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दिल्‍ली सरकार के कागजी जनसुविधाओं की पोल खोल रही राजधानी में भूख से हुई मौतें

पिछले करीब 12 वर्षो में भारत का सकल घरेलू उत्पाद औसतन आठ फीसद रहा है। बावजूद इसके भुखमरी के मामले सामने आ रहे हैं

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 27 Jul 2018 01:58 PM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2018 01:58 PM (IST)
दिल्‍ली सरकार के कागजी जनसुविधाओं की पोल खोल रही राजधानी में भूख से हुई मौतें
दिल्‍ली सरकार के कागजी जनसुविधाओं की पोल खोल रही राजधानी में भूख से हुई मौतें

रमेश ठाकुर। दिल्ली की तीन सगी बहनों की भूख से मौत की शर्मनाक घटना ने सरकार की कागजी जनसुविधाओं की पोल खोल दी है। साथ ही केंद्र सरकार की भूख से लड़ने की उस लड़ाई को भी पीछे धकेलने का काम किया है। लानत है ऐसी हुकूमत पर जो भूखों का पेट तक न भर सके। एक सर्वे संस्था की रिपोर्ट पर गौर करें तो दिल्ली में सबसे ज्यादा बेघर और गरीब रहते हैं। ये गरीब ऐसे प्रांतों और जगहों से आते हैं जहां भुखमरी की समस्या विकराल रूप से है। गरीब इस मकसद से दिल्ली कूच करते हैं कि मेहनत-मजदूरी करके पेट की आग शांत कर सकेंगे, लेकिन उनको क्या पता कि उनके हिस्से के भोजन पर यहां पहले से ही पहरा बैठा हुआ है। मंगल सिंह भी दो साले पहले अपनी तीन बेटियों के साथ दिल्ली इसी उद्देश्य से आया था कि वहां भर पेट खाने के अलावा अच्छी जिंदगी जी सकेगा। उनकी बच्चियां किसी अच्छे स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगी, लेकिन उसे क्या पता था कि गरीबी का दंश उसे यहां भी नहीं छोड़ेगा। पापी पेट ने मंगल सिंह की जिंदगी को कुछ क्षण में तहस-नहस कर दिया।

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दिल-दहला देने वाली यह घटना दिल्ली सरकार के गाल पर तमाचा मारने जैसी है। विकल्प की राजनीति के नाम सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल के सभी वायदे आज हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। जनसुविधाएं सफेद हाथी साबित हो रही हैं। घटना पूर्वी दिल्ली के मंडावली में घटी है। यह इलाका दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र में आता है। घटना की मूल सच्चाई जानने के लिए प्रशासन ने तीनों बच्चियों के शव का दो बार पोस्टमॉर्टम कराया है। दोनों रिपोर्ट में पता चला है कि उनके पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं था। भूख के कारण उनकी आतें आपस में चिपटी पाई गई हैं। पोस्टमॉर्टम करने वाले चिकित्सक ने खुलासा किया है कि बच्चियों को करीब एक सप्ताह से खाना नहीं मिला था। इसलिए भुखमरी के कारण ही उनकी मौत हुई है।

घटना की निंदा शब्दों से नहीं की जा सकती। मंडावली घटना पर राज्य सरकार पर लोग तीखे सवाल उठा रहे हैं। निश्चित रूप से सरकार के पास जबाव नहीं होगा, लेकिन तीन बहनों की एक साथ हुई मौत ने यह भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर हमारा समाज किस तरह बढ़ रहा है? झारखंड में भी कुछ इसी तरह पिछले साल एक बच्ची खाना मांगते-मांगते मर गई थी, लेकिन किसी ने भी उस समय उसे खाना नहीं दिया। सरकारी सहयोग के साथ-साथ आज मानवीय वेदना भी इस कदर आहत हो गई है जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। दूसरों के दुखों में शामिल होने के बजाय लोग पीछा छुड़ाकर भागते नजर आते हैं। दिल्ली की इस घटना ने सरकार की समूची व्यवस्था पर प्रहार किया है। हादसे ने दिल्ली सरकार की राशन को डोर टू डारे पहुंचाने वाली योजना की भी कलई खोल दी है।

सवाल उठता है गरीबों को मुहैया कराने वाला भोजन आखिर किसके पेट में जा रहा है? या फिर सिर्फ कागजों में भोजन बांटा जा रहा है? मंडावली की घटना उन सरकारी आंकड़ों की चुगली करने के लिए काफी है जिसमें भुखमरी पर काबू पाने की बात कही जाती है। पिछले करीब 12 वर्षो में भारत का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी औसतन आठ फीसद रहा है। बावजूद इसके भुखमरी की समस्या में बढ़ोतरी ही हो रही है। इससे यह बात साफ होती है कि तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद देश में भूख की प्रवृति लगातार बनी हुई है। ज्यादा भूख का मतलब है, ज्यादा कुपोषण। देश में कुपोषण की दर क्या है? इसका अगर अंदाजा लगाना हो तो लंबाई के हिसाब से बच्चों के वजन का आंकड़ा देख लेना चाहिए। आज देश में 21 फीसद से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। दुनिया भर में ऐसे महज तीन देश जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान हैं, जहां 20 फीसद से अधिक बच्चे कुपोषित हैं।

कागजों में संपन्न दिल्ली में भी कुपोषण की समस्या दूसरे राज्यों से कम नहीं है। यहां भी भुखमरी से लोग दम तोड़ रहे हैं।1बच्चियों की मौत की घटना को लेकर दिल्ली सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। हालांकि जांच करने की जरूरत अब इसलिए नहीं है, क्योंकि सच्चाई तो सामने आ ही गई है। दिल्ली सरकार दावा करती है कि उसके पास अन्न की कमी नहीं है। सवाल उठता है कि जब अन्न की कमी नहीं है तो यह घटना क्यों घटी? अन्न को लेकर अगर पूरे देश की बात करें तो 1950 के मुकाबले अब सरकारों के पास पांच करोड़ टन अधिक अनाज हैं। बावजूद इसके मुल्क में बहुत से लोग भुखमरी के कगार पर हैं। ऐसा नहीं है कि यहां अनाज उत्पादन देश की आबादी के अनुपात में कम है। दरअसल असल समस्या है अन्न की बर्बादी।

देश में करीब 40 फीसद अनाज उत्पादन और आपूर्ति के विभिन्न कारणों में बर्बाद हो जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 2013 के अध्ययन के मुताबिक उस वर्ष प्रमुख कृषि उत्पादों की बर्बादी से देश को 92.651 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। वह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। दिल्ली की घटना के बाद अब राजनीति शुरू हो गई है। मृतक बच्चियों के परिजनों से सत्ता-विपक्ष आदि के नेताओं के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है। दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी भी भूख से मरी तीन बहनों के परिवार से मिलकर उनके पिता को पचास हजार रुपये की मदद की। इसके अलावा दिल्ली सरकार से भी सहयोग मिलने की बात कही जा रही है, लेकिन सवाल उठता है कि यह पहले क्यों नहीं किया गया? किसी की जान जाने के बाद ही ये सब क्यों किया जाता है?

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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