शिवराज कैबिनेट के तीसरे विस्तार से भाजपा ने दिया बंगाल को संदेश, सिंधिया से किया वादा निभाया
मप्र में शिवराज कैबिनेट के तीसरे विस्तार से भाजपा ने एक तीर से कई निशाने लगाने की कोशिश की है। सत्ता संतुलन के साथ भाजपा ने बंगाल तक संदेश दिया है कि पार्टी अपने वादे को निभाती हैभाजपा में वे जिस भरोसे के साथ आ रहे हैं या आएंगे।
धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। मप्र में शिवराज कैबिनेट के तीसरे विस्तार से भाजपा ने एक तीर से कई निशाने लगाने की कोशिश की है। मप्र में सत्ता संतुलन के साथ ही भाजपा ने बंगाल तक संदेश दिया है कि पार्टी अपने वादे को निभाती है,भाजपा में वे जिस भरोसे के साथ आ रहे हैं या आएंगे। उनका सम्मान और स्थान बरकरार रखा जाएगा। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को कैबिनेट में स्थान मिलना बंगाल के गैर एनडीए उन नेताओं को संकेत है, जो बदलाव के मूड में हैं। मप्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से विधानसभा चुनाव जीते अपने 22 समर्थकों के साथ पिछले साल मार्च में कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की थी। तब से कांग्रेस लगातार साबित करने की कोशिश करती रही है कि सिंधिया का कद कम हुआ है और भाजपा उनसे किए वादे निभाने से पीछे हटती रही है।
बंगाल में बदलाव का मन बना रहे नेताओं को भाजपा ने मप्र से दिए संकेत
इधर, भाजपा गठबंधन के बाद सियासत के ऐसे नए दौर में असीम संभावनाएं देखती है, जिसमें दूसरे दलों में असंतुष्ट दिग्गजों को भाजपा में लाया जाए, जिससे न केवल भाजपा का विस्तार हो, बल्कि विपक्षी दलों को झटका भी लगे। ऐसे में मामले में मप्र बड़ी प्रयोगशाला साबित हो रही है। कांग्रेस के आरोपों से उलट भाजपा ने सारे समीकरणों को दरकिनार कर शिवराज कैबिनेट में एकतरफा सिंधिया समर्थकों को न केवल मौका दिया, बल्कि विस की 28 सीटों पर उपचुनाव में सिंधिया समर्थक उन सभी पूर्व विधायकों को उसी सीट पर टिकट दिया, जो अपनी विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें कई मंत्री भी थे।
शिवराज कैबिनेट में तुलसी और गोविंद की वापसी की सुगबुगाहट की कोलकाता तक
उपचुनाव में कांग्रेस ने सिंधिया, उनके समर्थकों और बाद में शिवराज सिंह चौहान पर जमकर सियासी हमले किए, लेकिन भाजपा ने 19 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि मंत्री रहते हुए इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया और एंदल सिंह कंसाना हार गए। अप्रैल 2019 में मंत्री बनने के चलते तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को छह माह इस्तीफा देना पड़ा, जो बाद में विस उपचुनाव जीत गए। ऐसे में दोनों को फिर से कैबिनेट में पुराने विभाग के साथ ही लिया गया।
इधर, सिंधिया खेमे के लिए जगह बनाने में भाजपा को संगठन में विरोध स्वरूप असहयोग जैसे रवैया का भी सामना करना पड़ा, लेकिन संगठन देश में ये संदेश देने में कामयाब हो रहा है कि जो गैर भाजपाई राजनेता सियासत में बेहतर भविष्य की उम्मीद रखता है, उसके लिए भाजपा से बेहतर विकल्प दूसरा नहीं है। ये संदेश वह मप्र की सियासत से बंगाल तक पहुंचाने में कामयाब भी हो रहा है। तुलसी और राजपूत के कैबिनेट में लौटने की बंगाल में चर्चा होना ही भाजपा इसका प्रमाण मानती है।
भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि स्वाभाविक है वहां (कांग्रेस)से मंत्री पद छोड़कर आए थे तो यहां उन्हें मंत्री बनाया गया है।चुनाव में कुछ विलंब हो गया था इसलिए दोनों मंत्रियों को नए सिरे से शपथ दिलानी पड़ी,वरना इसकी जरूरत नहीं पड़ती। भाजपा स्पष्ट तौर पर मानती है कि सिंधिया और उनके साथ आए पूर्व विधायकों का योगदान इस सरकार में हैं।