MP Politics: वासनिक की दूसरी पारी आसान नहीं, लॉकडाउन और उपचुनाव बड़ी चुनौतियां
विधानसभा चुनाव के बाद संगठन की गतिविधियों में आई गिरावट और 24 उपचुनाव नए प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां हैं।
रवींद्र कैलासिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में आने और 15 महीने में ही सरकार चले जाने से कांग्रेस अब आत्ममंथन करने में जुटी है। इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया की विदाई से होना बताया जा रहा है। अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा विधानसभा में दल के नेता को लेकर भी जल्द ही फैसला होने की संभावना है।
वहीं, विधानसभा चुनाव के बाद संगठन की गतिविधियों में आई गिरावट और 24 उपचुनाव नए प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, क्योंकि कोरोना महामारी तथा लॉकडाउन के बीच उन्हें अपनी नई पारी शुरू करना है।
सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों में शामिल वासनिक
1980 के दशक में सबसे युवा लोकसभा सदस्य बनने के साथ तीन साल एनएसयूआई और दो साल युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने वाले मुकुल वासनिक को राष्ट्रीय कांग्रेस के संगठन का करीब 35 साल का अनुभव है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों में शामिल वासनिक मध्य प्रदेश में करीब 15 साल बाद दूसरी बार उसी हैसियत से आ रहे हैं। दिग्विजय सिंह, कमल नाथ जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ उनके दोस्ताना संबंधों के साथ उनकी प्रदेश में पहले से ही अपनी टीम है। मगर कोरोना महामारी व लॉकडाउन के इस कठिन दौर में उनके सामने 15 महीने में ही सरकार के गिर जाने से निराशा व असुरक्षित महसूस करने वाले कार्यकर्ताओं को 24 उपचुनाव के लिए तैयार करने की चुनौती है।
बाबरिया के समन्वय के प्रयास रास नहीं आए
उधर, गुरुवार को महासचिव पद त्यागने वाले बाबरिया ने सरकार बनने के बाद आम कार्यकर्ताओं की शिकायतों पर कई बार सत्ता-संगठन के बीच समन्वय का प्रयास किया, लेकिन व्यवस्था नहीं बन पाई। संगठन के जिम्मेदार पदाधिकारी बाबरिया के प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) में कई घंटों तक बैठकर कार्यकर्ताओं से मिलने, मंत्रियों को बुलाकर उनसे बातचीत करने जैसी गतिविधियों को लेकर सहमत ही नहीं रहते थे। यही वजह रही कि बाबरिया, राहुल गांधी की पसंद थे और उनके अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद मध्य प्रदेश में बड़े नेता उनसे दूरी बनाने लगे थे। एआईसीसी ने समन्वय समिति भी बनाई, लेकिन उसकी एक बैठक के बाद ही प्रदेश से सरकार चली गई।
असंतुष्टों को बेहिसाब पद देकर संतुष्ट किया
संगठन के नाम पर आज मध्य प्रदेश में डेढ़ हजार से ज्यादा महासचिव और सचिव हैं तो पीसीसी से लेकर जिला कांग्रेस कमेटी तक कार्यकारी अध्यक्षों के विजिटिंग कार्डधारी मौजूद हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी नहीं बनाए जाने पर इन लोगों को पीसीसी व जिला कांग्रेस कमेटी के पद देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया गया, जिससे पदाधिकारियों की संख्या दिन दूनी-रात चौगुनी जैसी बढ़ती गई। आज पीसीसी के पास ही इनका रिकॉर्ड मांगने पर नहीं मिलता। दो साल में संगठन की गतिविधियों के नाम पर एक बार भी कार्यसमिति की बैठक नहीं बुलाई गई।