भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकता है तालिबान पर अमेरिका का नया रुख
भारत अफगानिस्तान के मौजूदा संघीय ढांचे में तालिबान की भूमिका को खारिज करता रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अगर अमेरिकी प्रशासन तालिबान से सीधी बात शुरु करता है और वहां शांति स्थापित करने में तालिबान की भूमिका बढ़ती है तो यह भारतीय कूटनीति के लिए एक बड़ा धक्का होगा। अपने पुराने अनुभवों के आधार पर भारत अफगानिस्तान में जारी शांति प्रक्रिया में तालिबान को किसी भी प्रकार की भूमिका देने के खिलाफ रहा है। भारत का मानना है कि तालिबान की भूमिका बढ़ने का सीधा मतलब है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान का परोक्ष तौर पर घुसपैठ। पूर्व में पाकिस्तान व तालिबान का गठबंधन भारतीय कूटनीति के लिए भारी सरदर्द साबित हो चुका है। ऐसे में अफगानिस्तान को लेकर होने वाली संभावित बातचीत पर भारत भी पैनी नजर रख रहा है।
तालिबान को अहमियत देने के हमेशा खिलाफ रहा है भारत
भारत अफगानिस्तान के मौजूदा संघीय ढांचे में तालिबान की भूमिका को खारिज करता रहा है, लेकिन पिछले हफ्ते विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से जब अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़ती अहमियत के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि, ''भारत अफगानिस्तान की मौजूदा समस्या के समाधान के लिए सिर्फ एक फार्मूले का समर्थन करता है। यह फार्मूला अफगानिस्तान के लोगों की तरफ से तैयार होनी चाहिए और उसे लागू भी स्थानीय लोगो को ही करनी चाहिए।'' उम्मीद की जा रही है कि विदेश मंत्रालय की तरफ से अमेरिका-तालिबान के बीच होने वाली संभावित वार्ता पर एक विस्तृत प्रतिक्रिया जल्द ही जारी की जाएगी।
अमेरिका से पहले रूस और चीन भी अफगानिस्तान में स्थाई शांति स्थापित करने के लिए तालिबान की सक्रिय भूमिका के प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं। कहने की जरुरत नहीं कि यह प्रस्ताव पाकिस्तान का है जिस पर शुरु से तालिबान को समर्थन देने और उसके एक बड़े धड़े को पालन-पोषण का आरोप लगता रहा है। वर्ष 1996 से वर्ष 2001 के बीच अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार थी और उसे सिर्फ पाकिस्तान ने मान्यता दी थी। तालिबान और पाकिस्तान के गठजोड़ ने कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए हर मुमकिन कोशिश की।
कश्मीर में जिहाद के नाम पर आतंकियों को प्रशिक्षित करने और उन्हें वहां भेजने की व्यवस्था करने में तालिबान की अहम भूमिका थी। बाद में भारतीय कंपनी इंडियन एयरलाइंस के विमान को अपहरण करके काबुल ले जाने और यात्रियों के बदले भारतीय जेल में बंद कश्मीरी आतंकियों को छोड़ने में भी तालिबान सरकार की भूमिका सामने आई।
तालिबान की बढ़ती अहमियत इस लिहाज से भी भारत के लिए चिंता का सबब है कि अब अफगानिस्तान में भारत का बहुत कुछ दांव पर है। पिछले डेढ़ दशक में भारत अफगानिस्तान में दो अरब डॉलर की परियोजनाओं में निवेश कर चुका है। जबकि एक अरब डॉलर की परियोजनाएं विभिन्न चरणों में है। इसके अलावा ईरान के चाबहार पोर्ट से अफगानिस्तान के अंदरुनी हिस्से को सड़क व रेल नेटवर्क से जोड़ने की योजना पर भी भारत काम कर रहा है।
अफगानिस्तान में विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए भारत चीन व दक्षिण कोरिया के साथ बात कर रहा है। अफगानिस्तान की सरकार व सैन्य बलों को कई स्तरों पर भारत प्रशिक्षण दे रहा है। कट्टर इस्लाम का समर्थक तालिबान अगर वहां किसी भी तरह से सत्ता में आने में सफल होता है तो इन सभी परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है।