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तीन दिवसीय कोलकाता साहित्य महोत्सव आरंभ

बांग्लादेशी प्रधानमंत्री के जरिये उन्होंने अपने पलों को याद करते हुए कहा कि अगर सरकारी काम में न फंसता तो मुझे याद है कि मैं भी ऐसे पुस्तक मेलों का हिस्सा हुआ करता था।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Thu, 07 Feb 2019 10:06 PM (IST)Updated: Thu, 07 Feb 2019 10:06 PM (IST)
तीन दिवसीय कोलकाता साहित्य महोत्सव आरंभ
तीन दिवसीय कोलकाता साहित्य महोत्सव आरंभ

जागरण संवाददाता, कोलकाता। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि मेरी स्थिति शेख हसीना की तरह हो गई है। हम दोनों के दुख में कोई खास फर्क नहीं। उनके पास भी अब समय नहीं होता और मेरी भी स्थिति समान ही है। वह पब्लिसर एंड बुकसेलर गिल्ड की ओर से आयोजित तीन दिवसीय कोलकाता साहित्य महोत्सव के उद्घाटन के बाद लोगों को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि कवि शंख घोष व विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार समरेश मजूमदार समेत दस देशों से आए साहित्यकार व लेखक उपस्थित थे।

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उद्घाटन के बाद सभागार में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि कुछ दिन पहले ही मैं 84 साल का हुआ हूं। लेकिन, मैं अब भी स्वस्थ हूं। राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद पिछले डेढ़ सालों में मैं देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग दो लाख 63 हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुका हूं। वहीं, भारत से बाहर केवल बांग्लादेश के चटगांव की यात्रा की है, जहां कवि शंख घोष ने बांग्लादेश पुस्तक मेले का उद्घाटन किया था।

उस दिन मैंने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा लिखे एक लेख को पढ़ा और पाया कि हम दोनों के दुख में कोई खास फर्क नहीं था। उनके पास भी अब समय नहीं होता और मेरी भी स्थिति समान ही है। बचपन के दिन और विश्वविद्यालय की यादें आज भी तरोताजा हैं। खैर, बांग्लादेशी प्रधानमंत्री के जरिये उन्होंने अपने पलों को याद करते हुए कहा कि अगर सरकारी काम में न फंसता तो मुझे याद है कि मैं भी ऐसे पुस्तक मेलों का हिस्सा हुआ करता था।

एक आम पाठक की तरह ही मैं भी पुस्तक मेले में आया करता था। वहीं कार्यक्रम में स्वागत अभिभाषण देते हुए गिल्ड के महासचिव त्रिदिब कुमार चट्टोपाध्याय ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आज से नहीं, बल्कि पिछले 40 सालों से कोलकाता पुस्तक मेले का हिस्सा रहे हैं। सातवें दशक के बाद प्रणब दा को जब भी समय मिलता था, वह पुस्तक मेले में चले आते थे। यहां के विभिन्न स्टॉलों पर उनका घूमना, लोगों से बातें करना हम आज भी याद करते हैं।


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