नीति आयोग की बैठक में विशेष राज्य, वित्तीय मदद जैसे मुद्दों को तानते रहे गैर-भाजपा शासित राज्य
राज्यों की जरूरत की बात तो बाद मे आती, उससे पहले ही विपक्षी मुख्यमंत्री दिल्ली में छिड़े राजनीतिक घमासान को लेकर ज्यादा चिंतित दिखे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संघीय ढांचे को मजबूत कर टीम इंडिया बनाने की सोच चुनावी राजनीति में परवान चढ़नी आसान नहीं है। रविवार को नीति आयोग की बैठक में भी एक तरफ जहां कई मुख्यमंत्री प्रदेश और अपनी वित्तीय जरूरतों का रोना रोते रहे। वहीं गैर-राजग मुख्यमंत्रियों की ओर से अलग खेमा बनाने और दिखाने का प्रयास भी चलता रहा। यह बैठक 2022 तक न्यू इंडिया बनाने के लिए जरूरी रणनीतिक दस्तावेज तैयार करने के लिए बुलाई गई थी।
- नीति आयोग के अंदर और बाहर सांकेतिक विपक्षी एकता
- केजरीवाल मुद्दे पर ममता लेती रहीं नेतृत्व
योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग में जब सभी मुख्यमंत्रियों को सदस्य की तरह शामिल किया गया था तो बड़ी दृष्टि थी। यह माना गया था कि पूरा देश एक साथ मिलकर एक ही एजेंडे पर सोचेगा और बढ़ेगा, लेकिन स्थितियां बहुत बदली हुई नहीं दिखती है। मुख्यमंत्रियों के अपने अपने सुर होते हैं और उनके केंद्र में देश नहीं प्रदेश ही होता है।
रविवार को भी यही हुआ। राज्यों की जरूरत की बात तो बाद मे आती, उससे पहले ही विपक्षी मुख्यमंत्री दिल्ली में छिड़े राजनीतिक घमासान को लेकर ज्यादा चिंतित दिखे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नेतृत्व लेती दिखीं। उन्होंने ही ट्वीट कर जानकारी दी कि उनके साथ-साथ कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और ले. गवर्नर अनिल बैजल के बीच छिड़ी जंग को समाप्त करवाएं। हालांकि मुख्य बैठक में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
यह और बात है कि विपक्षी एकता का नेतृत्व करने की कवायद में जुटी कांग्रेस केजरीवाल सरकार को इसके लिए दोषी ठहरा चुकी है। बताते हैं कि एक रात पहले ममता बनर्जी की पहल पर ही चार मुख्यमंत्रियों ने केजरीवाल के घर जाने का फैसला लिया था। एक तरह से यह कोशिश हुई कि नीति आयोग की बैठक से पहले ही विपक्षी एकजुटता का संकेत दिया जाए।
बैठक शुरू हुई तो वहां भी सुर लगभग वैसा ही था। गैर-राजग प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की अपनी अपनी मांग थी और विशेष वित्तीय मदद की दरकार तो हर किसी को थी। यह दीगर बात है कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार राज्यों को 32 फीसद से बढ़ाकर 42 फीसद फंड दिया गया है और अब केंद्र के पास इतना फंड नहीं रह गया कि वह राज्यों पर मेहरबानी कर सकें। विशेष राज्य के प्रावधान को वित्त आयोग ने खारिज कर दिया है, लेकिन बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए वह चुनावी मुद्दा भी है लिहाजा यह जोर शोर से उठा।
बड़ी जनसंख्या वाले राज्यों को ध्यान में रखते हुए 15वें वित्त आयोग ने 2011 जनगणना को आधार बनाया है तो उसके खिलाफ खड़े होने वालों में दक्षिण के गैर-राजग राज्य ही नहीं, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी भी हैं। ध्यान रहे कि केंद्र इस तरह की मांग पर यह कहकर सवाल उठाता रहा है कि राज्य अगर अपनी सोच सीमित रखेंगे तो देश की सेना और अन्य जरूरतों के बारे में कौन सोचेगा।
बैठक में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी योजनाओं के साथ-साथ केंद्रीय योजनाओं के जरिए जमीन तक पहुंचने वाले फायदे गिनाते दिखे। केवल भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के भाषणों में ही केंद्रीय योजनाओं का उल्लेख हुआ।