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आक्रामक पीएम मोदी के तर्कों से विपक्ष सुन्‍न, CAA पर नेहरू, शास्‍त्री और लोहिया के बयानों के जरिए घेरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आक्रामक व चुटीले अंदाज में तथ्यों को इस तरह रखा कि कांग्रेस के हाथ पांव सुन्न हो गए और बोल ही बदल गए।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 08:25 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 07:07 AM (IST)
आक्रामक पीएम मोदी के तर्कों से विपक्ष सुन्‍न, CAA पर नेहरू, शास्‍त्री और लोहिया के बयानों के जरिए घेरा
आक्रामक पीएम मोदी के तर्कों से विपक्ष सुन्‍न, CAA पर नेहरू, शास्‍त्री और लोहिया के बयानों के जरिए घेरा

 नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सीएए के खिलाफ एक महीने से मोर्चेबंदी कर खड़े विपक्ष के विरोध को गुरुवार को बड़ा झटका लगा। आंकड़ों के साथ लैस, कांग्रेस व समाजवादी दिग्गज नेताओं के पूर्व में दिए गए बयानों के साथ तैयार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आक्रामक व चुटीले अंदाज में तथ्यों को इस तरह रखा कि कांग्रेस के हाथ पांव सुन्न हो गए और बोल ही बदल गए। नागरिकता संशोधन कानून से मुस्लिमों को बाहर रखे जाने का विरोध करती रही कांग्रेस ने कहा- उनका विरोध केवल इसलिए था कि इसमें नेपाल व श्रीलंका जैसे देशों के शामिल क्यों नहीं किया गया। राज्यसभा ने नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने सदन के अंदर यह बात पूरे विपक्ष की ओर से कही और फिर विपक्ष राष्ट्रपति को धन्यवाद ज्ञापन करने के लिए प्रस्ताव पारित करने से पहले ही बाहर चला गया। ऐसे में यह मानकर चलना चाहिए कि सीएए को मुस्लिम विरोधी बताने का विपक्ष का आरोप अब लगभग ध्वस्त हो गया है। अब विपक्ष को नया रास्ता तलाशना होगा।

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मोदी ने पूछा- क्या नेहरू सांप्रदायिक थे

यूं को पिछले दिनों में डा मनमोहन सिंह के बयान, प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली कमेटी के प्रस्तावों के बाद ही कांग्रेस को अहसास हो गया था कि मुस्लिम के नाम पर सीएए विरोध की जमीन भुरभुरी है। बहरहाल यह विरोध जारी था, लेकिन गुरुवार को प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के इतिहास के पन्नों को खोलना शुरू किया तो कांग्रेस नेताओं की जीभ चिपक गई। दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देने आए प्रधानमंत्री मोदी ने जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, राम मनोहर लोहिया, कांग्रेस कार्यसमिति के प्रस्तावों का तथ्य सामने रख दिया जिसका निचोड़ यही था कि पाकिस्तान और बंग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं को प्रताड़ित किया जा रहा है और उन्हें भारत में नागरिकता देना नैतिक कर्तव्य है।

लोकसभा में प्रधानमंत्री ने 1950 के नेहरू लियाकत समझौते का जिक्र करते हुए कहा कि उसमें भारत पाकिस्तान के माइनारिटी की सुरक्षा की बात की गई थी। मोदी ने सवाल करते हुए कहा- 'कुछ तो कारण रहा होगा कि नेहरू माइनारिटी शब्द पर मान गए। उन्होंने सभी नागरिकों की बात क्यों नहीं की? क्या वे सांप्रदायिक थे?' मोदी ने तंज करते हुए कहा - मुझे पता है कि जरूरत पड़े तो राजनीतिक लाभ के लिए आप नेहरू को भी छोड़ देंगे लेकिन समझौते के पहले भी नेहरू ने असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोर्दोलोई को पत्र लिखकर कहा था कि - 'आपको हिंदू शरणार्थियों और मुस्लिम इमीग्रेंट्स के बीच फर्क करना ही होगा और देश को इन शरणार्थियों की जिम्मेदारी लेनी ही होगी।' बाद में 5 नवंबर 1950 को नेहरू ने सदन में कहा था कि - 'जो प्रभावित लोग भारत में सेटल होने के लिए आए हैं, ये लोग नागरिकता मिलने के हकदार हैं और अगर कानून अनुकूल नहीं है तो कानून में बदलाव किया जाना चाहिए।'

