विपक्ष ने संविधान की दुहाई देकर नागरिकता विधेयक का किया विरोध
विपक्ष के अधिकांश दलों ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल (कैब) को संविधान के बुनियादी ढांचे और मूल भावना के खिलाफ बताते हुए इसका जमकर विरोध किया।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। विपक्ष के अधिकांश दलों ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल (कैब) को संविधान के बुनियादी ढांचे और मूल भावना के खिलाफ बताते हुए इसका जमकर विरोध किया। कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी दलों ने कहा कि अपने सियासी एजेंडे के लिए सरकार इस विधेयक के जरिये देश में धर्म के आधार पर विभाजन की नई खाई पैदा करने जा रही है। जबरदस्त सियासी गरमारमी के बीच विपक्ष ने सरकार को यह चेतावनी भी दी कि संविधान के अनुच्छेद 14 की भावना के खिलाफ पारित किया गया नागरिकता विधेयक सर्वोच्च अदालत की कसौटी पर टिक नहीं पाएगा।
लोकसभा में विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक न केवल असंवैधानिक है बल्कि अनैतिक है क्योंकि यह बाबा साहब आंबेडकर के संविधान की भावना के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के खिलाफ उद्वेलित होना स्वाभाविक है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 26 के खिलाफ है। सरकार या राज्य धर्म या संप्रदाय के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते। मगर मौजूदा विधयेक धर्म के आधार पर विभेद कर रहा है क्योंकि इसमें मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है। कांग्रेस नेता ने कहा कि यह कानून पंथनिरपेक्ष नहीं है और इसीलिए संविधान की प्रस्तावना के भी खिलाफ है।
कांग्रेस नेता ने सुप्रीम कोर्ट के कई अहम फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि मानवीय आधार पर कोई भी शरणार्थी पनाह मांगता है तो धर्म के आधार पर हम उसे इन्कार नहीं कर सकते। सरकार से विधेयक की खामियों को दूर करने का अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस घुसपैठ के खिलाफ है। इसीलिए सरकार घुसपैठ और शरणार्थियों से जुड़ा व्यापक कानून लेकर आए मगर उनकी पार्टी धार्मिक विभेद पैदा करने वाले इस विधेयक का समर्थन नहीं कर सकती। देश के विभाजन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने के गृह मंत्री अमित शाह के आरोपों को भी मनीष तिवारी ने सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि द्वि-राष्ट्र का पहली बार प्रस्ताव 1935 में ¨हदू महासभा के नेता वीर सावरकर लेकर आए थे।
द्रमुक नेता दयानिधि मारन ने विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि राजग सरकार मुसलमानों को निरंतर भयभीत रखना चाहती है और इसीलिए संविधान की भावना से परे जाकर यह कानून बनाया जा रहा है। भाजपा के घोषणा पत्र का हवाला देते हुए मारन ने कहा कि नागरिकता विधेयक पर उसने अपने चुनावी वादे में ईसाई समुदाय का जिक्र नहीं किया था। लेकिन पश्चिमी देशों में अलग-थलग पड़ने के भय से ईसाई समुदाय को नागरिकता विधेयक में शामिल कर लिया गया। मारन ने सवाल उठाया कि श्रीलंका से आए तमिल भाषी शरणार्थी 30 साल से तमिलनाडु में हैं मगर सरकार ने उनकी अनदेखी की है और विधेयक में उनकी नागरिकता के मुद्दे को क्यों नहीं छुआ गया है।
तृणमूल कांग्रेस के अभिजीत बनर्जी ने भी बेहद आक्रामक प्रहार करते हुए कहा कि सरकार स्वामी विवेकानंद और सरदार पटेल के भारत की भावना के खिलाफ जाकर नागरिकता विधेयक पारित करा रही है। वास्तव में यह विधेयक मुसलमान ही नहीं बल्कि ¨हदुओं के भी खिलाफ है। इस विधेयक को एनआरसी से जोड़ते हुए अभिजीत ने कहा कि एनआरसी लालीपॉप था तो यह विधेयक भी एक बड़ा जुमला है। उनके अनुसार भाजपा सरकार अपनी राजनीतिक भूख के लिए नागरिकता विधेयक का इस्तेमाल कर रही है मगर पश्चिम बंगाल मंे तृणमूल कांग्रेस हर कीमत पर एनआरसी का विरोध करेगी।
बसपा के अफजाल अंसारी ने भी विधेयक को संविधान के प्रतिकूल ठहराते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय को विधेयक से बाहर रख सरकार ने उनके साथ गैरबराबरी का सलूक किया है। समाजवादी पार्टी के टी. हसन ने भी विरोध करते हुए कहा कि इस तरह के विभाजनकारी विधेयक से देश का भला नहीं होने वाला। उन्होंने कहा कि 20 करोड़ की मुस्लिम आबादी देश के नागरिकों का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है और इस समुदाय को निरंतर भय और आतंक के साये में रखा जाना देश के हित में नहीं होगा।