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1984 anti-Sikh riots case: 1984 में सिख विरोधी दंगों में पुलिस की भूमिका पर SC में सुनवाई

1984 anti-Sikh riots case केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 1984 सिख विरोधी दंगा मामले में जस्टिस ढींगरा की अगुवाई वाली SIT की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 11:25 AM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 08:19 AM (IST)
1984 anti-Sikh riots case: 1984 में सिख विरोधी दंगों में पुलिस की भूमिका पर SC में सुनवाई
1984 anti-Sikh riots case: 1984 में सिख विरोधी दंगों में पुलिस की भूमिका पर SC में सुनवाई

नई दिल्ली, एएनआइ।  1984 anti-Sikh riots case: केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में जस्टिस ढींगरा की अध्यक्षता वाली एसआइटी की सिफारिशें उसने स्वीकार कर ली हैं और कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी। दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता वाली एसआइटी ने दंगों के बंद किए जा चुके 186 मामलों की जांच कर रिपोर्ट सौंपी है। इसमें पुलिस और कुछ मामलों में निचली अदालतों पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

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सुप्रीम कोर्ट की गठित एसआइटी की जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि उसने जिन मामलों की जांच की उनमें से पांच मामले वह हैं, जिनमें दिल्ली के रेलवे स्टेशनों पर सिखों का कत्लेआम किया गया था। एक और दो नवंबर, 1984 को दिल्ली के पांच रेलवे स्टेशनों-नांगलोई, किशनगंज, दयाबस्ती, शहादरा और तुगलकाबाद में सिख यात्रियों को ट्रेनों से खींच-खींचकर मौत के घाट उतारा गया था। लेकिन इन मामलों में पुलिस ने घटनास्थल से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया। पुलिस ने कहा कि पुलिस बल बहुत कम था और दंगाई असंख्य थे, इसलिए गिरफ्तारी नहीं हुई।

बुधवार को सुनवाई के दौरान दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी के सदस्य गुरलाद सिंह कहलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 1984 के सिख विरोधी दंगों के बंद किए मामलों की पुन: जांच की मांग की है। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में एसआइटी गठित की थी जिसे 186 मामलों की जांच सौंपी थी। एसआइटी ने जांच करके अपनी फाइनल रिपोर्ट दे दी है।

पुलिस ने दंगाइयों का साथ दिया

गुरलाद सिंह के वकील आरएस सूरी ने बताया कि रिपोर्ट से पता चलता है कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने दंगाइयों का साथ दिया। ऐसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। तभी केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार जस्टिस ढींगरा कमेटी की रिपोर्ट में की गई सिफारिशें स्वीकार करती है और कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी। सूरी ने कहा कि वह एसआइटी रिपोर्ट के बारे में उचित अर्जी दाखिल करेंगे। कोर्ट ने उन्हें इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया। तुषार मेहता की दलीलों के बाद कोर्ट ने एसआइटी को आदेश दिया है कि वह मामले से जुड़ा सारा रिकार्ड गृह मंत्रलय को वापस करे।

बहुत से मामले एक साथ नत्थी

एसआइटी रिपोर्ट में 1984 दंगों की जांच और ट्रायल पर सवाल उठाए गए हैं। बहुत से मामलों को पुलिस ने एक साथ संलग्न करके कोर्ट में केस दाखिल किया, जिसके कारण सुनवाई में देर होती रही। कानूनन एकसमान अधिकतम पांच मामलों को ही एक साथ संलग्न किया जा सकता है। एक एफआइआर का उदाहरण दिया गया जिसमें पुलिस ने 56 हत्याओं के मामले में एक साथ आरोपपत्र दाखिल किया, लेकिन कोर्ट ने सिर्फ पांच हत्याओं के मामले में ही चार्ज फ्रेम किए। यह पता नहीं चला कि बाकी के मामलों में आरोप क्यों तय नहीं हुए। यहां तक कि कोर्ट ने भी पुलिस से मामलों को अलग-अलग करने का आदेश नहीं दिया। गवाहों ने अदालत में कहा कि वह अभियुक्त को पहचान सकते हैं लेकिन कोर्ट में मौजूद सरकारी वकील ने गवाह से अभियुक्त को पहचानने को नहीं कहा और न ही जज ने कोई सवाल पूछे। इन कारणों से ज्यादातर मामलों में अभियुक्त बरी हो गए। एसआइटी ने रिपोर्ट में बहुत से मामलों में अपील दाखिल करने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में कल्याणपुरी थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने उसके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की।


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