1947 के बंटवारे में हिंदू-मुस्लिम आबादी का पूरा स्थानांतरण चाहते थे आंबेडकर : सुब्रमण्यम स्वामी
नेहरू ने 1950 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के साथ एक संधि की लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी इस संधि का पालन नहीं किया और वहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होने लगे।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि देश के विभाजन के समय डॉक्टर भीमराव आंबेडकर चाहते थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच हिंदू और मुस्लिम आबादी का स्थानांतरण भी पूरी तरह होना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह का झगड़ा होने की संभावना न रहे, लेकिन यह प्रस्ताव पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार नहीं किया।
जवाहर लाल नेहरू ने 1950 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के साथ एक संधि की, जिसमें दोनों देशों ने अपने-अपने यहां के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने का वचन दिया। लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी इस संधि का पालन नहीं किया और वहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होने लगे।
स्वामी ने कहा कि वर्तमान नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए)-2019 में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से विस्थापित केवल 31313 हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसियों को नागरिकता प्रदान करेगा। वह राष्ट्र सेविका समिति के प्रबुद्ध वर्ग मेधाविनी सिंधु सृजन व शरण्या संस्था द्वारा दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान में आयोजित सीएए और महिला सुरक्षा-देश की प्राथमिकता विषय पर विचार मंथन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
स्वामी ने 1947 से प्रारंभ करते हुए अब तक नागरिकता कानून में हुई प्रगति पर विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व मनमोहन सिंह तथा असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भी ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता देने के पक्षधर रहे हैं और भारत ने इस संबंध में मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है।
उन्होंने तारिक फतेह, अदनान सामी और तस्लीमा नसरीन के भारत आने का हवाला दिया तथा बताया कि सीएए की शर्तें पूरी करने पर धार्मिक आधार पर प्रताड़ित मुसलमान जैसे शिया, अहमदिया इत्यादि भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। उन्होंने कांग्रेस और वामपंथियों पर तंज कसते हुए कहा कि उन्होंने सीएए का विरोध किया है तो मेरा कहना है कि मेरा देश कोई धर्मशाला नहीं कि कोई भी आए और चटाई बिछाकर सो जाए।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि जब तक महिलाएं सुरक्षित नहीं है राष्ट्र निर्माण सार्थक नहीं हो सकता। इसके लिए वैचारिक स्तर को बदलना होगा। बच्चों को पालते समय अनुशासन और डर शब्द केवल बेटी पर ही लागू किया जाता है। अकेले कानून में अधिकार दिए जाने से बात नहीं बनती। पुलिस तथा अन्य सरकारी एजेंसियों को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी, क्योंकि अनेक ऐसी शिकायतें आती हैं जिनमें ऐसी एजेंसियों की महिलाओं के प्रति संवेदनहीनता झलकती है। गोष्ठी में राष्ट्रीय सेविका समिति की अखिल भारतीय सहकार्यवाहिका रेखा राजे, प्रांत प्रचारिका विजया शर्मा, प्रांत कार्यवाहिका सुनीता भाटिया, उत्तर क्षेत्र संपर्क प्रमुख राधा मेहता, सिंधु सृजन की संयोजिका निशा राणा सहित 100 से अधिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।