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दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज की ट्रिपल तलाक अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका

तीन तलाक अध्यादेश को लेकर याचिका में कहा गया है कि यह सीधे तौर पर कानून का दुरुपयोग है। सके साथ ही कहा गया है कि ये अध्यादेश अस्पष्ट और अनिश्चित है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 08:11 AM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 11:39 AM (IST)
दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज की ट्रिपल तलाक अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका
दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज की ट्रिपल तलाक अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका

नई दिल्ली (जेएनएन)। ट्रिपल तलाक को लेकर मोदी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिका खारिज करते हुए कहा कि जब एक बार सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है, तो यह सरकार तय करे।

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बता दें कि अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। तीन तलाक अध्यादेश को लेकर याचिका में कहा गया था कि यह सीधे तौर पर कानून का दुरुपयोग है। इसके अलावा यह आर्टिकल 14, 15, 20,21 और 25 का भी सीधे तौर पर उल्लंघन है।

यह याचिका शाहिद आजाद नाम के व्यक्ति ने लगाई थी। अध्यादेश को याचिका में क्रिमिनल और सिविल लॉ स्कीम का उल्लंघन बताया गया था। इसके साथ ही कहा गया है कि ये अध्यादेश अस्पष्ट और अनिश्चित है।

याचिकाकर्ता शाहिद का कहना है कि ट्रिपल तलाक को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश कानूनी रूप से अनावश्यक और जबरदस्ती मुस्लिम समुदाय पर थोपा गया है। 

गौरतलब है कि केंद्रीय कैबिनेट ने 19 सितंबर को बड़ा फैसला लेते हुए तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी। अध्यादेश में तीन तलाक को गैर जमानती अपराध माना गया है। राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पास नहीं होने के बाद केंद्र सरकार को अध्यादेश का रास्ता अपनाना पड़ा। हालांकि, सरकार के पास अब छह महीने का समय है। इन छह महीनों में इसे संसद से पारित कराना होगा।

तीन तलाक अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसके बारे में जानकारी दी थी। रविशंकर ने कहा था कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष मुल्क में बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ नाइंसाफी हो रही थी। तीन तलाक का यह मुद्दा नारी न्याय और नारी गरिमा का मुद्दा है।

जानें अध्यादेश के बारे में

1. यह अपराध संज्ञेय तभी होगा, जब महिला या उसके परिजन खुद इसकी शिकायत करेंगे।

2. खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी एफआईआर दर्ज करने का अधिकार

3. पड़ोसी या कोई अनजान शख्स इस मामले में केस दर्ज नहीं कर सकता है।

4. जब पीड़िता चाहेगी तभी समझौता होगा। पीड़िता की सहमति से ही मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है

5. तीन तलाक पर कानून में छोटे बच्चों की कस्टडी मां को दिए जाने का प्रावधान है।

6. पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण का अधिकार मजिस्ट्रेट को तयह करना होगा। और ये पति को देना होगा।

गौरतलब है कि विपक्ष की मांग के बाद मोदी सरकार ने इस बिल में तीन संशोधन किए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्‍त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से दिए भाषण में तीन तलाक का जिक्र किया था। मोदी ने कहा था कि तीन तलाक प्रथा मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय है। तीन तलाक ने कई महिलाओं का जीवन बर्बाद कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को बताया था गैरकानूनी

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को एक बार में तीन तलाक को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया था।सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले इस साल एक बार में तीन तलाक के 177 मामले सामने आए थे और फैसले के बाद 66 मामले सामने आए।


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