नेतृत्व की 'दुविधा' में फंसी कांग्रेस की नई चिंता बने केजरीवाल, राष्ट्रीय इरादों के संकेत बढ़ाएगी सिरदर्दी
विपक्षी नेताओं से अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह किनारा किया है उसमें कांग्रेस को अपने लिए बड़ी चुनौती देखना चाहिए।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस के लगातार सिकुड़ते आधार वाले सूबों में दिल्ली का नाम शामिल होने के बाद पार्टी नेताओं में भले जबरदस्त बेचैनी है। मगर हाईकमान की पार्टी के शिखर नेतृत्व को लेकर जारी 'दुविधा' कांग्रेसजनों की इस चिंता पर भारी पड़ रही है। इसीलिए पार्टी नेताओं को यह आशंका सताने लगी है कि कांग्रेस नेतृत्व की दुविधा जल्द दूर नहीं हुई तो अरविंद केजरीवाल भविष्य में पार्टी के लिए दिल्ली के बाहर भी सिरदर्दी पैदा कर सकते हैं।
पार्टी सूत्रों की मानें तो कुछ राष्ट्रीय नेताओं के साथ कई सूबों के कांग्रेस नेता हाईकमान को भविष्य की इस चुनौती को लेकर आगाह करने लगे हैं कि केजरीवाल खुद को कांग्रेस का विकल्प के रुप में पेश करने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस के कुछ नेता तो विपक्षी नेताओं को अपने शपथ में नहीं बुलाने के केजरीवाल के फैसले में उनकी भविष्य की तैयारी का यह दांव भी पढ़ रहे।
विपक्षी नेताओं से केजरीवाल ने बनाई दूरी
यूपीए सरकार में मंत्री रहे दो वरिष्ठ नेताओं ने अलग-अलग अनौपचारिक चर्चा में साफ कहा कि शपथ में 'दिल्ली के निर्माताओं' के बहाने विपक्षी नेताओं से बनाई गई केजरीवाल की दूरी में उनकी भविष्य की राजनीतिक तैयारी साफ दिखाई दे रही है। चुनाव में शाहीन बाग, जामिया, जेएनयू से दूरी बनाए रखी तो जीत के बाद विपक्षी नेताओं से केजरीवाल ने जिस तरह किनारा किया है उसमें कांग्रेस को अपने लिए बड़ी चुनौती देखना चाहिए। खासकर यह देखते हुए कि नेतृत्व के स्तर पर भी कांग्रेस ही नहीं विपक्षी खेमे में केजरीवाल के मुकाबले तेज तर्रार चेहरे का अभाव है।
कांग्रेस के इन दोनों नेताओं के अनुसार विपक्षी नेताओं से दूरी बनाने के केजरीवाल के कदम से साफ है कि वह धर्मनिरपेक्षता की मुखर सियासत करने वाली कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों से अलग वैकल्पिक राजनीतिक का नैरेटिव देने का इरादा रखते हैं।
पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार बढ़ाने के संकेत
इसमें भाजपा के मुखर हिन्दुत्व और उग्र राष्ट्रवाद के मुकाबले केजरीवाल विकास और नरम भारतीयता के नैरेटिव के सहारे आम आदमी पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने का कदम बढ़ाने का संकेत दे रहे हैं। इनके मुताबिक कांग्रेस के नेताओं या मुख्यमंत्रियों को नहीं बुलाने की वजह तो समझी जा सकती है। लेकिन तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी सरीखे वामदल नेता, पूर्व पीएम देवेगौड़ा, टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू से लेकर झामुमो के हेमंत सोरेन जैसे गैर कांग्रेसी विपक्षी नेताओं जिन्होंने कई सियासी मसलों पर केजरीवाल का समर्थन किया उन्हें नहीं बुलाना दर्शाता है कि दिल्ली की तीसरी पारी की शुरूआत में ही केजरीवाल ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के इरादों की झलक दे दी है।
केजरीवाल के माथे पर लगा तिलक कांग्रेस के भविष्य के लिए खतरा
पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने तो दिलचस्प टिप्पणी करते हुए कहा कि पिछली दोनों पारियों में केजरीवाल ने तिलक नहीं लगाया। मगर रविवार को तीसरी पारी की शपथ में उनके माथे पर चमकता लंबा लाल तिलक कांग्रेस के लिए भविष्य के खतरों का संकेत है। ऐसे में हाईकमान को पार्टी के नये नेतृत्व की दुविधा तुरंत दूर करनी होगी अन्यथा सियासी चुनौती कहीं ज्यादा मुश्किल होगी।
बिहार में महागठबंधन के सामने नेतृत्व का संकट
इसमें अगली चुनौती बिहार का चुनाव है जहां कांग्रेस अभी भी राजद की छाया में है। एनडीए का चेहरा घोषित हो चुके नीतीश कुमार के मुकाबले विपक्षी महागठबंधन के सामने नेतृत्व का संकट है। इसीलिए बिहार समेत कई सूबों के नेता अपने राज्य संगठन और नेतृत्व को मजबूत बनाने की कार्ययोजना तुरंत शुरू करने का दबाव डाल रहे हैं। बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा इस बारे में कहते हैं कि सूबे में संगठन और नेतृत्व को अगर हम मजबूत नहीं करेंगे तो राजद की छाया से कांग्रेस को बाहर नहीं निकल सकते।
झा तो यह भी दावा करते हैं कि बिहार में मजबूत नेतृत्व के साथ कांग्रेस अकेले चलने का फैसला कर ले तो उसके लिए संभावनाएं कहीं ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि भाजपा-नीतीश से नाखुश तबका विशेषकर अगड़े वर्ग के लोग फिर से कांग्रेस की ओर लौट सकते हैं। हालांकि पार्टी के अंदर इस मसले पर कोई दुविधा नहीं कि जब तक राष्ट्रीय नेतृत्व पर असमंजस खत्म नहीं होगा तब तक कांग्रेस नेतृत्व बड़ा और साहसिक राजनीतिक फैसले लेने से परहेज करेगा।