मोदी-आबे के बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर मजबूत बनेगा रणनीतिक रिश्ता, 'टू प्लस टू' वार्ता 30 को
भारत और जापान के बीच पहली टू प्लस टू वार्ता इसी पखवाड़े 30 नवंबर को होने जा रही है।दोनों देशों के विदेश व रक्षा मंत्रियों की बैठक होगी जैसी भारत व अमेरिका के बीच होती है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पिछले साढ़े पांच वर्षो में भारत और जापान को रणनीतिक तौर पर एक दूसरे के बेहद करीब लाने की पीएम नरेंद्र मोदी और पीएम शिंजो आबे की कोशिशें जल्द ही एक अहम मुकाम पर पहुंचेंगी। दरअसल, दोनों देशों के बीच पहली टू प्लस टू वार्ता इसी पखवाड़े 30 नवंबर को होने जा रही है। दोनों देशों के विदेश व रक्षा मंत्रियों की अगुवाई वाली यह बैठक कुछ वैसी ही होगी जैसी भारत व अमेरिका के बीच होती है। चीन के बढ़ते प्रभाव की वजह से हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों में जिस तरह से नए समीकरण बन रहे हैं उसे देखते हुए भारत व जापान के बीच इस पनप रही बेहद गंभीर रणनीतिक रिश्तों की खास अहमियत होगी।
मोदी और आबे के बीच सालाना बैठक
मोदी और आबे के बीच पिछले साल हुई सालाना बैठक में यह फैसला किया गया था कि कूटनीतिक व रणनीतिक रिश्तों को और प्रगाढ़ बनाने के लिए दोनों देशों के विदेश व रक्षा मंत्रियों की एक खास ढांचे के तहत वार्ता होनी चाहिए। तब तक भारत व अमेरिका के बीच इस तरह की व्यवस्था हो चुकी थी।
पहली टू प्लस टू वार्ता की तिथि तय
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को बैंकाक में जापान के रक्षा मंत्री से मुलाकात की और उस दौरान ही पहली टू प्लस टू वार्ता की तिथि तय की गई। यह भी बताते चलें कि इस बैठक के कुछ ही दिनों बाद मोदी और आबे भारत जापान सालाना शीर्ष स्तरीय बैठक करेंगे। इन दोनों के बीच इस वर्ष होने वाली यह तीसरी बैठक होगी। बहरहाल, विदेश व रक्षा मंत्रियों के बीच होने वाली पहली बैठक का अहम उद्देश्य यह होगा कि वर्ष 2009 के बाद से ही रणनीतिक सामंजस्य को मजबूत बनाने को लेकर जो चर्चा हो रही है उसे किस तरह से ठोस रूप दिया जाए।
भारत व जापान के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग
सरकारी सूत्रों के मुताबिक भारत व जापान के बीच रक्षा क्षेत्र में बहुत ही व्यापक सहयोग की गुंजाइश है। दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग की शुरुआत तो हो गई है, लेकिन रक्षा उपकरणों के सौदों को लेकर अभी तक कोई खास वार्ता भी शुरु नहीं हुई है। दोनों देशों के बीच अभी तक के संबंध बहुत हद तक आर्थिक गतिविधियों तक सीमित है, लेकिन अब इन्हें बदलते वैश्विक माहौल के मुताबिक अपने रिश्तों में भी बदलाव करना होगा।
हिंद-प्रशांत सागर क्षेत्र में दीर्घकालिक नीति
पिछले वर्ष मोदी और आबे के बीच हुई बैठक में हिंद-प्रशांत सागर क्षेत्र में दीर्घकालिक नीति के तौर पर साथ करने की सहमति बनी थी। माना जा रहा है कि पहली टू प्लस टू वार्ता इस दीर्घकालिक नीति की रुपरेखा बनाने की शुरुआत करेगी। साथ ही दोनों देश मिल कर हिंद प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देशों को किस तरह से ढांचागत परियोजनाओं में मदद करें, इसकी रुप रेखा भी तैयार की जाएगी।
क्या-क्या होगा एजेंडे में
1. हिंद-प्रशांत सागर क्षेत्र में दीर्घकालिक नीति को तैयार करना
2. इस क्षेत्र के दूसरे देशों में ढांचागत विकास को संयुक्त तौर पर शुरु करना
3. संयुक्त तौर पर विकसित होने वाले रक्षा उपकरणों को चिन्हित करना
4. तीनों सेनाओं के बीच और करीबी सहयोग का ढांचा तैयार करना।