दीनदयाल उपाध्याय जयंती: जिनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य, रेलवे जंक्शन के पास मिला था शव
भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज जयंती है। इस मौके पर पीएम मोदी सहित कई नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। जाने-माने विचारक, दार्शनिक और राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज जयंती है। इस मौके पर पीएम मोदी सहित कई नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 102वीं जयंती के अवसर पर भाजपा देशभर में कार्यक्रम आयोजित करेगी। इस मौके पर दिल्ली में भी भाजपा कार्यालय पुष्पांजलि का कार्यक्रम होगा। इस मौके पर भाजपा के कई बड़े नेता शामिल होंगे।
पीएम मोदी सहित कई नेताओं ने किया याद
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर पीएम सहित कई दिग्गज नेताओं ने उन्हें याद किया। पीएम नरेंद्र मोदी ने दीनदयाल उपाध्याय को श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्म-जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।' वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्विटर पर लिखा, 'एकात्म मानववाद के प्रणेता, महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्म जयंती पर शत्-शत् नमन'।
भारतीय जनसंघ की रखी नींव
भारतीय जनसंघ के सह संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 1916 में आज ही उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में हुआ। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जब अपनी स्नातक स्तर की शिक्षा हासिल कर रहे थे, उसी वक्त वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए और वह आरएसएस के प्रचारक बन गए। हालांकि प्रचारक बनने से पहले उन्होंने 1939 और 1942 में संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण लिया था और इस प्रशिक्षण के बाद ही उन्हें प्रचारक बनाया गया था।
वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ की नींव रखी गई थी और इस पार्टी को बनाने का पूरा कार्य उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर किया था। वह इस संगठन के 15 वर्षों तक आल-इंडिया जनरल सेक्रेटरी रहे। दिसंबर, 1967 में वह जनसंघ के अध्यक्ष बने। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘पांचजन्य’ की नींव रखी थी। 1967 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने। उत्तर प्रदेश के जौनपुर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उन्होंने ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ पर एक नाटक लिखा और बाद में शंकराचार्य की जीवनी भी लिखी।
रहस्यमयी हालात में मृत्यु
पंडित दीनदयाल उपाध्याय, जिनका जीवन कहना चाहिए कि जन्म भी कष्टों के बीच हुआ और जब मृत्यु भी आई तो ऐसी आई कि उनसे जुड़े लोगों को यह भरोसा ही नहीं हो रहा था कि अब पंडितजी हमारे बीच नहीं रहे। फरवरी 1968 को मुगलसराय रेलवे जंक्शन के निकट पोल संख्या 1276 के पास रहस्यमयी हालात में मृत अवस्था में पाए गए थे। अभी भी उनकी मौत को लेकर कई राज सामने नहीं आए हैं और हाल ही में यूपी सरकार ने इसकी जांच करवाने का फैसला भी किया है।