MP Politics: मध्य प्रदेश उपचुनाव में भी बिखर रहा कांग्रेस पार्टी का कुनबा
MP Politics कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को उपचुनाव के मौके पर अपने नेताओं के भाजपा में शामिल होने संबंधी कवायद की भनक न लगी हो पर अब बिगड़ी बात को संभालने की कोशिश न राष्ट्रीय संगठन से हुई और न ही प्रदेश संगठन से।
इंदौर, संजय मिश्र। कुनबा बिखर रहा है, लेकिन कांग्रेस अपने में मगन है। मध्य प्रदेश में एक-एक कर विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं, लेकिन कांग्रेस का राज्य नेतृत्व अपना रवैया बदलने को तैयार ही नहीं है। विधायक सचिन बिरला ने दो दिन पूर्व कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया है। सचिन ने राज्य नेतृत्व पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए कांग्रेस छोड़ दी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हो गए। सचिन उसी खंडवा संसदीय क्षेत्र की बड़वाह सीट से विधायक हैं जहां उपचुनाव हो रहा है। वह गुर्जर समुदाय के लोकप्रिय नेता हैं।
पिछला चुनाव उन्होंने तीस हजार मतों के अंतर से जीता था, लेकिन महज तीन साल में ही कांग्रेस से उनका मन भर गया। उन्होंने सार्वजनिक मंच पर बताया कि कांग्रेस में अब सच्चे कार्यकर्ताओं की पूछ नहीं रह गई है। वह वहां रहकर क्या करते। कमल नाथ मुख्यमंत्री बने थे तो उम्मीद जागी थी कि क्षेत्र की विकास योजनाओं को गति मिलेगी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। मिलने का समय तक नहीं देते थे। अब पार्टी विपक्ष में है तो भी उनका रवैया नहीं बदला।
सचिन ने अभी विधायक पद से त्यागपत्र नहीं दिया है। संभव है कि कुछ दिन बाद वह त्यागपत्र दे दें, पर शिवराज की उपस्थिति में उनके भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस में खलबली मच गई है। विधायक पद से त्यागपत्र न देने को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस की ओर से पहला हमला दिग्विजय सिंह ने यह कहकर बोला कि सचिन भाजपा के रुपये पर बिक गए। उनके आरोपों पर बचाव करने के बजाय सचिन ने आक्रामक होकर दिग्गी और कमल नाथ को ललकारा। उन्होंने कहा कि जो रुपये के बल पर राजनीति करते हैं वे ऐसा ही कह सकते हैं। हिम्मत है तो साबित करके दिखा दें कि मैंने किसी से एक रुपया भी लिया हो।
15 साल तक विपक्ष में रहने के बाद 2018 में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की सत्ता में जब वापसी की थी, तब कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा था। उन्हें यह भरोसा था कि कमल नाथ के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में पार्टी की जड़ें गहरी हो जाएंगी। कमल नाथ ने काम तो जोश-खरोश के साथ प्रारंभ किया, लेकिन जल्द ही वह ब्यूरोक्रेसी से घिरते गए और कार्यकर्ताओं से दूर होते गए। नेताओं के बीच खींचतान इस स्तर तक जा पहुंची कि सत्ता सिंहासन तक कांग्रेस को पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया खिलाफत पर उतर आए। उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए न सिर्फ कमल नाथ सरकार की नीतियों की आलोचना की, बल्कि जनता को यह भरोसा भी दिलाया कि यदि उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे सड़क पर उतर जाएंगे। उन्हें मनाने के बजाय कमल नाथ और दिग्विजय की जोड़ी ने नजरअंदाज करो, इंतजार करो की नीति अपनाई।
अंतत: ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़ा कदम उठाते हुए कांग्रेस से नाता तोड़ने का एलान कर दिया। उनके साथ 22 विधायकों ने पार्टी को नमस्ते कह दिया। इससे सरकार अल्पमत में आ गई। अनेक कोशिशों के बावजूद कमल नाथ को मुख्यमंत्री पद त्यागना पड़ा। इस बड़े झटके के बाद भी न तो कांग्रेस के संगठन ने कोई सबक ली और न कमल नाथ की कार्यशैली में ही कोई बदलाव आया। आम कार्यकर्ताओं की कौन कहे, पदाधिकारियों और विधायकों तक को उनसे मिलने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। यही कारण है कि कांग्रेस के कुनबे का बिखराव लगातार जारी है। लगभग सवा साल के अंदर चार अन्य विधायक सुमित्र देवी कास्डेकर, प्रद्युम्न सिंह लोधी, राहुल लोधी, नारायण पटेल भी पार्टी छोड़ चुके हैं।
सचिन बिरला पांचवें विधायक हैं, जिन्होंने पार्टी से बगावत की है। मध्य प्रदेश की सियायत में खंडवा संसदीय क्षेत्र एवं पृथ्वीपुर, जोबट और रैगांव विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव काफी अहम माने जा रहे हैं। आंतरिक कलह से घिरी कांग्रेस इन उपचुनावों को एक अवसर के रूप में देख रही है। उसे उम्मीद है कि शायद मतदाता कांग्रेस को समर्थन देकर भविष्य का संकेत दे दें। दूसरी ओर भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है। प्रचार अभियान के अंतिम दिन तक दोनों दलों के बीच सियासी दांवपेच खूब चले। अब तक भाजपा ने इस खेल में कांग्रेस को पछाड़ा है। इसका आरंभ उसने पूर्व विधायक सुलोचना रावत को उनके पुत्र विशाल रावत सहित पार्टी में शामिल कराकर किया। भाजपा ने सुलोचना को जोबट विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया है। अब बड़वाह से विधायक सचिन बिरला ने भी कांग्रेस का हाथ झटककर भाजपा का दामन थाम लिया है।
इससे यह बात फिर साबित हो गई है कि कांग्रेस में अब भी सबकुछ ठीक नहीं है। बड़वाह विधानसभा क्षेत्र खंडवा संसदीय क्षेत्र में आता है। यहां गुर्जर समुदाय प्रभावी भूमिका में है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को उपचुनाव के मौके पर अपने नेताओं के भाजपा में शामिल होने संबंधी कवायद की भनक न लगी हो, पर अब बिगड़ी बात को संभालने की कोशिश न राष्ट्रीय संगठन से हुई और न ही प्रदेश संगठन से। जाहिर है इसका असर कांग्रेस के प्रदर्शन पर पड़ सकता है।
[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]