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...और सभापति बोलने लगे बांग्ला, पंजाबी, नेपाली, उडिया और मलयालम

सदस्यों को उनकी भाषा में ही संबोधित किया। पूरे सदन ने मेज थपथपा कर विभिन्न भाषाओं में उनकी काबिलियत को सराहा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 18 Jul 2018 09:06 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 07:10 AM (IST)
...और सभापति बोलने लगे बांग्ला, पंजाबी, नेपाली, उडिया और मलयालम
...और सभापति बोलने लगे बांग्ला, पंजाबी, नेपाली, उडिया और मलयालम

सुरेन्द्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू संसद के मानसून सत्र के पहले दिन सदन में पूरे रौ में थे। हर कोई उनका मुरीद हो गया। सदन शुरु होते ही उन्होंने सदस्यों को उनकी अपनी मातृ भाषा में बोलने की सहूलियत के बारे में बताया। इसके बाद खुद बांग्ला, गुजराती, कन्नड, मलयालम, मराठी, नेपाली, उडि़या, पंजाबी, तमिल, और तेलुगू समेत 10 भाषाओं में बोले।

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सदस्यों को उनकी भाषा में ही संबोधित किया। पूरे सदन ने मेज थपथपा कर विभिन्न भाषाओं में उनकी काबिलियत को सराहा। इस बीच राज्यसभा सदस्य सुब्रह्मण्यम उठ खड़े हुए और उन्होंने कहा कि आठवीं अनुसूची की ज्यादातर भाषाओं का उद्भव संस्कृत से हुआ है। इसलिए अपनी भाषाओं में बोलते हुए संस्कृत के ज्यादा से ज्यादा शब्दों का उपयोग करें।

सदन के कई हिस्सों से विरोधी स्वर भी उभरे, जिस पर सभापति नायडू ने कहा कि यह माननीय सदस्य की इन बातों को केवल सलाह के तौर पर लिया जाए।

अब राज्यसभा में अपनी जुबान में बोल सकेंगे माननीय
इस सहूलियत के बाद राज्यसभा के माननीय अब जुबान में सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकेंगे। ताकि उन्हें अपनी बात कहने में भाषा कहीं आड़े न आने सके। इसकी पहल 18 जुलाई से शुरु हो रही संसद के शीतकालीन अधिवेशन सत्र से हो गई। संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज सभी 22 भाषाओं में राज्यसभा के सदस्य अपनी बात कह सकते है। इसके लिए राज्यसभा सचिवालय ने पूरा बंदोबस्त कर लिया है।

डोगरी, कश्मीरी, कोकणी, सिंधी व संथाली में बोलने की सहूलित
सदन में चर्चा के दौरान फिलहाल 17 भाषाओं के अनुवादक ही उपलब्ध थे, लेकिन राज्यसभा चेयरमैन के निर्देश पर पांच अन्य भाषाओं के अनुवादकों की भी नियुक्ति कर ली गई है। इन भाषाओं में डोगरी, कश्मीरी, कोकणी, संथाली और सिंधी प्रमुख है। एम. वेंकैया नायडू ने चेयरमैन पद संभालते ही इस बारे में उचित कदम उठाने का निर्देश दिया था, ताकि राज्यसभा के 'माननीय अपनी मातृभाषा में अपना मुद्दा जोर शोर से उठा सकें। इसके तहत राज्यसभा सचिवालय ने इन पांचों भाषाओं के अनुवादकों का चयन कर उन्हें प्रशिक्षण देने का कार्य पूरा कर लिया गया है।

नायडू का मानना है कि व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति को मातृभाषा में ही बिना हिचक सही तरीके से कह सकता है। संसद जहां पूरा देश के निर्वाचित प्रतिनिधि पहुंचते है। सदन बहु भाषी होता है। सांसदों को अपनी भाषा के नाते किसी तरह की मुश्किल का सामना नहीं करना पडऩा चाहिए।

राज्यसभा में पहले केवल 12 भाषाओं में बोलने की व्यवस्था थी, जिसके अनुवादक नियुक्त थे। इन भाषाओं में असमी, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उडिय़ा, पंजाबी, तमिल, तेलुगु और उर्दू प्रमुख थीं। इसके बाद पांच अन्य भाषाओं बोडो, मैथिली, मणिपुरी, मराठी और नेपाली में बोलने की सहूलियत दी गई। लेकिन इसके लिए लोकसभा के अनुवादकों की मदद ली गई। इन अनुवादकों की नियुक्ति में राज्यसभा सचिवालय ने विश्वविद्यालयों, दिल्ली में राज्यों के सदनों और कुछ अन्य संगठनों की मदद ली गई।


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