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चुनाव में पार्टी की रणनीतिक उदासीनता और आप की बढ़ती पैठ ने डुबोई कांग्रेस की लुटिया, बजाई खतरे की घंटी

गुजरात विधानसभा में अब तक की सबसे करारी ऐतिहासिक हार ने इस चुनाव में कांग्रेस की राजनीतिक उदासीनता की सच्चाई की पोल खोल दी है। गुजरात में कांग्रेस चाहे बीते 27 सालों से सत्ता से बाहर रही हो मगर उसका एक ठोस राजनीतिक आधार हमेशा से रहा है।

By Sanjay MishraEdited By: Sonu GuptaPublished: Thu, 08 Dec 2022 09:07 PM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2022 09:07 PM (IST)
चुनाव में पार्टी की रणनीतिक उदासीनता और आप की बढ़ती पैठ ने डुबोई कांग्रेस की लुटिया, बजाई खतरे की घंटी
गुजरात में कांग्रेस के विपक्षी विकल्प बने रहने पर आप ने बजाई खतरे की घंटी। फाइल फोटो।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा में अब तक की सबसे करारी ऐतिहासिक हार ने इस चुनाव में कांग्रेस की राजनीतिक उदासीनता की सच्चाई की पोल खोल दी है। अपने कमजोर चुनाव अभियान को साइलेंट प्रचार स्ट्रैटजी से ढकने की पार्टी की कोशिशों के साथ ही उसके सियासी वोट बैंक में आम आदमी पार्टी की बड़ी सेंध ने गुजरात में कांग्रेस की लुटिया डूबोई है। इस नतीजे ने गुजरात में कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य के लिए खतरे की घंटी बजा दी है क्योंकि पहली बार सूबे में आम आदमी पार्टी एक तीसरी ताकत के रूप में उभरती दिखाई दे रही है।

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27 सालों से सत्ता से बाहर है कांग्रेस

गुजरात में कांग्रेस चाहे बीते 27 सालों से सत्ता से बाहर रही हो मगर उसका एक ठोस राजनीतिक आधार हमेशा से रहा है और 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपना यह दमखम दिखाया भी था। तब पटेल आंदोलन और राहुल गांधी ने चुनाव को लगभग बराबरी का मुकाबला बना दिया था और कांग्रेस करीब 42 फीसद वोट के साथ 77 सीटें हासिल करने में कामयाब रही थी।

20 सीटों का भी नहीं छू पायी आंकड़ा

2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के कारण बेशक कांग्रेस गुजरात में एक भी सीट हासिल नहीं कर पायी मगर उसके वोट करीब 36 फीसद रहे। मगर 2022 के इस चुनाव में पार्टी पिछले प्रदर्शनों को दोहराना तो दूर उससे काफी नीचे खिसक गई है और कांग्रेस को केवल 27.3 फीसद वोट मिलना सूबे में उसकी चिंताजनक हो रही हालत का पुख्ता सबूत है। वोट शेयर में इस गिरावट का ही नतीजा है कि कांग्रेस गुजरात में 20 सीटों का आंकड़ा भी नहीं छू पायी है।

आप को मिले भाजपा विरोधी मत

गुजरात में नरेन्द्र मोदी के करिश्मे के साथ भाजपा का एक मजबूत आधार वोट है जो हर चुनाव में दो से चार फीसद उपर नीचे होता रहा है और यही हालत लगभग कांग्रेस की रही थी। लेकिन इस चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ है जब कांग्रेस के आधार वोट या दूसरे शब्दों में भाजपा विरोधी मतों में आम आदमी पार्टी ने 12.9 फीसद की गंभीर सेंध लगाई है। भाजपा के आधार वोटों में इजाफे तो दूसरे ओर उसके खिलाफ पड़ने वाले मतों में इस बड़े बिखराव ने ही कांग्रेस को गुजरात विधानसभा में उसके अब तक के सबसे न्यूनतम आंकड़े तक पहुंचा दिया है।

राज्य में कांग्रेस दो नंबर की पार्टी

कांग्रेस के लिए यह बेहद चिंता की बात इसलिए भी है कि जिस राज्य में कांग्रेस तीसरे नंबर पर पहुंचती है उसके बाद पार्टी के लिए सत्ता की दौड़ में वापस लौटना मुश्किल होता है और दिल्ली इसका सबसे ताजा उदाहरण है। हालांकि पार्टी के लिए गनीमत यह है कि आप की इस पैठ के बावजूद गुजरात में अभी भी कांग्रेस नंबर दो पार्टी की हैसियत से लुढ़की नहीं है।

मध्य गुजरात की 61 सीटों मे सिर्फ 6 सीटों पर कब्जा

आम आदमी पार्टी ने सूबे में कांग्रेस के मजबूत आधार वाले मध्य और उत्तर गुजरात विशेषकर सौराष्ट्र व कच्छ के इलाकों में अपनी पैठ बढ़ा उसकी हालत पतली करने में कारगर भूमिका निभाई है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में मध्य गुजरात की 61 सीटों मे 35 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस बार बमुश्किल छह सीटें ही हासिल कर पायी है। बेशक आम आदमी पार्टी के गुजरात में जमीनी स्तर पर किए गए सियासी प्रयोगों ने उसे इस स्थिति में ला खड़ा किया है जहां से वह भविष्य में भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस को पीछे छोड़ने की सोच सकती है। लेकिन यह भी हकीकत है कि आप को अपने सियासी आधार पर में पैठ बढ़ाने का यह मौका कांग्रेस की कमजोर चुनावी रणनीति और अभियान की वजह से मिला है।

हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर जैसे युवाओं ने कांग्रेस को कहा अलविदा

पिछले चुनाव में पाटीदार आंदोलन से जुड़े हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर जैसे युवा नेताओं के साथ दलित आंदोलन से उभरे सामाजिक समीकरण को साधने में कांग्रेस ने पूरी शिद्दत से मेहनत की और इसका फायदा भी मिला। मगर कांग्रेस की उदासीन रणनीति को भांपते हुए ये सभी नेता भाजपा में भाग गए फिर भी पार्टी की आंखे नहीं खुली और उसकी ओर से सूबे में नए सामाजिक समीकरण बनाने की कोई पहल नहीं हुई। अव्वल तो यह रहा कि चुनाव प्रचार की रणनीति और अभियान लगभग स्थानीय नेताओं पर ही छोड़ दिया गया।

राहुल गांधी ने दिया भारत जोड़ो यात्रा को चुनाव से ज्यादा महत्व

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा को चुनाव से ज्यादा महत्व दिया और एक दिन के सांकेतिक प्रचार के अलावा उनकी गुजरात में कोई भागीदारी नहीं रही। कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कमान संभालने के बाद आखिर में कुछ जोर जरूर लगाया मगर तब तक पार्टी के लिए काफी देर हो चुकी थी और तब पार्टी ने अपनी इस कमजोरी को ढंकने के लिए गुजरात के अपने चुनाव अभियान की उदासीनता को नरम स्ट्रैटजी बताया लेकिन गुरूवार को ईवीएम की गिनती ने सूबे में कांग्रेस की लुटिया डूबने की इस सच्चाई से पर्दा हटा दिया।

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