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MP Political Crisis: कमल नाथ के हाथों से गई सरकार, न खुदा ही मिला न विसाल ए सनम

MP Political Crisis कमलनाथ ने स्थिति सुधारने की बजाय कहा था- वह चाहें तो सड़क पर उतर जाएं। यह नेतृत्व की जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी धमक से राज्य मे संतुलन बनाए रखे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2020 06:29 PM (IST)Updated: Fri, 20 Mar 2020 08:51 PM (IST)
MP Political Crisis: कमल नाथ के हाथों से गई सरकार, न खुदा ही मिला न विसाल ए सनम
MP Political Crisis: कमल नाथ के हाथों से गई सरकार, न खुदा ही मिला न विसाल ए सनम

प्रशांत मिश्र, त्वरित टिप्पणी। आखिरकार कमल नाथ ने मान लिया कि उन्होंने काफी पहले विधायकों का और उस नाते जनता का विश्वास खो दिया था। पंद्रह महीने तक उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शासन तो कर लिया लेकिन वह सिर्फ जोड़ तोड़ के कारण था। शुरूआत 2018 के दिसंबर में नतीजा आने के साथ ही हो गई थी जब कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले छह सात सीटें ज्यादा तो मिली थीं लेकिन वोट कम मिले थे। यानी संख्या के हिसाब से ज्यादा लोगों ने भाजपा को ही वोट दिया था। कांग्रेस के अंदर नेतृत्व को लेकर भारी खींचतान थी और किसी तरह बसपा, सपा व अन्य को मिलाकर सरकार बना ली गई थी। यही नहीं लगभग उसी वक्त से कमल नाथ की ओर से दावे भी किए जाने लगे थे कि भाजपा के लगभग एक दर्जन विधायक उनके संपर्क मे हैं। दरअसल यह सबकुछ इसलिए हो रहा था क्योंकि उन्हें इसका भय था कि पार्टी के अंदर से ही उनके पांव खींचे जा सकते हैं और इसीलिए कुछ ज्यादा तेज दौड़ने की कोशिश कर रहे थे। खुद ही फिसल कर गिर गए।

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एक दिन पहले कमल नाथ ने किया था दावा

एक दिन पहले तक कमल नाथ की ओर से दावा किया जा रहा था कि उनके 16 विधायकों को भाजपा ने बंधक बनाकर रखा है, हालांकि उन विधायकों की ओर से चीख-चीख कर कहा जा रहा था कि वह किसी शर्त पर कांग्रेस के साथ नहीं रहना चाहते। उससे पहले कोरोना की आड़ में विधानसभा की बैठक 26 तक के लिए स्थगित कर दी थी। अब जबकि कोर्ट का डंडा पड़ा तो सदन में बहुमत साबित करने या फिर वहां अपनी बात रखने की बजाय उन्होंने मीडिया से बात करना ज्यादा मुनासिब समझा।

स्पष्ट है कि उनका आत्मविश्वास कितना हिला हुआ था। कांग्रेस पहले कर्नाटक में इसी तरह सरकार गंवा चुकी है। अब मध्य प्रदेश में सरकार गई। सवाल यह है कि इसके लिए क्या सिर्फ कमलनाथ या सिद्धारमैया जिम्मेदार हैं या फिर केंद्रीय नेतृत्व को इसकी जिम्मेवारी लेनी चाहिए।

कांग्रेस नेतृत्व ने साधी चुप्पी

जाहिर है कि केंद्रीय नेतृत्व इससे बच नहीं सकता है। दरअसल नेतृत्व की कमजोरी के कारण ही कर्नाटक और अब मध्य प्रदेश की घटना हुई है। मध्य प्रदेश में जिस तरह कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने मिलकर ज्योतियादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को नाराज किया और अपने लोगों को पुरस्कृत किया तथा कांग्रेस नेतृत्व चुप्पी साधे बैठे रहा, उसी का नतीजा है।

कमल नाथ ने स्थिति को सुधारने की बजाए बिगाड़ा

क्या यह सच नहीं कि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि किसानों की समस्या हल नहीं हुई तो वह सड़क पर उतरेंगे। तो कमलनाथ ने स्थिति सुधारने की बजाय कहा था- 'वह चाहें तो सड़क पर उतर जाएं।' यह नेतृत्व की जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी धमक से राज्य मे संतुलन बनाए रखे। लेकिन यहां तो हालत यह है कि प्रदेश नेतृत्व के सामने वह बेबस है। पार्टी के अंदर कितना विरोधाभाष है इसका अंदाजा इसीसे लगाया जा सकता है कि पार्टी में बार बार युवा नेतृत्व की बात को उठती है लेकिन छत्तीसगढ़ को छोड़कर हर जगह उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है।

राजस्थान में पलटा गया फार्मूला

अगर मध्य प्रदेश में कमलनाथ को इस लिहाज से मुख्यमंत्री बनाया गया था कि वह प्रदेश अध्यक्ष थे तो राजस्थान में इस फार्मूले को क्यों पलट दिया गया। छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल अपने दमखम और दबाव के कारण ही मुख्यमंत्री बन सके वरना तो राहुल गांधी किसी और स्थापित करने की योजना बना रहे थे। क्या कांग्रेस नेतृत्व को इसका अहसास नहीं था कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ-दिग्विजय जोड़ी इकतरफा काम कर रही है? उन्हें इसका पता था कि 22 विधायकों के समर्थन वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को जानबूझ कर किनारे लगाया जा रहा है ताकि भविष्य मे भी कमलनाथ-दिग्विजय के पुत्र के हाथ मे कमान रहे। लेकिन नेतृत्व हाथ पर हाथ रखे बैठा रहा। राज्यसभा सीट की दावेदारी के लिए किस तरह दिग्विजय और कमलनाथ हाथ मिलाए हुए थे इसका नजारा बार बार दिखा। दिग्विजय तो बागी विधायकों से मिलने बंगलुरू तक पहुंच गए। वहां धक्का मुक्की भी हुई।

इस पूरे क्त्रम में कमलनाथ और दिग्विजय से ज्यादा कांग्रेस ने खोया है। कमलनाथ मुख्यमंत्री बनना चाहते थे वह बन गए। ज्योतियादित्य के भाजपा में जाने के बाद अब उनके पास अवसर है कि अपने पुत्रों को स्थापित करें। राजनीति में आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहेगा। लेकिन कांग्रेस अगर अब भी खुद के अंदर नहीं झांकी तो हाथ खाली ही रह जाएगा।


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