'भविष्य के भारत' में बोले मोहन भागवत, कहा- हम संघ का नहीं समाज का वर्चस्व चाहते हैं
उन्होंने कहा कि कुछ लोग समाज की विभिन्नता को खोजकर उसकी खाई को बढ़ाने के काम में जुटे हैं, ताकि उनका निहित स्वार्थ सिद्ध हो सके।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। समाज के विभिन्न वर्ग के बुद्धिजीवियों के बीच पहुंचे संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आगाह किया कि इस कार्यक्रम को राजनीति से न जोड़ा जाए। चर्चा भविष्य के भारत पर थी और इस नाते उन्होंने भारत के विषय में भी संघ की सोच रखी और संघ के विषय में राजनीतिज्ञों की सोच का जवाब भी दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग समाज की विभिन्नता को खोजकर उसकी खाई को बढ़ाने के काम में जुटे हैं, ताकि उनका निहित स्वार्थ सिद्ध हो सके। लेकिन समाज की विविधता में एकत्व की खोज का काम आरएसएस का है। उन्होंने आरएसएस की सोच और कार्यप्रणाली की भी झलक दी।
कार्यक्रम के शुरूआत में आरएसएस के उत्तर क्षेत्र के संघचालक बजरंग लाल ने साफ कर दिया कि संघ प्रमुख के पूरे साल का कार्यक्रम काफी पहले तय हो जाता है। इसीलिए विज्ञान भवन के इस कार्यक्रम का कोई और मतलब निकालना ठीक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि साल की शुरूआत में ही मोहन भागवत के दिल्ली प्रवास के लिए 17,18 और 19 सितंबर की तारीख तय हो गई थी और हर साल इसी तरह मोहन भागवत दिल्ली में प्रवास करते रहे हैं। इसीलिए इसके समय को लेकर कयास लगाने का कोई मतलब नहीं है। वैसे उन्होंने यह जरूर स्वीकार किया कि मोहन भागवत का इससे पहले दिल्ली में इतना बड़ा कार्यक्रम नहीं हुआ था, जिसमें विरोधी विचाराधारा के प्रबुद्ध जनों को भी सीधे संघ प्रमुख से संवाद स्थापित करने का मौका मिला है।
संघ से सहमत होना जरूरी नहीं
मोहन भागवत ने अपने संबोधन के शुरू में ही साफ कर दिया कि वे यहां लोगों को संघ की विचारधारा से सहमत कराने के लिए नहीं आए हैं। सहमत होना या नहीं होना आपका काम है। लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि इस कार्यक्रम के बाद वे संघ के बारे में किसी भी चर्चा में उसका आधिकारिक दृष्टिकोण भी सामने रखेंगे। मोहन भागवत ने साफ कर दिया कि संघ का एक मात्र उद्देश्य देश और समाज की सेवा करना और उसकी बेहतरी के लिए काम करना है और वह इस काम में लगे सभी लोगों का सम्मान करता है। आजकल वामपंथी पार्टियां और बुद्धिजीवी भले ही आरएसएस को पानी पी-पीकर गाली देते हों, लेकिन मोहन भागवत ने बताया कि किस तरह नागपुर से तत्कालीन वामपंथी नेता हेडगेवार के अच्छे मित्रों में शामिल थे और दोनों के बीच देश की मौजूद समस्याओं पर खुलकर विचार-विमर्श होता था।
मोहन भागवत के अनुसार संघ आजादी की आंदोलन में शामिल दलों और गुटों का समान रूप से सम्मान करता है। उन्होंने बताया कि किस तरह महात्मा गांधी के जेल जाने के बाद आयोजित कार्यक्रमों में हेडगेवार को वक्ता के रूप में बुलाया जाता था। यही नहीं, हेडगेवार के जेल के छूटकर आने के बाद सम्मान में आयोजित समारोह की अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की थी।
संघ का वर्चस्व नहीं चाहते
