परमाणु हमले की धमकी, पर आतंकी फैक्ट्री बंद करने को नहीं तैयार पाकिस्तान
पाकिस्तानी संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री इमरान खान परमाणु हमले की धमकी देने से नहीं चूके लेकिन पाक धरती से संचालित आतंकी संगठनों और उसके सरगनाओं के खिलाफ कार्रवाई को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बालाकोट में भारत की एयर स्ट्राइक से सहमा पाकिस्तान भले ही दुनिया भर में शांति की गुहार लगा रहा हो, लेकिन अपनी आतंकी फैक्ट्री को बंद करने के लिए तैयार नहीं है। पाकिस्तानी संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री इमरान खान परमाणु हमले की धमकी देने से नहीं चूके, लेकिन पाक धरती से संचालित आतंकी संगठनों और उसके सरगनाओं के खिलाफ कार्रवाई को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया। वहीं भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव की मुख्य वजह कश्मीर होने के पुराने राग को फिर दोहराया।
पुलवामा हमले के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद और उसके सरगना मसूद अजहर का हाथ होने का बुधवार को भारत की ओर से भेजे गए सबूतों को नजरअंदाज करते हुए इमरान खान सीआरपीएफ जवानों पर हमले को भारत की दमनकारी नीतियों का परिणाम साबित करने की भरसक कोशिश की। पाकिस्तानी संसद मे एक बयान में उन्होंने यह स्वीकार किया कि भारत की ओर से भेजा गया डोजियर उन्हें मिल गया है, लेकिन कार्रवाई के बारे में कुछ नहीं कहा। एक तरह से इमरान खान ने साफ संकेत दिया कि वह अपने यहां पल रहे आतंकी सरगनाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा और यदि भारत ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की, तो यह पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई मानी जाएगी और मजबूरी में पाकिस्तान को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। परमाणु हथियारों की धमकी देते हुए उन्होंने कहा कि 'मैं हिंदुस्तान को आज इस प्लेटफार्म से कह रहा हूं कि इससे आगे ना लेके जाएं। क्योंकि जो भी आप करेंगे पाकिस्तान मजबूर होगा रिटैलिएट करने के लिए। वो मुल्क जिनके पास ये हथियार हैं, सोचना भी नहीं चाहिए इस तरफ।'
लगभग बीस मिनट के भाषण में इमरान की पूरी कोशिश यही रही कि बालाकोट में आतंकी के खिलाफ भारत के एअरस्ट्राइक को पाकिस्तान पर हमले से जोड़ा जाए। अजीब बात यह है कि एक तरफ तो वह बातचीत की पेशकश करते दिखे, दूसरी तरफ आतंक को भूल फिर से कश्मीर राह अलापने लगे। ध्यान रहे कि पुलवामा के बाद भारत के तेवर को देखते हुए उन्होंने अपने पहले बयान में कहा था कि वह कश्मीर को छोड़कर पहले आतंक पर बात करने को तैयार हैं। दूसरे बयान मे भी उन्होंने कुछ ऐसा ही संदेश दिया था। लेकिन फिर से पुराने राग पर लौट गए।
लश्करे तैयबा और जैश ए मोहम्मद भले ही कश्मीर में हमलों की जिम्मेदारी लेता रहा हो, लेकिन आइएसआइ के संरक्षण में चल रहे इन दोनों आतंकी संगठनों को बचाने के लिए इमरान खान ने एक अजीब तर्क का सहारा लिया। उनका कहना था कि मजहबी कट्टरपंथ से आतंकी और आत्मघाती हमलों का कोई लेना देना नहीं है। इसके लिए उन्होंने 70 और 80 के दशक में तमिल टाइगर्स के आत्मघाती हमलों का उदाहरण दिया। उनका इशारा साफ था कि कश्मीर में आत्मघाती हमले को लश्करे तैयबा और जैश ए मोहम्मद के मदरसों और आतंकी कैंपों से नहीं जोड़ा जाए।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के 'सूखी रोटी खाएंगे, लेकिन परमाणु बम बनाएंगे' के नारे की तर्ज पर अंतिम सांस तक भारत के साथ लड़ाई जारी रखने की धमकी दी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का हीरो अंग्रेजी की गुलामी स्वीकार करने वाले मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर नहीं हैं, बल्कि टीपू सुल्तान है, जिसने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी।
भारत के साथ-साथ उनका इशारा दुनिया के दूसरे देशों के लिए भी था कि पाकिस्तान किसी कीमत पर भारत के आगे अपनी हार नहीं स्वीकार करेगा और ऐसे में अंतत: दोनों देशों के बीच एटमी जंग होना तय है, जो भयंकर विनाश का कारण बनेगा। यानी दुनिया को अगर एटमी जंग से बचना है तो भारत को युद्ध से रोकना जरूरी है। युद्ध रोकने के लिए उन्होंने भारत के साथ आतंक समेत तमाम मुद्दों पर भी बातचीत का एक बार फिर पेशकश की।