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नए सूरज के उदय के साथ राज्य में बदल जाएंगे राजनीतिक-प्रशासनिक तौर-तरीके

जम्मू-कश्मीर में विधानमंडल के दो सदन हैं विधानसभा और विधान परिषद। लेकिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद नहीं होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 31 Oct 2019 09:24 AM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2019 09:44 AM (IST)
नए सूरज के उदय के साथ राज्य में बदल जाएंगे राजनीतिक-प्रशासनिक तौर-तरीके
नए सूरज के उदय के साथ राज्य में बदल जाएंगे राजनीतिक-प्रशासनिक तौर-तरीके

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह बदल जाएगी। मुख्यमंत्री के अधिकार भी सीमित रहेंगे। विधानसभा की सीटों की संख्या 107 होगी, जिसे परिसीमन के बाद 114 तक बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है। राज्य के संवैधानिक मुखिया राज्यपाल नहीं होंगे। राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर उपराज्यपाल ही प्रमुख प्रशासक होंगे। जम्मू-कश्मीर में विधानमंडल के दो सदन हैं, विधानसभा और विधान परिषद। लेकिन, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद नहीं होगी। जम्मू-कश्मीर विधान परिषद को 17 अक्टूबर को ही राज्य सरकार ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 57 के तहत समाप्त कर दिया था।

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एकीकृत जम्मू-कश्मीर जिसका लद्दाख भी हिस्सा रहा है, में विधानसभा की 111 सीटें थीं। इनमें चार सीटें लद्दाख प्रांत की हैं, जिन्हें हटाए जाने के बाद केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में 107 सीटें रह गई हैं। लद्दाख के अलग केंद्र शासित क्षेत्र बन जाने से उसकी चारों विधानसभा सीटों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। मौजूदा परिस्थितियों में अगर विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं तो 83 सीटों पर ही चुनाव होगा। इसके अतिरिक्त दो सदस्यों को नामांकित किया जाएगा। गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित 24 सीटों पर पहले की तरह ही कोई चुनाव नहीं होगा। केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों को 107 से बढ़ाकर 114 किए जाने का प्रस्ताव है। इस संदर्भ में 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाएगें।

अधिकतम नौ मंत्री बन सकेंगे

केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में मुख्यमंत्री की संवैधानिक स्थिति पूरी तरह दिल्ली और केंद्र शासित पुडुचेरी के मुख्यमंत्री के समान होगी। मुख्यमंत्री अपनी मंत्रिपरिषद में अधिकतम नौ विधायकों को ही मंत्री बना सकेंगे। इसके अलावा राज्य विधानसभा द्वारा पारित किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को उपराज्यपाल की मंजूरी के बाद ही लागू किया जा सकेगा। उपराज्यपाल चाहें तो किसी भी बिल या प्रस्ताव को नकार सकते हैं। उनके लिए मुख्यमंत्री या राज्य विधानसभा के प्रस्ताव को मंजूरी देना बाध्यकारी नहीं होगा। राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी पांच साल ही रहेगा, जबकि एकीकृत जम्मू कश्मीर में यह छह साल था।

राजस्व विभाग राज्य सरकार के होगा अधीन

राजस्व विभाग पूरी तरह राज्य सरकार के अधीन होगा। कृषि भूमि, कृषि ऋण, कृषि भूमि के हस्तांतरण-स्थानांतरण के अधिकार, उद्योगों के लिए जमीन देना राज्य सरकार के अधीन ही होगा। शिक्षा, सड़क और स्वास्थ्य सेवाएं संबंधी अधिकार भी राज्य सरकार के अधीन ही रहेंगे।


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