आतंकवाद पर पाक के मंसूबे होंगे नापाक; भारत, ईरान व अफगान ने बनाई रणनीति
ईरान तालिबान के मुद्दे पर पूरी तरह से भारत व अफगानिस्तान के साथ है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। आतंक को मदद देने की वजह से अंतरराष्ट्रीय जगत में अलग-थलग होने के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। पड़ोसी देश अफगानिस्तान में पाकिस्तान की सेना और आईएसआई दोहरा खेल खेल रहे हैं। वह एक तरफ तालिबान तो दूसरी तरफ दयेश (इस्लामिक संगठन -आईएस) को भी आतंकी हरकतों के लिए हर संभव मदद दे रहे हैं। पाकिस्तान के इस मंसूबे के खिलाफ भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच एक गठबंधन बनने के संकेत है।
बुधवार को तेहरान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव (एनएसए के समकक्ष) अली शमखानी और अफगानिस्तान के एनएसए हमदुल्लाह मोहिब से द्विपक्षीय मुलाकात के व्यापक मायने निकाले जा रहे हैं। उक्त तीनों देश पूर्व में भी आतंकी संगठनों को मदद देने की पाकिस्तान की नीति का खुला विरोध कर चुके हैं।
भारत, ईरान व अफगानिस्तान के एनएसए की बैठक तेहरान में
सूत्रों के मुताबिक हाल के महीनों में पाकिस्तान के शह में तालिबान जितना मजबूत हुआ है उससे भारत, अफगानिस्तान और ईरान तीनों परेशान है। भारत को साफ जानकारी मिल रही है कि अफगानिस्तान को अस्थिर करने में पाकिस्तान सेना सक्रिय है। अफगानिस्तान के अधिकारियों ने भारतीय पक्ष को बताया है कि अभी तक जितने दयेश आतंकी वहां मारे गये हैं उनमें 70 फीसद पाकिस्तानी है।
दूसरी तरफ तालिबान के पाकिस्तान लिंक की बात किसी से छिपी नहीं है। पिछले बुधवार को नई दिल्ली में राष्ट्रपति घनी ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात इस मुद्दे को खास तौर पर उठाया था। उन्होंने साफ तौर पर बताया था कि किस तरह से पाकिस्तान तालिबान और इस्लामिक संगठन दोनो को बढ़ावा दे रहा है। अफगानिस्तान के सुरक्षा एजेंसियों के पास इसके पक्के सबूत हैं। ट्रंप प्रशासन जिस तरह से अफगानिस्तान को लेकर ठंडा रवैया अपनाये हुए है उससे पाकिस्तान नए सिरे से काबुल में अस्थिरता फैलाने में जुटा है।
सूत्रों के मुताबिक अफगानिस्तान में आतंकवाद की समस्या पर भारत, अफगानिस्तान, ईरान, चीन और रूस के बीच हुई मुलाकात पाकिस्तान के लिए एक बड़े झटके से कम नहीं है। क्योंकि अभी वह चाहता है कि निकट भविष्य में तालिबान को वहां किसी भी तरह से सत्ता में प्रवेश करवाया जाए। इसके लिए वह शांति बहाली प्रक्रिया में तालिबान को शामिल करने को लेकर दबाव बनाये हुए है।
पाकिस्तान के लिए दूसरा झटका यह है कि यह बैठक ईरान में हुई है जहां भारत के एनएसए भी शामिल हुए हैं। पाकिस्तान समर्थक तालिबान का ईरान शुरु से विरोधी रहा है। असलियत में ईरान तालिबान के मुद्दे पर पूरी तरह से भारत व अफगानिस्तान के साथ है।
भारत भी तालिबान की बढ़ती ताकत को लेकर संशकित है। पूर्व में जब वहां तालिबान सत्ता में थी तो उसका खामियाजा भारत को भी भुगतान पड़ा था। इन तीनो देशों के एनएसए स्तर पर हुई मुलाकात के यह मायने लगाये जा रहे हैं कि भविष्य में अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने को लेकर जो भी फार्मूला बनेगा उसमें ये पाकिस्तान समर्थित तालिबान को बाहर रखने का दबाव बनाएंगे।