सीआरपीएफ जवानों की लंबी ड्यूटी से संसदीय समिति नाखुश
ज्यादा समय तक काम करने से अर्धसैनिक बल की कार्यकुशलता पर असर।जवानों को जरूरी आराम और अवकाश देने की प्रणाली विकसित करने का सुझाव।
नई दिल्ली, प्रेट्र । संसद की एक संयुक्त समिति ने सीआरपीएफ जवानों की लंबी ड्यूटी पर नाखुशी जताई है। समिति ने कहा है कि हाल ये है कि जवान न तो राष्ट्रीय अवकाश का उपयोग कर सकते हैं और न ही साप्ताहिक छुट्टी का। यह स्वस्थ और बेहतर हालात नहीं है।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति ने यह भी कहा कि राज्य सरकारें अर्धसैनिक बल को जो आवास मुहैया कराती हैं, वह भी कभी-कभी बेहद खराब स्थिति में होते हैं और वहां सफाई और सुरक्षा की भी बेहतर व्यवस्था नहीं होती। इसका सीधा असर जवानों की गरिमा, उत्साह और मनोबल पर पड़ता है।
राज्यसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि उसे यह जानकर बहुत दुख हुआ है कि सीआरपीएफ के 80 फीसद जवानों को एक दिन में 12-14 घंटे तक काम करना पड़ता है। उन्हें सरकारी अवकाश और रविवार को छुट्टी भी नहीं मिलती। उनकी ड्यूटी का हाल ये है कि उन्हें 24 घंटे, हफ्ते के सातों दिन और साल के 365 दिन सतर्क रहना पड़ता है। जबकि, भारतीय श्रम कानून के मुताबिक किसी से भी हफ्ते में अधिकतम 48 घंटे ही काम कराया जा सकता है।
हालांकि, इस कानून से सशस्त्र बलों को इससे अलग रखा गया है, लेकिन इससे संकेत मिलता है कि दीर्घकालिक स्तर पर ज्यादा घंटे की ड्यूटी न तो स्वस्थ है और न ही बेहतर। इसलिए समिति ने कहा कि मंत्रालय को जवानों को जरूरी आराम देने और उनके कार्य के घंटों को निधारित करने के लिए एक प्रणाली विकसित करने का सुझाव भी दिया है।
समिति ने यह भी कहा है कि राज्य सरकारें कानून-व्यवस्था की छोटी से छोटी घटना के लिए भी सीआरपीएफ पर निर्भर होने लगी हैं, जिससे सुरक्षा बल की मांग बढ़ती जा रही है। ऐसे में हालात ये है कि सीआरपीएफ की ट्रेनिंग ले रही कंपनियों को भी ड्यूटी पर लगाना पड़ रहा है। इससे जवानों को पर्याप्त ट्रेनिंग नहीं मिल पाती है।
सीआरपीएफ की किसी भी बटालियन में जवानों के अवकाश और आराम के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं बनाई गई है। समिति ने राज्यों से अपने सुरक्षा बलों को ही बेहतर ट्रेनिंग देकर छोटी-छोटी घटनाओं को काबू में करने लायक बनाने की सलाह दी है।