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Sengol: दक्षिण की राजनीति पर असर डाल सकता है सेंगोल, तम‍िलनाडु में चुनाव से सालभर पहले ही गरमायी स‍ियासत

उत्तर भारत की राजनीति में पिछले नौ वर्षों से प्रथम पंक्ति में खड़ी भाजपा अब दक्षिण भारत में भी पांव पसारने की कोशि‍श कर रही है लेक‍िन दक्षिण के पांच राज्यों की कुल 129 संसदीय सीटों में अभी उसके पास सिर्फ 29 सीटें ही हैं।

By Jagran NewsEdited By: Vinay SaxenaPublished: Mon, 29 May 2023 08:54 PM (IST)Updated: Mon, 29 May 2023 08:54 PM (IST)
Sengol: दक्षिण की राजनीति पर असर डाल सकता है सेंगोल, तम‍िलनाडु में चुनाव से सालभर पहले ही गरमायी स‍ियासत
उत्तर की राजनीति में प्रथम पंक्ति में खड़ी भाजपा ने दक्षिण में बनाया सेंगोल को सहारा।

नई दिल्ली, अरव‍िंद शर्मा। चोल शासन में न्याय का प्रतीक सेंगोल (राजदंड) नए संसद भवन की सिर्फ शोभा ही नहीं बनेगा, बल्कि दक्षिण भारत की राजनीति को भी गहरे रूप से प्रभावित कर सकता है। खासकर तमिलनाडु और उसके आसपास के राज्यों में इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता है।

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उत्तर भारत की राजनीति में पिछले नौ वर्षों से प्रथम पंक्ति में खड़ी भाजपा अब दक्षिण भारत में भी पांव पसारने की कोशि‍श कर रही है, लेक‍िन दक्षिण के पांच राज्यों की कुल 129 संसदीय सीटों में अभी उसके पास सिर्फ 29 सीटें ही हैं। दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा 39 सीटों वाला राज्य तमिलनाडु में भाजपा की उपस्थिति शून्य है।

सेंगोल के जरिए सेंध लगाने में जुटी भाजपा

बनारस में तमिल संगम के आयोजन के बाद अब सेंगोल के जरिए सेंध लगाने में जुटी भाजपा के ताजा प्रयासों ने चुनाव से लगभग वर्ष भर पहले ही दक्षिण की राजनीति को गर्मा दिया है। एम करुणानिधि और जयललिता की क्षेत्रीय राजनीति ने तमिलनाडु में कांग्रेस की पकड़ को धीरे-धीरे कमजोर कर दिया और भाजपा को भी प्रवेश का मौका नहीं दिया। हालांकि, दोनों नेताओं के निधन के बाद उनके दलों की भी राज्य की सत्ता पर पकड़ थोड़ी ढीली पड़ती दिख रही है, लेकिन गठबंधन की राजनीति के सहारे अभी भी दोनों के बीच हार-जीत की आंख मिचौली चल रही है।

राज्‍य में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी डीएमके की है सरकार

राज्य में अभी कांग्रेस की सहयोगी पार्टी डीएमके की सरकार है और एमके स्टालिन मुख्यमंत्री हैं। दो वर्ष पहले 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने भाजपा के सहयोगी एआईएडीएमके को सत्ता से बेदखल किया था। लोकसभा चुनाव में भी दोनों साफ हो गए थे। भाजपा अपनी एकमात्र सीट भी हार गई थी और एआईएडीएमके 37 से एक घटकर एक पर आ गई थी।

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दक्षिण भारत के राज्यों पर नजर

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर भारत में बंगाल ने बड़ा सहारा दिया था, जहां से उसने 18 सीटें निकाली थीं। इस बार उसकी नजर अतिरिक्त सीटें निकालने के लिए दक्षिण भारत के राज्यों पर है। ह‍िंदू बहुल्‍य आबादी और धार्मिक भावनाओं वाले तमिलनाडु में भाजपा को सेंगोल से बड़ा संबल मिल सकता है।

सेंगोल के सहारे तमिलनाडु में भाजपा ने प्रवेश का रास्ता खोला

पिछले संसदीय चुनाव में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में भाजपा का खाता भी नहीं खुल पाया था। ऐसे में कर्नाटक में हार के बाद भाजपा ने दक्षिण के राज्यों पर फोकस बढ़ा दिया है। कर्नाटक के बाद उसे नया इलाका चाहिए। बस, माध्यम की तलाश है। नए संसद भवन के उद्घाटन में सेंगोल को महत्व देकर यूपी, महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार के बाद सबसे अधिक संसदीय सीटों वाले तमिलनाडु में भाजपा ने प्रतीक के सहारे प्रवेश का रास्ता खोल दिया है।


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