MP Urban Body Election Result 2022: आईना साफ है, अपने चेहरे साफ करिए
कांग्रेस के पास कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे लोकप्रिय एवं अनुभवी नेता हैं। इसी टीम ने 2018 विधानसभा चुनाव में पासा पलट दिया था यद्यपि इसके बाद हालात बहुत बदल चुके हैं। भाजपा की तरह कांग्रेस नेतृत्व को भी समझना पड़ेगा कि गर्द आईने पर नहीं कहीं और है।
सद्गुरु शरण। मतदाताओं की सीधी भागीदारी के आधार पर हुए नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम को प्रदेश के दोनों राष्ट्रीय दलों, भाजपा और कांग्रेस के लिए आईना माना जा रहा है। यह अलग बात है कि दोनों दल अपने चेहरों पर पड़ी गर्द को आईने की गंदगी ठहराकर अपने दिल बहला रहे हैं। ये चुनाव मध्य प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव से करीब सवा साल पहले हुए हैं, इसलिए इनके परिणाम को भविष्य की राजनीति के दृष्टिकोण से ‘हांडी का चावल’ भी बताया जा रहा है। अब भी विधानसभा का चौथाई कार्यकाल बाकी है जिसमें दोनों ही दल कमर कसकर अपनी छवि बेहतर कर सकते हैं, पर यह उसी स्थिति में संभव होगा जब ये दल अपनी कमजोरियों को स्वीकार करें और सुधार की दिशा में आगे बढ़ें।
दरअसल, नगरीय निकाय चुनाव परिणाम ने दोनों दलों को ‘न तुम जीते, न हम हारे’ जैसी अनुभूति जरूर दी, यद्यपि परिणाम का गहरा विश्लेषण उनकी आत्ममुग्धता तोड़ने को काफी है। भाजपा सत्तारूढ़ है, इसलिए स्वाभाविक रूप से चुनाव परिणाम उसके लिए विशेष अर्थ रखते हैं। पिछले चुनाव में पार्टी सभी 16 नगर निगमों पर काबिज थी, जबकि इस बार सिर्फ नौ नगर निगमों में उसके महापौर निर्वाचित हो सके। कांग्रेस के पांच महापौर उम्मीदवार ही जीत सके, पर उसके पास खोने को कुछ नहीं था। कांग्रेस की दृष्टि से यह उपलब्धि रही कि उसने न सिर्फ अपने शीर्ष नेता कमल नाथ की गृह सीट छिंदवाड़ा जीतने में सफलता प्राप्त की, बल्कि ग्वालियर और जबलपुर नगर निगमों पर भी विजय पताका फहरा दी। खासकर ग्वालियर नगर निगम में कांग्रेस का महापौर निर्वाचित होने के खास राजनीतिक मायने हैं, क्योंकि यह सीट कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की गृह सीट है।
संभव है, भाजपा ने अपने आंतरिक कारणों से यह सीट गंवाई हो, पर कांग्रेस अपनी सुविधानुसार इसे ज्योतिरादित्य फैक्टर से जोड़कर जश्न मनाने में लगी है। भाजपा ने ये चुनाव लोकसभा और विधानसभा चुनाव के तर्ज पर लड़े। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा समेत पूरा मंत्रिमंडल प्रतिष्ठा की यह लड़ाई जीतने के लिए मैदान में था। इसके बावजूद सात सीटों पर पार्टी की दाल नहीं गली। भाजपा के लिए यह गहन शोध का विषय है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के सिर्फ कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव होना है। शिवराज सिंह परिश्रमी और कर्मठ मुख्यमंत्री माने जाते हैं। सामाजिक समीकरण और व्यक्तिगत छवि की दृष्टि से भी वह चुनावी राजनीति में फिट बैठते हैं। इसके बावजूद सात नगरीय सीटें हार जाना बड़ा संकेत है। पार्टी को समय रहते इसकी वजह तलाश समाधान करना होगा। यदि यह पार्टी की आंतरिक गुटबाजी का परिणाम है तो इससे निपटना होगा, क्योंकि ठीक से इलाज न होने पर विधानसभा चुनाव में हालात बेकाबू हो सकते हैं। चुनाव परिणाम के आईने के सामने बैठे भाजपा नेतृत्व को ईमानदारी के साथ समझना होगा कि गर्द वास्तव में कहां है।
कांग्रेस पांच नगर निगमों की विजय पर खुश और संतुष्ट है तो यह भाजपा के लिए सुविधाजनक स्थिति है। परिदृश्य में दो ही दल हैं तो कांग्रेस के लिए इनमें कोई एक स्थान सुरक्षित रहेगा। कांग्रेस के पास अवसर था कि वह निकाय चुनाव में चौंकाने वाले परिणाम लाकर भावी चुनावों के लिए मजबूत दावेदारी पेश करती, पर पार्टी ने यह अवसर गंवा दिया। छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस जैसे-जैसे सिर्फ मामूली अंतर से जीत पाई, जबकि ग्वालियर और जबलपुर में विजय की अंतर्कथा पार्टी नेतृत्व से छिपी नहीं है। जहां तक मौजूदा विधानसभा का सवाल है, कांग्रेस भी 15 महीने सत्ता में थी। इसके बावजूद पार्टी के पास बताने को कोई उपलब्धि नहीं है जिसके आधार पर पार्टी उच्च मनोबल लेकर मतदाताओं के बीच जाए।
भाजपा यह प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी कि पिछले चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व ने किसानों से कर्ज माफी का झूठा वादा किया था। ऐसे में देखा जाए तो कांग्रेस अब भी भाजपा-विरोध की नकारात्मक सहानुभूति पर आश्रित दिख रही है जिसे राजनीतिक दृष्टि से मजबूती नहीं माना जा सकता। कांग्रेस यदि सचमुच कोई महत्वाकांक्षा रखती है तो उसे अपने लिए सकारात्मक धरातल तलाशना होगा। समय तेजी से खिसक रहा है। कांग्रेस का पाला शिवराज सिंह जैसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री से है जिन्होंने अपने मौजूदा मुख्यमंत्रित्वकाल में परिश्रम की पराकाष्ठा स्पर्श की है। शेष कार्यकाल में वह इससे भी अधिक परिश्रम करते दिखेंगे। ऐसे में कांग्रेस को शिवराज सिंह से बड़ी लकीर खींचनी होगी।
[संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़]