लाल बहादुर शास्‍त्री ने संसद में दिया था भाषण

वहीं राज्यसभा में मोदी ने 1964 में दिए गए शास्त्री के बयान उद्धृत किए जिसमें उन्होंने बांग्लादेश में हिंदू के साथ हो रहे अत्याचार पर चिंता जताई थी और कहा था कि ऐसा लगता है कि इस्लामिक देश बंग्लादेश से सभी अल्पसंख्यकों को बाहर कर दिया जाएगा। मोदी ने समाजवादी नेताओं को भी याद दिलाया कि वह लोहिया के बयान का तो आदर करें। मोदी ने 25 नवंबर 1947 के कांग्रेस वर्किंग कमेटी के प्रस्ताव का भी जिक्र किया जिसमे कहा गया था - 'हम पाकिस्तान से आने से आने वाले सभी नान मुस्लिम को देश में सुरक्षा देंगे। नए-नए तथ्यों से सन्नाटे में दिख रहे कांग्रेस नेताओं से मोदी ने सवाल किया कि उस वक्त कांग्रेस ने बाहर से आने वाले सभी नागरिकों की बजाय सिर्फ नान मुस्लिम की बात क्यों नहीं की? जब इतिहास के पन्नों से ये तथ्य रखे जा रहे थे तो विपक्ष के नेताओं के चेहरे पर साफ देखा जा सकता था कि वह नई रणनीति का कोई रास्ता ढूंढ रहे हैं।

केरल के सीएम के बयान पर वामदलों को घेरा

बात यहीं नहीं रुकी। प्रधानमंत्री ने एनपीआर पर विपक्ष के विरोध और शाहीनबाग के प्रदर्शन के विपक्ष के समर्थन को भी सवालों में घेरा। केरल के मुख्यमंत्री के बयान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अगर वहां हो रहे प्रदर्शन में मुख्यमंत्री कुछ एक्टिविस्ट का हाथ देख रहे हैं तो दिल्ली में प्रदर्शन का समर्थन क्या दोहरा चरित्र नहीं है। 2010 में कांग्रेस काल में ही एनपीआर की शुरुआत हुई थी और अब उसका भी विरोध किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने चुनौती देते हुए कहा कि उनके पास कांग्रेस काल के एनपीआर की पूरी रूप रेखा है। पूरा डाटा है और उस आधार पर ही सभी को लाभ दिया गया। बल्कि उसे अपडेट किया जा रहा है ताकि सभी को लाभ मिले। लेकिन क्षुद्र मानसिकता के कारण केवल विरोध के लिए ऐसे काम का विरोध देश के लिए ठीक नहीं है।

नए तथ्‍यों ने सबको चौंकाया

पूरे भाषण के दौरान थोड़ी बहुत टोकाटाकी जरूर हुई लेकिन सामान्यतया नए तथ्यों ने सबको चौंकाया। विपक्ष के पास उसे काटने का कोई तर्क नहीं था। राज्यसभा में यह स्पष्ट तौर पर दिखा जब भाषण खत्म होने के बाद आजाद ने कहा कि वह कांग्रेस और पूरे विपक्ष की तरफ से कह रहे हैं कि इन देशों से आने वाले हिंदुओं का स्वागत है, हमारा विरोध सिर्फ यह है कि इसमें श्रीलंका, नेपाल जैसे देशों को क्यों नहीं जोड़ा गया। धन्यवाद ज्ञापन पर वोट होता उससे पहले ही विपक्ष सदन से बाहर चला गया।

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