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Madhya Pradesh Politics: मध्य प्रदेश उपचुनाव से पहले कांग्रेस में अल्पसंख्यक नेता हुए नाराज

भोपाल मध्य से विधायक आरिफ मसूद तो यहां तक कह रहे हैं कि लगता है अभी पार्टी को उनकी जरूरत नहीं है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 10:35 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 10:41 PM (IST)
Madhya Pradesh Politics: मध्य प्रदेश उपचुनाव से पहले कांग्रेस में अल्पसंख्यक नेता हुए नाराज
Madhya Pradesh Politics: मध्य प्रदेश उपचुनाव से पहले कांग्रेस में अल्पसंख्यक नेता हुए नाराज

रवींद्र कैलासिया, भोपाल। विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस हर समीकरण को साधने के प्रयास में है। विशेष तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल संभाग में ब्राह्मण, यादव, अनुसूचित जाति और आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) वोट बैंक पर उसकी नजर है। यही वजह है कि उपचुनाव के लिए प्रभारी बनाने में भी इन समीकरणों को ध्यान में रखा गया है, लेकिन परीक्षा की इस घड़ी में अल्पसंख्यक नेताओं की नाराजगी सामने आई है।

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भोपाल मध्य से विधायक आरिफ मसूद तो यहां तक कह रहे हैं कि लगता है अभी पार्टी को उनकी जरूरत नहीं है। कांग्रेस में 24 विधानसभा सीट के उपचुनाव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ द्वारा उपचुनाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में जिस तरह से प्रभारियों की नियुक्ति की गई है, उसमें जातीय समीकरण का विशेष ध्यान रखा है।

ग्वालियर जिले में पीसी शर्मा, तरण भनोत और नीरज दीक्षित को प्रभारी के रूप में भेजा है। जबकि, मीडिया प्रबंधन के लिए पूर्व मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा की नियुक्ति की गई है। ब्राह्मण वोट बैंक की खातिर कांग्रेस ने पूर्व कांग्रेस नेता बालेंदु शुक्ला की वापसी की है, ताकि स्थानीय ब्राह्मण नेता के रूप में उनका चेहरा बताया जा सके। बालेंदु शुक्ला का ग्वालियर और आसपास के जिलों में स्व. माधवराव सिंधिया के बालसखा होने की वजह से भी प्रभाव है।

कांग्रेस विधायक डॉ हीरालाल का किया जा रहा उपयोग

अशोक नगर में यादव समाज के वोट ज्यादा हैं, इसलिए वहां पूर्व मंत्री सचिन यादव को प्रभारी बनाकर भेजा गया है। इन इलाकों में आदिवासी समाज भी खासी संख्या में है, जिन पर आदिवासी संगठन जय युवा आदिवासी शक्ति 'जयस' का प्रभाव है। यही वजह है कि जयस नेता व कांग्रेस विधायक डॉ. हीरालाल अलावा का भी उपयोग किया जा रहा है। डॉ. अलावा कुछ बैठकें भी कर चुके हैं।

वहीं, पार्टी की नजर अनुसूचित जाति के वोट पर काफी पहले से है। ग्वालियर-चंबल संभाग में इन वर्गो की आबादी ज्यादा है तथा पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से सटे होने से कांग्रेस वहां के नेताओं को भी अपने साथ जोड़ने में लगी है। इस वर्ग का बड़ा चेहरा फूलसिंह बरैया हैं, जिन्हें पार्टी ने राज्यसभा चुनाव के बाद विधानसभा उपचुनाव में भी उतारने की रणनीति तैयार की है। इसमें कुछ और नाम भी हैं, जो बहुजन समाज पार्टी से कांग्रेस में आए हैं।

अल्पसंख्यकों की नाराजगी

इधर, कांग्रेस में मौजूद अल्पसंख्यक नेताओं में से कुछ की नाराजगी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। भोपाल के विधायक आरिफ मसूद ने दैनिक जागरण के सहयोगी अखबार 'नईदुनिया' से चर्चा में कहा है कि पार्टी को अभी चुनाव में शायद अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिमों की जरूरत नहीं है। प्रभारी बनाए जाने में भी अल्पसंख्यकों को उपेक्षित किया गया है। पूर्व मंत्री आरिफ अकील को भी स्वतंत्र रूप से नहीं, बल्कि सांची में सुखदेव पांसे के साथ प्रभारी बनाया है। मसूद की नाराजगी पिछले दिनों उपचुनाव को लेकर हुई बैठकों में अल्पसंख्यक नेताओं को नहीं बुलाए जाने के कारण है। जबकि उनका दावा है कि जिन 24 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने वाले हैं, उनमें से बदनावर, सांवेर, सुवासरा, हाट पीपल्या, सुरखी, मुंगावली, ग्वालियर पूर्व जैसी सीटों पर अल्पसंख्यक वोट 22 हजार से 40 हजार तक का है।


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