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2019 का सियासी रणः एकजुटता के सहारे विपक्ष देगा देश को नए विकल्प का संदेश

भाजपा नेतृत्व गठबंधन की सरकार को मजबूर सरकार बताने का दुष्प्रचार करने में लग गया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 09 Dec 2018 08:10 PM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 06:46 AM (IST)
2019 का सियासी रणः एकजुटता के सहारे विपक्ष देगा देश को नए विकल्प का संदेश
2019 का सियासी रणः एकजुटता के सहारे विपक्ष देगा देश को नए विकल्प का संदेश

संजय मिश्र, नई दिल्ली। विपक्ष ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे आने से ठीक पहले ही 2019 के सियासी संग्राम के लिए गठबंधन की बिसात बिछाने की पहल शुरू कर दी है। एक्जिट पोल में इन राज्यों में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को बढ़त मिलने के संकेतों को विपक्षी खेमा लोकसभा चुनाव के लिए नई उम्मीद के रुप में देख रहा है। इसीलिए विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने से पहले ही विपक्षी एकता का दायरा बढ़ाने की रणनीति बनाई जा रही है। लोकसभा चुनाव में विपक्ष के भावी गठबंधन के स्वरुप की दशा-दिशा तय करने पर विपक्षी दलों की सोमवार को होने वाली बैठक इस लिहाज से बेहद अहम होगी।

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विपक्षी दलों की अहम बैठक आज

विपक्षी एकता के नये सूत्रधार के रुप में उभरे टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू तमाम क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को एक साथ लाने के इस प्रयास में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ करीब 20 दलों के नेताओं के शामिल होने की संभावना है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी, राजद के सबसे प्रमुख चेहरे तेजस्वी यादव, द्रमुक अध्यक्ष स्टालिन जैसे विपक्ष के अधिकांश बड़े चेहरे बैठक में आएंगे।

विपक्षी एकता के लिहाज से पहली बार आम आदमी पार्टी के प्रमुख दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का इस बैठक में शामिल होना रहेगा। आप के साथ कटु रिश्तों की वजह से कांग्रेस ने अब तक केजरीवाल को विपक्षी एकता के दायरे से बाहर रखा है। मगर चंद्रबाबू नायडू की मध्यस्थता की वजह से आप को विपक्षी खेमे का हिस्सा बनाने के लिए कांग्रेस राजी होती दिख रही है। केजरीवाल और दीदी की सोमवार को बैठक में मौजूदगी के सहारे जाहिर तौर पर विपक्षी एकता का दायरा व्यापक होने का संदेश दिया जाएगा।

विपक्षी दलों की इस बैठक में जहां करीब-करीब सभी दलों के दिग्गजों का शामिल होना तय है वहीं बसपा प्रमुख मायावती की मौजूदगी पर अभी संशय कायम है। हालांकि चंद्रबाबू माया को बैठक में बुलाने के लिए उनसे संवाद कर रहे हैं। अखिलेश यादव खुद बैठक में होंगे इसको लेकर भी तस्वीर साफ नहीं की गई है मगर सपा इसमें भाग लेगी। माया के बैठक में जाने की उम्मीद कम है मगर वे अपना प्रतिनिधि भेजेंगी विपक्ष को इसकी उम्मीद है।

भाजपा को 2019 में मजबूत विपक्षी घेरेबंदी के सहारे चुनौती देने का पुख्ता संदेश देने के लिए द्रमुक प्रमुख स्टालिन और लालू प्रसाद के बाद राजद के सबसे बड़े नेता तेजस्वी यादव पहले ही दिल्ली पहुंच चुके हैं। स्टालिन ने तो रविवार को सोनिया गांधी से मुलाकात कर उन्हें जन्म दिन की बधाई भी दी।

विपक्षी दलों की बैठक में जिन अहम नेताओं का शरीक होना तय है उसमें जद एस नेता पूर्व पीएम देवेगौडा, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, माकपा के सीताराम येचुरी, भाकपा के डी राजा, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, नेशनल कांफ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला, झामुमो के हेमंत सोरेन, जेवीएम नेता बाबूलाल मरांडी, रालोद नेता अजित सिंह आदि शामिल हैं।

विपक्षी एकता की बुनियाद मजबूत करने के लिए इस बैठक के दौरान संसद के शीत सत्र में मोदी सरकार को तमाम मोर्चो पर एकजुट होकर घेरने की रणनीति भी बनेगी। इसमें राफेल सौदे में गड़बड़ी, सीबीआई विवाद, विपक्षी नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों के दुरूपयोग जैसे मसले अहम होंगे।

विपक्षी दलों का मानना है कि चुनावी वादों की कसौटी पर एक ओर जहां मोदी सरकार खरा नहीं उतरी है वहीं विधानसभा चुनाव में भाजपा को झटका लगना तय है। ऐसे में भाजपा की इन दोहरी चुनौतियों पर विपक्षी एकजुटता का प्रहार लोकसभा चुनाव की तस्वीर बदल सकता है। इसीलिए विपक्ष के लिए एकजुट होकर 2019 का विकल्प देने का यही सबसे बेहतर मौका है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने इस बारे में कहा भी कि विपक्षी दलों की एकजुटता भाजपा का सियासी भय बढ़ाने लगी है। इसीलिए भाजपा नेतृत्व गठबंधन की सरकार को मजबूर सरकार बताने का दुष्प्रचार करने में लग गया है।

सिब्बल के मुताबिक गठबंधन पर भाजपा का यह रुख विरोधाभासी है क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में 24 पार्टियों की गठबंधन सरकार वह खुद चला चुकी है। इसी तरह मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने लगातार दस साल तक देश के विकास को चौतरफा छलांग दी।

गौरतलब है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार को जागरण फोरम की परिचर्चा के दौरान विपक्षी दलों की एकजुटता पर प्रहार करते हुए इनके साथ आने को विरोधाभासी बताया था। साथ ही शाह ने कहा था कि देश को मजबूर सरकार नहीं बल्कि मजबूत सरकार चाहिए। 


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