Move to Jagran APP

भीड़ की हिंसा पर चिंतित 49 हस्तियों ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, कहा- जय श्री राम के बदले मायने

लगातार हो रही ऐसी घटनाओं पर चिंता व्‍यक्‍त करते हुए फिल्‍म और अन्‍य जगत की 49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 24 Jul 2019 12:38 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jul 2019 01:17 PM (IST)
भीड़ की हिंसा पर चिंतित 49 हस्तियों ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, कहा- जय श्री राम के बदले मायने
भीड़ की हिंसा पर चिंतित 49 हस्तियों ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, कहा- जय श्री राम के बदले मायने

नई दिल्‍ली, एजेंसी। भीड़ की हिंसा पिछले कुछ समय से लोगों के साथ-साथ राज्‍य सरकारों के लिए भी चिंता विषय बना हुआ है। लगातार हो रही ऐसी घटनाओं पर चिंता व्‍यक्‍त करते हुए फिल्‍म और अन्‍य जगत की 49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पीएम मोदी को लिखे लेटर में रामचंद्र गुहा, अनुराग कश्यप, मणिरत्नम, अदूर गोपालकृष्णन, अपर्णा सेन और श्‍याम बेनेगल जैसी हस्तियों के हस्ताक्षर हैं। इन सभी लोकप्रिय लोगों ने पीएम मोदी से एक ऐसा माहौल बनाने की मांग की है, जहां असंतोष को दबाया नहीं जाए।

loksabha election banner

पीएम मोदी को लिखे गए इस पत्र में कहा गया कि अफसोस है कि 'जय श्री राम' आज एक भड़काऊ युद्ध बन गया है, राम बहुसंख्यक समुदाय के लिए पवित्र हैं, राम का नाम लेना बंद कर दें, अत्याचार की 840 घटनाएं दलित के खिलाफ हुईं। प्रिय प्रधानमंत्री, क्या कार्रवाई की गई है? पत्र में कहा गया है कि भीड़ की हिंसा में दोषी पाए जाने वाले लोगों पर सख्‍त से सख्‍त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि लोगों का सबक मिल सके। 

राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर का कहना है कि भीड़ की हिंसा के मामले जातीय और सांप्रदायिक उन्माद के कारण भी सामने आ रहे हैैं, लेकिन यह कहना कतई सही नहीं कि सिर्फ अल्पसंख्यक ऐसी हिंसा के निशाने पर हैं। इसका कोई तथ्यात्मक आधार भी नहीं है। देश भर से आ रही खबरों से यह साफ है कि लगभग हर समुदाय और वर्ग के लोग भीड़ की हिंसा के शिकार हो रहे हैं। इसका प्रमाण हाल की उन घटनाओं से मिलता है जो बीते दिनों में बिहार और झारखंड में घटीं। बिहार में तीन मवेशी चोर भीड़ के हाथों मारे गए और झारखंड में डायन होने के शक में चार लोग। राजनीतिक और अन्य कारणों से शोर एकतरफा जरूर हो रहा है।

सुरेंद्र किशोर बताते हैं कि भीड़ की हिंसा पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार कड़े कानून बनाने की तैयारी में है। यह जरूरी भी है, लेकिन आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार के बिना किसी कानून की सफलता सीमित ही रहेगी। जिस देश में औसतन सिर्फ 45 प्रतिशत आरोपितों को ही अदालतों से सजा मिल पाती हो वहां अपराधियों का मनोबल बढ़ना ही है। क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को सुधारने के लिए सर्वाधिक जरूरत इस बात की है कि सजाओं का प्रतिशत बढ़ाने के कारगर उपाय तत्काल किए जाएं। अमेरिका की 93 प्रतिशत और जापान की 98 प्रतिशत सजा दर को थोड़ी देर के लिए छोड़ भी दें तो अपने ही देश के विभिन्न राज्यों में सजा दर में भारी अंतर क्यों है? क्यों केरल में सजा दर 77 है तो बिहार और बंगाल में क्रमश: 10 और 11? क्या इन आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करके हमारे शासकों ने कोई सबक सीखने की कभी कोशिश की है? इसी देश की विभिन्न जांच एजेंसियों के मामलों में भी सजा दर में भारी अंतर है?


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.