एससी-एसटी एक्ट पर नए मसौदे को जल्द संसद में पेश कर सकती है मोदी सरकार
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को संशोधित विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने मंत्रिमंडल के फैसले की पुष्टि की।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय जनता पार्टी ने अपने लोकसभा सांसदों को आज और कल के लिए तीन लाइन का व्हिप जारी किया। आज राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को संवैधानिक हैसियत प्रदान करने संबंधी विधेयक को सदन में पेश किया जा सकता है। एनसीबीसी वर्तमान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक सांविधिक संस्था है। उम्मीद जताई जा रही है कि एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दलित संगठनों और विपक्षी दलों के हमले झेल रही मोदी सरकार इस बिल के पुराने मसौदे को आज या कल संसद में पेश कर सकती है।
बता दें कि दलित संगठनों के साथ विपक्षी दल भी सुर मिलाकर 9 अगस्त को देशव्यापी आंदोलन में हिस्सा लेने का हुंकार भर रहे थे। एनडीए के घटक पार्टियों में लोजपा जैसी पार्टियों की भी भौहें तनी हुई थीं। इसके कई निहितार्थ भी निकाले जाने लगे थे। अब इस पर पानी फिर गया है। मोदी सरकार अब अध्यादेश की बजाय संशोधन के साथ पुराने कानून को लागू करने के लिए विधेयक ला रही है। जाहिर तौर पर इसके साथ ही सरकार ने 9 अगस्त के प्रस्तावित दलित आंदोलन का आधार भी खत्म कर दिया है।
संशोधन के बाद अधिनियम के अनुच्छेद 18 अब हो जाएगा 18ए
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को संशोधित विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने मंत्रिमंडल के फैसले की पुष्टि की है। संशोधन के बाद अधिनियम के अनुच्छेद 18 अब 18ए हो जाएगा, जिससे कानून के प्रावधान सख्त हो जाएंगे। यानी रपट दर्ज कराने से पहले प्राथमिक जांच कराने की जरूरत नहीं होगी। जैसा पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था। इस कानून के दायरे में आने वाले आरोपी की गिरफ्तारी के लिए किसी भी तरह के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
निष्क्रिय हो जाएंगे 438 के प्रावधान
तीसरा, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद धारा 438 के प्रावधान निष्कि्रय हो जाएंगें। इस धारा के तहत जांच कराने के बाद ही गिरफ्तारी हो सकती है। साथ ही दर्ज किए गए एफआईआर में गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत का प्रावधान है। संशोधन के बाद यह धारा ही समाप्त हो जाएगी। इस कानून को अनुसूचित जाति-जनजाति (उत्पीड़न निरोधक) संशोधित कानून-2018 कहा जाएगा।