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RBI के नए गवर्नर ने कहा- अधूरे काम पूरे करने से ज्यादा साख सुधारने की जिम्मेदारी

आरबीआइ और सरकार के बीच चल रहे विवाद को दास किस तरह से डील करते हैं यह तो वक्त बताएगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 11 Dec 2018 09:28 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 09:28 PM (IST)
RBI के नए गवर्नर ने कहा- अधूरे काम पूरे करने से ज्यादा साख सुधारने की जिम्मेदारी
RBI के नए गवर्नर ने कहा- अधूरे काम पूरे करने से ज्यादा साख सुधारने की जिम्मेदारी

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। रिजर्व बैंक के नए गवर्नर शक्तिकांत दास के सामने न सिर्फ पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के अधूरे कामों को भारी भरकम एजेंडा है बल्कि उन्हें आरबीआइ की साख को स्थापित करने की बड़ी जिम्मेदारी भी निभानी होगी। सबसे अहम बात है कि दास को हालात को समझने के लिए बहुत ज्यादा समय नहीं मिलेगा क्योंकि सिर्फ तीन दिन बाद उनके नेतृत्व में आरबीआइ के निदेशक बोर्ड की पहली बैठक होने वाली है। इस बैठक में उन्हें सबसे पहले पिछली बोर्ड बैठक (19 नवंबर) को लिए गए फैसलों को लागू करने पर सरकार के प्रतिनिधियों और आरबीआइ बोर्ड के बीच सहमति बनानी होगी।

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आरबीआइ और सरकार के बीच चल रहे विवाद को दास किस तरह से 'डील' करते हैं यह तो वक्त बताएगा लेकिन उन्हें इस बात का ख्याल रखना होगा उनके साथ अभी पूर्व गवर्नर की टीम ही होगी। इसमें पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य भी शामिल हैं जिन्होंने सरकार के हस्तक्षेप के खिलाफ सबसे पहले सार्वजनिक बयान दिया था।

माना जाता है कि पिछली बोर्ड की बैठक में जिन मुद्दों पर फैसला हुआ उसको लेकर आचार्य के अलावा आरबीआइ के कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी असहज हैं। इसमें खासतौर पर आरबीआइ के रिजर्व फंड के इस्तेमाल के मौजूदा नियमों में बदलाव को लेकर गठित होने वाली समिति के मुद्दे पर तनाव हो सकता है।

पिछली बैठक के बाद बताया गया कि केंद्रीय बैंक और वित्त मंत्रालय मिल कर समिति के सदस्यों को तय करेंगे लेकिन तकरीबन तीन हफ्ते बीत जाने के बावजूद ऐसा नहीं हुआ है। पटेल इस प्रस्ताव के सख्त खिलाफ थे। इस बारे में दास के कदम पर सभी की नजर होगी।

दास को तत्काल जिस मुद्दे पर दो टूक फैसला करना होगा वह होगा प्रोम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के दायरे से सरकारी बैंकों को बाहर निकालने के लिए क्या रास्ता अख्तियार किया जाता है। अभी यह सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा है। इसके दायरे में 11 बैंक है जो कर्ज नहीं बांट पा रहे हैं। चुनावी वर्ष में सरकार को देश के कई हिस्सों से यह सूचना आ रही है कि छोटे व मझोले उद्योगों को कर्ज नहीं मिल रहा है।

सरकार चाहती है कि पीसीए नियमों में समीक्षा करते हुए कम से कम तीन चार बैंकों को अभी इसके दायरे से बाहर निकाला जाए ताकि वे कर्ज बांट सके। इसी तरह से उन्हें ब्याज दरों को लेकर भी आरबीआइ और सरकार के बीच चल रहे खींचतान पर आम राय कायम करनी होगी।

इसके अतिरिक्त दास को बैंकिंग दिशानिर्देशों को लेकर चल रही बहस का हल भी ढूंढना होगा। खासतौर पर निजी बैंकों में प्रमोटर इक्विटी घटाने के मसले पर तुरंत निर्णय की आवश्यकता है। कोटक महिंद्रा बैंक और बंधन बैंक में प्रमोटर इक्विटी घटाने की समय सीमा काफी नजदीक आ गई है और दोनों ही बैंक आरबीआइ से समय में ढील देने की मांग कर चुके हैं।

नए गवर्नर के सामने पटेल के अधूरे एजेंडे

1. बैंकिंग व्यवस्था में फंड की उपलब्धता बढ़ाना

2. पीसीए के अंकुश से कुछ सरकारी बैंकों को बाहर निकालना

3. छोटे व मझोले उद्योगों के एक वर्ग को दिवालिया कानून से राहत दिलाना

4. फरवरी, 2018 में जारी एनपीए के नए नियमों की पुर्नसमीक्षा करना

5. बासेल-3 नियमों में कुछ ढिलाई ला कर सरकारी बैंकों को राहत देना

6. एनबीएफसी के समक्ष उत्पन्न समस्या को समाधान निकालना

7. देश में एक मजबूत ऋण बाजार को स्थापित करने की प्रक्रिया तेज करना।


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