विपक्षी नेताओं से ज्यादा NOTA से खौफजदा हैं राजनीतिक दल, बन रहा हार-जीत का कारण
नजदीकी मुकाबलों में अब अपने विरोधी दलों से अधिक नेताओं को अब नोटा का खौफ सताने लगा है। गौरतलब है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद नोटा अस्तित्व में आया था।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। हालिया सम्पन्न पांच विधानसभा चुनावों समेत हाल के वर्षों के चुनावों में नोटा के कारण कई दिलचस्प ट्रेंड सामने आए हैं। कई राज्यों में उसने न सिर्फ मुख्य राजनीतिक दलों के बीच हार और जीत के अंतर से कई गुना अधिक वोट हासिल किए, बल्कि मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी और अरविंद केजरीवाल की आप समेत अधिकांश ऐसे राजनीतिक दलों से उसे अधिक वोट मिले। यह ट्रेंड सिर्फ राज्य में डाले गए कुल वोटों के मामले में ही सच नहीं है, बल्कि इंडिविजुअल विधानसभा क्षेत्रों में भी नोटा ने जीत-हार की संभावनाओं को गहरे से प्रभावित किया है। इस ट्रेंड के मजबूत होने से राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों को नजदीकी मुकाबलों में अब अपने विरोधी दलों से अधिक अब नोटा का खौफ सताने लगा है। गौरतलब है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद नोटा अस्तित्व में आया था।
इस तरह मजबूत हुआ है यह ट्रेंड
नोटा से उपजे इस नए ट्रेंड को अगर हम हाल में सम्पन्न मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव नतीजों के संदर्भ में देखें तो इसके असर और साफ नजर आएंगे। मध्यप्रदेश में भाजपा को कुल 41 फीसदी और कांग्रेस को 40.9 फीसदी वोट मिला है। दोनों के वोट फीसदी में महज 0.1 फीसदी का अंतर है, जो एक फीसदी का दसवां हिस्सा है। जबकि राज्य में नोटा के खाते में गए वोटों का फीसदी 1.4 है, यानी हार-जीत के अंतर का 14 गुना। कुल मिलाकर 542295 लोगों ने नोटा को वोट दिया है।
इसी तरह की दिलचस्प तस्वीर राजस्थान की भी है। हालिया विधानसभा चुनाव में वहां भाजपा को 38.8 फीसदी और कांग्रेस को 39.3 फीसदी वोट मिला है। दोनों के वोट फीसदी का अंतर महज 0.5 फीसदी है, जबकि राज्य में नोटा के खाते में गए वोटों का प्रतिशत 1.3 है। यानी हार और जीत के अंतर के लगभग तीन गुने से भी अधिक लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया है। वहां कुल मिलाकर 467781 लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया।
हालांकि एंटी इनकम्बेंसी की बयार तेज होने के कारण छत्तीसगढ़ के मामले में तस्वीर थोड़ी अलग है। वहां भाजपा को जहां 33 फीसदी वोट मिला, वहीं कांग्रेस के खाते में 43 फीसदी वोट गया। जबकि नोटा के पक्ष में वोट डालने वालों का फीसदी वहां 2 है, यानी 282744 लोगों ने नोटा को वोट दिया। यहां 2013 में नोटा के पक्ष में 3.07% वोट पड़े थे, जिनकी संख्या 401058 थी। जबकि इस साल भाजपा को 41.04% और कांग्रेस को 40.29% वोट मिला था। साफ तौर पर जीत और हार के बीच का अंतर एक फीसदी से भी कम है।
कमोबेश छत्तीसगढ़ जैसा ही हाल तेलंगाना का भी रहा, हालांकि यहां एंटी इनकम्बैंसी जैसी कोई चीज नहीं थी, बल्कि उसके उलट यहां प्रो-इनकम्बैंसी थी। यानी वर्तमान सरकार के पक्ष में ही हवा चली और टीआरएस को 46.9 फीसदी वोट मिला, जिसपर सवार होकर वह लगभग दो-तिहाई सीटें जीतने में सफल रही। जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 28.4 फीसदी वोट ही मिल पाया। लेकिन नोटा की हवा यहां भी बही और 1.1 फीसदी लोगों ने इसके पक्ष में वोट किया। यहां 224709 लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया।
इसी तरह पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में नोटा के पक्ष में वोट डालने वालों का प्रतिशत 0.5 रहा, जो 2917 वोट के बराबर है। जबकि राज्य में जीत और हार का अंतर 7.4 फीसदी रहा। सरकार बनाने वाली मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को जहां 37.6 फीसदी वोट मिला, वहीं कांग्रेस को मिले वोट का फीसदी 30.2 रहा।
अगर बात 2013 की करें तो मध्य प्रदेश में उस साल हुए विधानसभा चुनावों में जीतने वाली भाजपा को 44.8 फीसदी वोट और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को 36.79 फीसदी वोट मिले। जबकि नोटा के पक्ष में 1.9 फीसदी वोट पड़ा। इसी तरह मध्य प्रदेश के साथ हुए राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा को 45.17 फीसदी और कांग्रेस को 33 फीसदी वोट मिला। जबकि नोटा के पक्ष में 1.93 फीसदी लोगों ने वोट दिया।
मध्य प्रदेश 2018
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विधानसभा क्षेत्र
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जीत हार का अंतर
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नोटा
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ग्वालियर दक्षिण
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121
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1550
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सुवासरा
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350
|
2976
|
जावरा
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511
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1510
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जबलपुर उत्तर
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578
|
1209
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बीना
|
632
|
1528
|
कोलारस
|
720
|
1674
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राजनगर
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732
|
2485
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दमोह
|
798
|
1299
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ब्यावरा
|
826
|
1481
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राजपुर
|
932
|
3358
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छत्तीसगढ़ 2018
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विधानसभा क्षेत्र
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जीत हार का अंतर
|
नोटा
|
धमतरी
|
464
|
551
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खैरागढ़
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870
|
3068
|
कोंडागांव
|
1796
|
5146
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अकलतरा
|
1854
|
2242
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