MP Poltical Crisis: कांग्रेस को भविष्य की सीख दे गए हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया
सिंधिया के रुख ने कांग्रेस नेतृत्व को इसका अहसास दिला दिया है कि नहीं सुधरे तो आगे की राह बहुत मुश्किल है।
प्रशांत मिश्र
त्वरित टिप्पणी: सिंधिया परिवार का आखिरकार पूर्णतया भाजपा विचारधारा में विलय हो गया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया तो खैर जनसंघ और भाजपा की संस्थापक सदस्य ही थीं। उनकी दो पुत्रियां वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे पहले से भाजपा में प्रमुखता से रची बसी हैं, अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी स्वीकार कर लिया कि कांग्रेस में रह कर वह जनसेवा का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते हैं। इसे लेकर कांग्रेस में हंगामा बरपा है और भाजपा में उत्साह है। भाजपा के उत्साह का कारण जाहिर है कि अब मध्य प्रदेश में वापसी का द्वार खुला दिख रहा है। लेकिन कांग्रेस की मायूसी सिर्फ मध्य प्रदेश नहीं है। दरअसल सिंधिया के रुख ने कांग्रेस नेतृत्व को इसका अहसास दिला दिया है कि नहीं सुधरे तो आगे की राह बहुत मुश्किल है। खासकर युवावर्ग पार्टी की सोच और कामकाज के तरीके से नाखुश है।
याद होगा कि लगभग तीन साल पहले असम के युवा कांग्रेसी हेमंत विश्व सर्मा ने प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ राहुल गांधी का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन राहुल हेमंत की बातों को तवज्जो देने की बजाय अपने कुत्ते से खेलते रहे थे। उसी वक्त हेमंत ने कांग्रेस को बाय बाय करने का फैसला ले लिया था और बिना शर्त भाजपा में शामिल हो गए। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जौहरी की तरह हेमंत की खूबी को परख लिया था। उसके बाद से असम समेत पूरे उत्तर पूर्व में जो कुछ हुआ है वह इतिहास है।
सभी सात राज्यों में भाजपा और राजग की सरकार है। बताया जाता है कि सिंधिया भी बार बार केंद्रीय नेतृत्व को इशारा कर रहे थे लेकिन वही हुआ जिसकी शिकायत कांग्रेस के अधिकतर नेता करते हैं- अनसुना कर दिया। अब सिंधिया को गाली देने वाले कांग्रेस में कई सुर उभर रहे हैं। साथ ही पार्टी के अंदर ही मंद मंद मुस्कुराने वालों की भी कमी नहीं है। सच्चाई यह है कि कांग्रेस नेतृत्व की निष्कि्रयता फिर जाहिर हुई है और इसका अंदेशा बढ़ गया है कि युवा नेता अब बेचैन होने लगे हैं। पहला नतीजा तो मध्य प्रदेश में ही दिखने वाला है। कमलनाथ सरकार की विदाई और कमल वाली सरकार का आगमन लगभग तय माना जा रहा है।
वैसे भाजपा के अंदर अभी यह संशय बरकरार है कि भाजपा के मुख्यमंत्री कौन होंगे- शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा ..। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा संभवत: एक दो दिनों में इसका पटाक्षेप कर देंगे। शाह लगातार इस पर बारीकी से नजर रख रहे थे। सवाल यह है कि जो कुछ हुआ उसमें भाजपा का कितना हाथ है? कांग्रेस और दूसरे दलों की ओर से सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया जा रहा है वह कितना सच है? यह कहकर नहीं बचा जा सकता है कि मध्य प्रदेश में सीटें भले ही कांग्रेस से कम आई थी लेकिन वोट ज्यादा मिले थे। पर यह भी सच्चाई है कि राजनीति मे हाथ मोड़कर क्या बैठना उचित होता है। अगर विरोधी दल में बेचैनी है और सामने अवसर है तो क्या चुप रहना राजनीतिक रूप से सही फैसला होता है।
कर्नाटक में ही कांग्रेस ने दिखाया था कि अलग अलग लड़कर और भाजपा के मुकाबले काफी पीछे रहने के बावजूद जदएस के साथ उसने कैसे सरकार बनाई थी। महाराष्ट्र में राकांपा ने इसकी झलक दिखाई थी कि किस तरह अजीत पवार ने भाजपा को झांसा दिया था और यह सभी जानते हैं कि इसकी जानकारी राकांपा सुप्रीमो शरद पवार को थी।
लिहाजा छाती पीटने की बजाय कांग्रेस के लिए यह गंभीर चिंतन का वक्त है। जल्द से जल्द अपनी खामी दूर करने और युवा वर्ग को समझने का वक्त है। और सबसे ज्यादा यह तय करने का वक्त है कि पार्टी चिरंतन काल के लिए मनोनीत अध्यक्ष के भरोसे नहीं चल सकती है।