मध्य प्रदेश में जनता को ना कर्जमाफी रास आई और ना सौदेबाजी के आरोप, भाजपा के आगे विफल रही कांग्रेस
जनता को ना तो कांग्रेस की आक्रामक रणनीति स्वीकार हुई और ना ही उसका संगठन भाजपा के आगे टिक सका। मैदानी मोर्चे पर ना तो युवा कांग्रेस नजर आई और ना ही छात्र इकाई (NSUI)। महिला कांग्रेस सहित अन्य प्रकोष्ठों की भूमिका भी सीमित रही।
वैभव श्रीधर, भोपाल। मध्य प्रदेश में सत्ता का भविष्य तय करने वाले 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया कि जनता को ना तो कमल नाथ सरकार की कर्जमाफी आकर्षित कर सकी और ना ही उसे सौदेबाजी के आरोप पसंद आए। जनता को ना तो कांग्रेस की आक्रामक रणनीति स्वीकार हुई और ना ही उसका संगठन भाजपा के आगे टिक सका। मैदानी मोर्चे पर ना तो युवा कांग्रेस नजर आई और ना ही छात्र इकाई (NSUI)। महिला कांग्रेस सहित अन्य प्रकोष्ठों की भूमिका भी सीमित रही। प्रत्याशियों का प्रचार अभियान भी बिखरा-बिखरा रहा। माना जा रहा है कि इस परिणाम का असर संगठन पर भी पड़ेगा और अब परिवर्तन की आवाज बुलंद होगी।
उपचुनाव में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस ने कर्जमाफी के साथ राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए विधायकों की सौदेबाजी को मुख्य मुद्दा बनाया था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर कांग्रेस के तमाम नेता इन मुद्दों के इर्द-गिर्द ही चुनाव अभियान को केंद्रित रखे रहे। कर्जमाफी को लेकर तमाम प्रमाण भी प्रस्तुत किए पर, जनता ने इन्हें नकार दिया। वहीं, सौदेबाजी, बिकाऊ-टिकाऊ के आरोप, गद्दारी के रेट कार्ड जारी करना भी पसंद नहीं आया। पहली बार कांग्रेस में बूथ स्तर पर तैयारियां की गई थीं, लेकिन टीम भाजपा के आगे ये टिक नहीं सकीं।
सूत्रों का कहना है कि संगठन में बदलाव की जो बात अभी दबे स्वर में सुनाई दे रही थी, वह अब खुलकर सामने आएगी। पार्टी में एक व्यक्ति, एक पद की बात फिर उठ सकती है। अभी कमल नाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। उपचुनाव के मीडिया प्रभारी केके मिश्रा का कहना है कि परिणामों की समीक्षा की जाएगी। जनमानस भाजपा के खिलाफ था। कमल नाथ की अगुआई में पार्टी ने पूरी एकजुटता के साथ अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचाने का प्रयास किया था। इसमें कमी कहां रह गई, यह समीक्षा के बाद सामने आएगा।
कमल नाथ के हाथ में थे पूरे सूत्र
उपचुनाव के सारे सूत्र पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के हाथ में थे। उन्होंने ही सर्वे के माध्यम से प्रत्याशी चयन किया और चुनाव अभियान की रणनीति को अंतिम रूप दिया। चुनाव प्रबंधन और अभियान समिति के नाम पर कुछ नहीं हुआ। सभी विधानसभा क्षेत्रों के अलग-अलग वचन पत्र बनाए गए, पर इनमें कोई आकर्षण नहीं रहा। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने परदे के पीछे से भूमिका निभाई पर वह 2018 के विधानसभा जैसी नहीं थी। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और कांतिलाल भूरिया ने भी दौरे किए, पर वे असरदार साबित नहीं हुए।