े मुददे चर्चाओं तक से गायब हो गए हैं। चाहे नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी का मसला हो एनपीआर का विवाद या फिर सियासी पाला बदलने से जुडा हार्स ट्रेडिंग के आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर सब कुछ कोरोना के कहर में कैद हो गया है। इन मुददों को लेकर राजनीतिक पारा आसमान तक पहुंचाने वाली पार्टियों के सियासी जुबान पर भी संपूर्ण लॉकडाउनन का असर साफ दिख रहा है।

loksabha election banner

आपातकाल में भी राजनीतिक गतिविधियों पर न था ऐसा लॉकडाउन

पुराने राजनीतिक धुरंधरों की मानें तो राजनीति की गति पर ऐसा गंभीर ब्रेक तो शायद आपातकाल के दौर में भी नहीं था क्योंकि तब विपक्षी पार्टियों के नेता गुपचुप अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहते थे। समाजवादी पृष्ठाभूमि के दो पुराने नेताओं ने अनौपचारिक चर्चा में कहा कि राजनतिक बंदी का ऐसा दौर तो उनलोगों ने कभी नहीं देखा जैसा कोरोना वायरस के कहर से दिखने लगा है। इस महामारी का खौफ ही ऐसा है कि मानव इतिहास के अब तक के सबसे बडे 21 दिन के लॉकडाउन में राजनीतिक पार्टियां अपनी मौजूदा सियासत की मुख्य धुरी बने मुद्दे को भी फिलहाल भूलती दिख रही हैं। कांग्रेस समेत विपक्ष की कई पार्टियां बीते तीन-चार महीने से नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी व एनपीआर को लेकर एनडीए सरकार से बडी सियासी जंग लड़ रही थीं। मगर कोरोना संकट में ये मुददे अब चर्चा से भी बाहर हो गए हैं। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानि एनपीआर को सरकार ने खुद ही बुधवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा कर दी।'

शाहीन बाग के प्रदर्शन को हटाने का वामपंथी दलों के अलावा किसी ने नहीं किया विरोध

कोरोना संकट के कारण राजनीतिक लॉकडाउन का असर इसी से समझा जा सकता है कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ सबसे बड़े विरोध का प्रतीक बन चुके शाहीनबाग के 100 दिनों तक चले विरोध-प्रदर्शन को लॉकडाउन की घोषणा के बाद हटाया गया तो इसकी मुखालफत का कोई स्वर सुनाई नहीं दिया। वामपंथी दलों के अलावा विपक्षी खेमे की किसी पार्टी की ओर से शाहीनबाग का धरना खत्म करने का विरोध सामने नहीं आया।

कोरोना के कारण राज्‍यसभा चुनाव हुआ स्‍थगित

कोरोना के चलते राज्यसभा की कुछ सीटों का चुनाव स्थागित हुआ तो विधायकों की खरीद-फरोख्त और तोड़-फोड़ को लेकर 15 दिनों से अधिक से गरम रहा यह मुददा अचानक ठंढे बस्ते में दिखाई दे रहा है। हालांकि कोरोना के कहर से राजनीति थमे उससे पहले ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिर गई और भाजपा के शिवराज सिंह चौहान ने आनन-फानन में लॉकडाउन से चौबीस घंटे पहले शपथ ले ली। मगर शिवराज का कैबिनेट कब बनेगा और कौन लोग मंत्री बनेंगे इसकी न फिलहाल कोई चर्चा है न लोगों की दिलचस्पी। यहां तक की सरकार गिराने वाले कांग्रेस के 22 पूर्व विधायकों को इसके लिए किस तरह का सियासी इनाम मिलेगा इसका भी जिक्र नहीं हो रहा। पांच विधायकों के इस्तीफा देने के बाद टूट के डर से जयपुर में रखे गए गुजरात के कांग्रेस विधायक भी लॉकडाउन से ठीक पहले अपने सूबे लौट गए।

पार्टियों की सामान्‍य गतिविधयों पर भी लगा प्रतिबंध

कोरोना ने सियासी मुददों पर ही लॉकडाउन नहीं लगाया है बल्कि पार्टियों की सामान्य गतिविधियां भी ठप कर दी है। संसद सत्र जहां अचानक स्थागित कर दिया गया वहीं अमूमन सत्र के आखिर में सहयोगी दलों के नेताओं व सांसदों के लिए होने वाला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भोज भी इस बार नहीं हुआ। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी घटक दलों व पार्टी सांसदों के लिए आयोजित किए जाने वाले अपने भोज का ख्याल ही छोड़ दिया। इतना ही नहीं कांग्रेस को तो अपने सदस्यता अभियान की गति को भी कोरोना के चलते ब्रेक देना पड़ गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.