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'एक देश एक कानून': मोदी सरकार समान नागरिक संहिता पर नवंबर में साफ करेगी स्थिति

गोवा एकमात्र राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। हालांकि वहां कुछ सीमित अधिकारों को संरक्षण दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की तरफदारी की।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 14 Sep 2019 10:58 PM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 12:11 AM (IST)
'एक देश एक कानून': मोदी सरकार समान नागरिक संहिता पर नवंबर में साफ करेगी स्थिति
'एक देश एक कानून': मोदी सरकार समान नागरिक संहिता पर नवंबर में साफ करेगी स्थिति

माला दीक्षित, नई दिल्ली। 'एक देश एक कानून' यानी समान नागरिक संहिता फिर चर्चा में है। संविधान में समान नागरिक संहिता लागू करने की स्पष्ट मंशा और उद्देश्य के बावजूद राजनैतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर पिछले 68 वर्षो से सरकारें सीधे तौर पर कोई कदम उठाने से बचती रही हैं।

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'एक देश एक कानून' लागू होने की स्थिति चार नवंबर को होगी साफ

सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी के बाद अब उम्मीद है कि चार नवंबर को दिल्ली हाई कोर्ट में सरकार की ओर से स्थिति साफ की जाएगी। इस दिन सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग वाली याचिका पर अपना पक्ष रखेगी।

समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग

दिल्ली हाई कोर्ट में भाजपा प्रवक्ता और वकील अश्वनी उपाध्याय ने याचिका दाखिल कर समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग की है। इस याचिका पर हाई कोर्ट ने गत 31 मई को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा था। आठ जुलाई को मामला सुनवाई पर लगा था, लेकिन सरकार ने जवाब के लिए कोर्ट से समय मांग लिया था। इसके बाद 27 अगस्त को केस लगा और दूसरी बार भी सरकार ने समय मांग लिया। अब चार नवंबर को यह मामला फिर सुनवाई पर लगा है।

समान नागरिक संहिता पर सरकार करेगी रुख साफ

बदली परिस्थितियों में माना जा रहा है कि सरकार इस बार कोर्ट में अपना रुख साफ कर देगी। अश्वनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस के बाद अभिनव बेरी की ओर से भी एक नई याचिका इसी मुद्दे पर दाखिल की गई है। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उपाध्याय की याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट से उसे भी मामले में पक्षकार बनाए जाने की मांग की है।

सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में समानता लाने का मुद्दा

समान नागिरक संहिता मूलत: सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में समानता लाने का मुद्दा है। इस पर संविधान निर्माण के समय संविधान सभा में भी बड़ी बहस हुई थी। पहले इसे मौलिक अधिकारों में शामिल करने की बात थी। हालांकि समान राय नहीं बनने के बाद इसे नीति निदेशक तत्वों में रखा गया। नीति निदेशक तत्व लागू करना सरकार पर निर्भर करता है। सरकारों की ओर से आज तक सीधे तौर पर इसे लागू करने के कोई प्रयास नहीं हुए।

एक देश एक कानून

अभी देश में सभी धर्मों के विवाह और तलाक के कानून अलग-अलग हैं साथ ही संपत्ति और पैतृकता के कानून भी अलग-अलग हैं। समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश के सभी नागरिकों के लिए शादी, संपत्ति और उत्तराधिकार के समान कानून लागू होना। सुप्रीम कोर्ट कई बार विभिन्न धर्मों के शादी, तलाक या गुजारा भत्ता के मुकदमों में समान नागरिक संहिता की वकालत कर चुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने की समान नागरिक संहिता की तरफदारी

सबसे पहले 1985 में शाहबानों केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी बात की थी। इसके बाद 1995 में सरला मुद्गल के मामले में और फिर 2003 में जान वेल्लामेटम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की तरफदारी की।

गोवा में समान नागरिक संहिता लागू

अब एक बार फिर कोर्ट ने इसका पक्ष लिया है और अब तक सरकार द्वारा इस दिशा में कुछ नहीं किए जाने पर भी टिपप्णी की है। गोवा एकमात्र राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। हालांकि वहां कुछ सीमित अधिकारों को संरक्षण दिया गया है।


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