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मोदी सरकार के इस बिल से 50 करोड़ कामगारों को मिलेगा सीधा लाभ

श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने कहा ये एतिहासिक विधेयक है जिसमें 50 करोड़ कामगारों को न्यूनतम और समय पर मजदूरी देने को वैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 02 Aug 2019 10:17 PM (IST)Updated: Sat, 03 Aug 2019 07:09 AM (IST)
मोदी सरकार के इस बिल से 50 करोड़ कामगारों को मिलेगा सीधा लाभ
मोदी सरकार के इस बिल से 50 करोड़ कामगारों को मिलेगा सीधा लाभ

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राज्यसभा ने शुक्रवार को मजदूरी संहिता विधेयक को पारित कर दिया। बिल के पक्ष में 85 व विरोध में केवल 8 मत पड़े। लोकसभा इसे पहले ही पास कर चुकी है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये कानून का रूप ले लेगा।

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इसमें न्यूनतम मजदूरी और बोनस से संबंधित पुराने श्रम कानूनों का विलय कर उन्हें समय के अनुसार प्रासंगिक और पारदर्शी बनाया गया है। इससे पूरे देश में न्यूनतम मजदूरी के साथ महिलाओं को पुरुषों के समान मजदूरी देने की व्यवस्था की गई है।

सरकार द्वारा 40 पुराने श्रम कानूनों को मिलाकर चार श्रम संहिताओं में बदलने की कड़ी में ये पहली संहिता है, जिसने संसद की सीढ़ी पार कर ली है। अभी तीन संहिताओं के बिल और लाए जाने हैं।

50 करोड़ कामगारों को न्यूनतम और समय पर मिलेगी मजदूरी
विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने कहा ये एतिहासिक विधेयक है, जिसमें 50 करोड़ कामगारों को न्यूनतम और समय पर मजदूरी देने को वैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया है। इसमें मजदूरी संहिता विधेयक, 2019 के जरिए वेतन भुगतान विधेयक 1936, न्यूनतम वेतन एक्ट 1948, बोनस एक्ट 1965 तथा समान परिलब्धियां अधिनियम, 1976 का विलय किया गया है।

न्यूनतम वेतन पाना प्रत्येक मजदूर का अधिकार 
बिल में स्थायी समिति के 24 में से 17 सुझावों को शामिल कर दिया गया है। न्यूनतम वेतन की आधारभूत दर का निर्धारण ट्रेड यूनियनों, नियोक्ताओं और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों वाली त्रिपक्षीय समिति करेगी। जरूरी होने पर समिति को तकनीकी समिति के गठन का भी अधिकार होगा। न्यूनतम वेतन पाना प्रत्येक मजदूर का अधिकार होगा और वो सम्मानजनक जीवन जी सकेगा। बिल में मासिक, साप्ताहिक अथवा दैनिक आधार पर सभी क्षेत्रों के मजदूरों पर निश्चित तिथि पर वेतन देना जरूरी कर दिया गया है।

चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के मधूसूदन मिस्त्री ने न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण कैलोरी का पैमाना न अपनाए जाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि सरकार ने मजदूरों की जिंदगी बदलने का मौका गंवा दिया। अब बोनस पर विवाद होने पर नियोक्ता की बैलेंस शीट नहीं देखी जा सकेगी। बिल में मजदूर का वेतन काटने के सारे प्रावधान कर दिए गए हैं।

महिलाओं को पुरुषों के बराबर मजदूरी का प्रावधान
लेकिन भाजपा के भूपेंद्र यादव ने बिल की जोरदार पैरवी की। उन्होंने कहा ये कानून मजदूर वर्ग की भलाई के लिए लाया गया है। इसमें दस बड़े सुधार किए गए हैं। महिलाओं को पुरुषों के बराबर मजदूरी का प्रावधान कर लैंगिक भेदभाव खत्म किया गया है। त्रिपक्षीय एडवाइजरी बोर्ड में भी एक तिहाई महिलाएं होंगी। हर पांच साल में न्यूनतम वेतन दरों की समीक्षा होगी। वेतन की 12 परिभाषाओं को मिलाकर एक किया गया है। डिजिटल व चेक के जरिए भुगतान होने से पर्ची से वेतन पर रोक लगेगी। बिल में बोनस के बारे में अस्पष्टताएं दूर की गई हैं। दावा करने की समय सीमा को बढ़ाकर तीन साल किया गया है। मजदूरी न मिलने पर पहली सुनवाई का अधिकार गजटेड अफसर को दिया गया है।

मजदूरी संहिता बिल को सबसे पहले अगस्त, 2017 में लोकसभा में पेश किया गया था। जहां से उसे समीक्षा के लिए स्थायी संसदीय समिति को भेज दिया गया था। समिति ने दिसंबर 2018 में अपनी रिपोर्ट दे दी थी। परंतु 16वीं लोकसभा के भंग होने से बिल लैप्स हो गया था। लोकसभा चुनाव के बाद सरकार ने नए सिरे से बिल को पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा से पास कराया है।

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