बापू के अस्थि कलश के ऊपर बना था यह गांधी चबूतरा, अब ऐसी है हालत
जगदलपुर के गोल बाजार में जिस स्थान पर बापू के अस्थि कलश को ससम्मान दफन कर झंडा चबूतरा बनाया गया है वह स्थल 70 साल बाद भी उपेक्षित है।
जगदलपुर, जेएनएन। अटल जी के निधन के बाद उनके अस्थि कलश को जैसे देश भर की नदियों में प्रवाहित करने के लिए भेजा गया, ठीक उसी तरह 70 साल पहले महात्मा गांधी के निधन के बाद उनके अस्थि कलश को भी देश भर में लोगों के दर्शनार्थ भेजा गया था। इनमें से एक कलश जगदलपुर लाया गया था। इस कलश को भूमि में दफन कर इसके ऊपर गांधी चबूतरे का निर्माण किया गया था। आज 7 दशक बाद इस गांधी चबूतरे के महत्व को नई पीढ़ी भुलाती जा रही है, जिसके चलते यह चबूतरा अब जर्जर अवस्था में है। राजनेता और प्रशासन भी अब इसके प्रति उदासीनता दिखा रहे हैं।
महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मनाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें व्यापक तैयारियां कर रही हैं, लेकिन बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर के गोल बाजार में जिस स्थान पर बापू के अस्थि कलश को ससम्मान दफन कर झंडा चबूतरा बनाया गया है वह स्थल 70 साल बाद भी उपेक्षित है। संत विनोबा भावे के भक्त धरमपाल सैनी यहां 39 साल तक से तिरंगा फहराते आ रहे हैं, वहीं नगर निगम ने यहां परकोटा बनवा दिया है, लेकिन बस्तर के जनप्रतिनिधियों ने कभी इस ऐतिहासिक स्थल को वाजिब पहचान दिलाने की कोशिश नहीं की। इसलिए बस्तर की नई पीढ़ी बापू से जुड़े इस महत्वपूर्ण स्थल से अनभिज्ञ है।
सन 1948 में लाया गया था कलश
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिलख नारायण अग्रवाल के ज्येष्ठ पुत्र व बस्तर के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रताप अग्रवाल बताते हैं कि वर्ष 1948 में महात्मा गांधी की शहादत की खबर सुनकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिलखनारायण अग्रवाल दिल्ली गए थे। राजघाट में बापू का अंतिम संस्कार करने के बाद उनकी चिता की राख को सैकड़ों कलशों में सहेजा गया। तत्पश्चात इन्हें देश के विभिन्न् जिलों में अंतिम दर्शन के लिए भिजवाया गया था।बिलखनारायण अग्रवाल बापू का अस्थि कलश लेकर यहां आए थे। इसे गोल बाजार के मध्य दर्शनार्थ रखा गया था। इसके बाद उसी स्थान में गहरा गड्ढा खोदकर कलश को ससम्मान दफन किया गया और उसके ऊपर झंडा चौराहा बनाया गया था।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने यहां फहराया था तिरंगा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिलख नारायण अग्रवाल मूलत: रायपुर के निवासी थे और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे अपनी गतिविधियां समयानुसार जैतू साव मठ रायपुर और जगदलपुर से संचालित करते थे। वर्ष 1942 में जब उन्हें गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया गया था। तब उन्होंने साजिश के तहत डायनामाइट की मदद से रायपुर जेल की एक दीवार को उड़ा दिया था। उन्होंने ही फरवरी 1948 में गोल बाजार में गांधी अस्थि कलश के ऊपर झंडा चौराहा बनवाया था और अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी साथी लक्ष्मी दास, नरेश चंद्र चौधरी, अर्जुन दास और श्रीमती भगवती जाधव के साथ हर स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती, शहीद दिवस और गणतंत्र दिवस पर वर्ष 1978 तक तिरंगा फहराते रहे।
यहां बनवाना चाहते हैं गांधी स्मारक
39 साल से तिरंगा फहरा रहे से सैनी धर्मपाल सैनी गांधीवादी हैं। वे महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल हुए थे। उन्होंने बताया कि सेनानी बिलक नारायण अग्रवाल के निधन के बाद वर्ष 1979 से बापू के इस अस्थि कलश वाले झंडा चौराहा स्थल को वे गांधी स्मारक बनाना चाहते हैं और इसके लिए जिला प्रशासन से निवेदन भी कर चुके हैं।
बदहाल है हालत
70 वर्ष पुराना गोल बाजार का गांधी चबूतरा वर्षों से उपेक्षित पड़ा है। नगर निगम द्वारा यहां अहाता निर्माण कर पौधरोपण तो किया गया था परंतु आसपास के व्यापारियों ने इसे कूड़ा घर बना कर रख दिया है। इस ऐतिहासिक स्थल से अधिकांश शहरवासी अनभिज्ञ हैं। गोल बाजार के उपेक्षित ऐतिहासिक गांधी झंडा चबूतरे के संदर्भ में बस्तर कलेक्टर अय्याज तंबोली ने कहा कि इस संदर्भ में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। इसकी विस्तृत जानकारी एकत्र कर निश्चित ही गांधी झंडा चबूतरे को संरक्षित कर उक्त स्थल को स्मारक बनाने का प्रयास किया जाएगा।