मोहन भागवत के अनुसार वे संघ का नहीं समाज का वर्चस्व चाहते हैं। देश का इतिहास और वर्तमान देश के लोगों से बनना चाहिए। उनके अनुसार समाज खुद इतना सशक्त और जागरूक हो जाए कि उसे संगठित करने लिए आरएसएस जैसे संगठन की जरूरत ही नहीं पड़े। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि देश में सूर्योदय होना चाहिए, फिर चाहे किसी भी मुर्गे की बांग से हो। । सूर्योदय सिर्फ हमारे मुर्गे के बांग देने से हो यह नहीं चाहते हैं। यही कारण है कि हमारे स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से देश की सेवा में लगे रहते हैं।
भेदभाव नहीं, संपूर्ण समाज के लिए काम
आरएसएस के क्रियाकलापों की जानकारी देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संघ संपूर्ण समाज को अपना मानकर काम करता है। भागवत ने कहा कि देश में हर जगह विविधता ही विविधता है। भाषा, जाति, धर्म, खान-पान किसी भी क्षेत्र को लेकर विविधता की भरमार है। लेकिन इन विविधता से डरने की जरूरत नहीं। उनका उत्सव मनाने की जरूरत है। अपनी मानो और दूसरे का सम्मान करो। भागवत के अनुसार कुछ लोग इन विविधता की आड़ में समाज और देश को बांटने की कोशिश में जुटे रहते हैं। लेकिन संघ विविधता में भी एकत्व ढूंढने का काम करता है। उन्होंने कहा कि हमारे समाज में मौजूद परस्पर विरोधी विचारों के मूल में भी जबरदस्त समानता है। इस के मूल में जियो और जीने दो की मूल भावना मौजूद है। हमारी संस्कृति का आचरण यही सिखाती है। यह हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत में रहने वाले इसाई और मुस्लिम परिवारों के भीतर भी यह भाव साफ देखा जा सकता है। भागवत ने साफ किया कि संघ की स्थापना के असली उद्देश्य हिंदू समाज को जोड़ना किसी के विरोध में नहीं था।
सबसे बड़ा लोकतांत्रिक संगठन
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा संघ की मुस्लिम ब्रदरहुड से तुलना या वामपंथियों के तानाशाही संगठन के आरोपों को खारिज करते हुए मोहन भागवत ने संघ को दुनिया की सबसे बड़ा लोकतांत्रिक संगठन बताया। उन्होंने इस आशंका को खारिज किया कि संघ में ऊपर दिये आदेश का पालन होता है। उनके अनुसार कुछ लोगों को संघ की शाखा और अनुशासन को देखकर यह आशंका हो सकता है। लेकिन हकीकत यह है कि संघ के सारे फैसले सामूहिक सहमति से लिए जाते हैं। संघ में विचारों के आदान-प्रदान और कार्यक्रम तय करने के लिए बैठकों की पुरानी परपंरा है। इन्हीं बैठकों में सभी लोग अपनी-अपनी बात खुलकर रखते हैं और फिर एक नतीजे पर पहुंच जाते हैं। लेकिन एक बार किसी नतीजे पर पहुंच जाने के बाद उस मानना सबकी जिम्मेदारी हो जाती है। उन्होंने बुद्धिजीवियों को आमंत्रित करते हुए कहा कि संघ के लोकतांत्रिक कार्यशैली के लिए समझने लिए उसके कार्यक्रमों में आना चाहिए।
मोहन भागवत ने यह भी साफ कर दिया कि संघ सिर्फ स्यवंसेवकों की गुरूदक्षिणा से चलता है और बाहरी व्यक्ति के दान को भी स्वीकार नहीं करता है। इस तरह यह पूरी तरह स्वावलंबी संगठन है और किसी पर निर्भर नहीं है।
तिरंगा का सम्मान
भगवा झंडे के प्रेम और तिरंगे के तिरस्कार के आरोपों को खारिज करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि संघ देश की आजादी से जुड़े सारे प्रतीकों का सम्मान करता है। तिरंगे के प्रति संघ के सम्मान का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया किस तरह से आजादी के पहले कांग्रेस के अधिवेशन में 80 फुट लंबे खंबे पर तिरंगा झंडा आधे में ही अटक गया था। उस अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। तब किशन सिंह राजपूत नाम के एक स्वयंसेवक ने खंबे पर चढ़कर तिरंगे का फहराया था। उनके अनुसार भगवा ध्वज को स्वयंसेवक अपना गुरू मानते हैं।