राहुल का महिला आरक्षण बिल पर मोदी सरकार पर दबाव का नया सियासी दांव
महिला आरक्षण बिल पर राहुल गांधी मोदी सरकार पर सियासी दबाव बनाने की रणनीति में जुटे हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने महिला आरक्षण बिल पर मोदी सरकार की सियासी घेरेबंदी के लिए अब पार्टी शासित राज्य की विधानसभा से इसको लेकर प्रस्ताव पारित करने का दांव चल दिया है। राहुल ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को पत्र लिखकर इसके लिए अनुरोध भी किया है। संकेत हैं कि कांग्रेस नेतृत्व कर्नाटक की अपनी गठबंधन सरकार को भी विधानसभा से यह प्रस्ताव पारित करने के लिए कहेगा।
राहुल का यह दांव संसद में सालों से लटके महिला आरक्षण बिल को पारित कराने के लिए राजग सरकार पर दबाव बनाने के तौर पर देखा जा रहा है। कैप्टन अमरिंदर को लिखे अपने पत्र में कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि महिलाओं को संसद और विधानसभा में उनका वाजिब हक दिलाने के लिए महिला आरक्षण बिल का संसद से पारित होना जरूरी है। इसीलिए विधानसभा से इस बारे में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाए। विधानसभा के जरिये महिला आरक्षण विधेयक संसद से पारित कराने का प्रस्ताव केंद्र को भेजने के पीछे कांग्रेस अध्यक्ष का साफ मकसद मोदी सरकार पर दबाव बढ़ाना है।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसद का आरक्षण दिलाने वाले बिल को राज्यसभा ने 9 मार्च, 2010 को पारित कर दिया था। लेकिन लोकसभा में इस विधेयक के लिए कभी वोट नहीं पड़े।
लिहाजा, 2014 में 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही यह विधेयक भी खत्म हो गया था। इसलिए लोकसभा में महिला आरक्षण के विधेयक को नए सिरे से पेश करना होगा। जबकि इस बार का शीतकालीन सत्र लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी पूर्णकालिक सत्र है।
हालांकि राहुल गांधी ने मानसून सत्र से पहले भी महिला आरक्षण बिल पारित कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल है और कांग्रेस के समर्थन के बाद सरकार को विधेयक पारित कराने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
हालांकि महिला आरक्षण बिल पर गहरे सियासी विवाद को देखते हुए राजग सरकार फिलहाल इसे आगे बढ़ाने का कोई इरादा नहीं दिखा रही। इसीलिए राहुल मोदी सरकार पर सियासी दबाव बनाने की रणनीति में जुटे हैं ताकि 2019 के संग्राम में इस मुद्दे पर भाजपा की घेरेबंदी की जा सके।
राहुल ने कैप्टन को लिखे पत्र में इस बात का भी जिक्र किया कि संविधान के 73वें संशोधन के बाद महिलाओं ने पंचायत व निकाय स्तर पर अपनी भूमिका का बखूबी निर्वाह कर अपने मुकाम बनाए हैं। उनकी यह कामयाबी महिला आरक्षण के विरोधियों के तर्को को गलत साबित करती है।