राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग ने कहा- भारतीय हज यात्री नहीं हैं उपभोक्ता
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग ने बुधवार को कहा कि हज कमेटी अपनी सेवाएं बिना किसी लाभ की मंशा के देती है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सर्वोच्च उपभोक्ता आयोग ने वर्ष 2008 में भारतीय हज कमेटी को उच्चतम स्तर की सेवा के लिए भुगतान के बावजूद निम्न स्तर की सेवा की शिकायत पर रकम लौटाने का आदेश खारिज किया है। कोर्ट ने एक व्यक्ति और उसके बेटे को कोई राहत देने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि भारत में हज यात्री उपभोक्ता नहीं हैं।
-एनसीडीआरसी ने निम्न स्तर की सेवा पर रकम लौटाने का आदेश खारिज किया
-शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने कहा-हज कमेटी अपनी सेवाएं बिना किसी लाभ की मंशा के देती है
-हज यात्रियों से कोई फीस या सर्विस चार्ज नहीं वसूला जाता, सिर्फ व्यवस्था करने का खर्च लिया जाता है
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने बुधवार को कहा कि हज कमेटी अपनी सेवाएं बिना किसी लाभ की मंशा के देती है। वह हज यात्रियों के आवागमन की व्यवस्था के वास्तविक खर्च के लिए ही रकम एकत्र करती है। आयोग ने कहा कि सेवाएं देने के लिए भारतीय हज कमेटी की ओर से हज यात्रियों से कोई फीस या सर्विस चार्ज नहीं वसूले जाते हैं। इसलिए बतौर उपभोक्ता भारतीय हज कमेटी की शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1) (डी) के तहत नहीं की जा सकती है।
सर्वोच्च उपभोक्ता आयोग ने अपना यह फैसला राजस्थान राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ सुनाया है। राज्य आयोग का आदेश था कि अब्बास अली और उनके बेटे फैयाज हुसैन को हर्जाना दिया जाए जिन्होंने वर्ष 2008 में हज के लिए आवेदन किया था और उच्चतम श्रेणी के हज यात्रियों के लिए 'हरी' श्रेणी का चयन किया था।
इन पिता-पुत्र का दावा है कि उन्होंने प्रत्येक की हज यात्रा के लिए 96,940 रुपये जमा किए थे, लेकिन जब वह सऊदी अरब पहुंचे तो उन्हें वहां 'हरी' श्रेणी की व्यवस्था में नहीं रखा गया और उससे नीचे की श्रेणी 'अजीजिया' में ठहराया गया। इससे नाराज होकर उन्होंने जिला फोरम में 22,362 रुपये लौटाने की मांग की, लेकिन उनकी अपील खारिज कर दी गई। उसके बाद उन्होंने यह शिकायत राज्य उपभोक्ता आयोग में की जिसमें उन्हें अपील की अनुमति मिली। साथ ही, रिफंड के आदेश के साथ 10,000 रुपये हर्जाना और 5,000 रुपये मुकदमे का खर्च देने चुकाने का आदेश दिया। इसके बाद हज कमेटी ने इस आदेश को एनसीडीआरसी में चुनौती दी।
कमेटी ने दावा किया कि शिकायतकर्ताओं ने अतिरिक्त कोटा में अपनी सीट सुरक्षित कराई थी। हज यात्रा के समय रियाल के करेंसी एक्सचेंज की कीमत एकदम से बहुत बढ़ गई। उस समय कमेटी के लिए यह संभव नहीं था कि वह कम पैसे में उन्हें उच्चतम श्रेणी में रुकवा सके।
सर्वोच्च उपभोक्ता आयोग ने पाया कि वर्ष 2002 के हज कमेटी एक्ट के मुताबिक भारतीय हज कमेटी की सेवाएं किसी भी तरह के शुल्क से मुक्त हैं और वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के दायरे में नहीं आती हैं।
लिहाजा, एनसीडीआरसी ने कहा कि हज यात्रा के लिए सभी आवेदनकर्ताओं को दिशा-निर्देशों पर दस्तखत करने होते हैं। इसमें साफ तौर पर बताया गया है कि हज कमेटी की सेवाएं उपभोक्ता दायरे में नहीं आती हैं और वह उपभोक्ता कानून के तहत मुआवजे का कोई दावा नहीं करेंगे। हालांकि उपभोक्ता आयोग ने फैसले में यह भी साफ कर दिया कि वह अपनी शिकायत लेकर किसी और कानूनी दायरे में जा सकते हैं-जैसे सिविल कोर्ट।