पवार और राउत से मुलाकात पर ममता ने कहा- दिलचस्प होगा 2019 लोकसभा चुनाव
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सोमवार को अपने चार दिवसीय प्रवास पर दिल्ली पहुंच गईं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में सपा और बसपा के अनौपचारिक गठबंधन के नतीजों से उत्साहित विपक्ष में 2019 के लिए एकजुटता की कवायद तेज हो गई है लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को दूर रखकर। तीसरे मोर्चे की तर्ज पर फेडरल फ्रंट की कोशिशें शुरू हो गई हैं। मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी लगभग आधा दर्जन क्षेत्रीय दलों के बीच नेतृत्व की कमान लेती दिखीं। वह खुद राकांपा नेता शरद पवार से मिलने गई तो संदेश यह देने की कोशिश हुई कि विपक्षी एकजुटता के बाद शायद पवार स्वीकार्य नेता के रूप में उभरें। लेकिन इस पूरे क्रम में कांग्रेस की चर्चा नहीं हुई।
ममता पहले ही साफ संकेत दे चुकी हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनसे पास आना होगा। संसदीय सत्र के दौरान यह अक्सर होता है कि ममता अपने दिल्ली दौरे में आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं। दूसरे दलों के नेताओं के साथ हर बार उनका मिलना होता है। इस बार भी हुआ लेकिन जोश कुछ ज्यादा था। संसद भवन के तृणमूल कार्यालय में उनसे आकर मिलने वालों में टीडीपी, वाइएसआर कांग्रेस, राजद, बीजद, टीआरएस आदि दलों के नेता शामिल थे। संसद के सेंट्रल हाल में शिवसेना के संजय राउत से भी उनकी मुलाकात हुई।
ध्यान रहे कि शिवसेना पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वह लोकसभा चुनाव अलग लड़ेगी। उससे पहले ममता पवार से जाकर मिलीं। ममता संभवत: बुधवार को भी दिल्ली में रुकेंगी और कुछ अन्य दलों के नेताओं से भी मुलाकात संभव है। बताते हैं कि वह भाजपा के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और पूर्व मंत्री अरुण शौरी से भी मिलेंगी। राकांपा सूत्रों के अनुसार पवार से मुलाकात में ममता ने उन्हें दूसरे विपक्षी दलों से भी बात करने का आग्रह किया है। लेकिन कांग्रेस को लेकर आशंकित है।
ममता को लगता है कि अगर कांग्रेस इस खेमे में होगी तो कई दल इसमें शामिल नहीं होंगे। मेल मुलाकात के बीच ममता ने भाजपा पर सीधा वार किया और कहा कि अब उनके बोरिया बिस्तर समेटने का वक्त आ गया है। उन्होंने विपक्षी दलों से अपील की कि राज्य में मौजूद शक्तिशाली दल की पीठ पर सबका हाथ होना चाहिए ताकि भाजपा को परास्त किया जा सके। सरकार के खिलाफ उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी को सबसे बड़ा हथियार बताया। हालांकि यह रोचक होगा कि वह आंध्र में टीडीपी और टीआरएस या फिर पश्चिम बंगाल में वाम दल को कैसे समझाएंगी कि एकजुट होकर चुनाव लड़ें और महत्व खुद को नहीं तृणमूल को दें।
माया-अखिलेश चाय पर बुलाएं:
एक सवाल के जवाब में ममता ने कहा कि सपा बसपा मिल जाए तो उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए कुछ नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि मायावती और अखिलेश को चाहिए कि सभी विपक्षी दलों को चर्चा के लिए उत्तर प्रदेश बुलाए शर्त इतनी है चाय पिलाएं। दरअसल, ममता समेत दूसरे सभी दलों को इसका अहसास है कि मुख्य लड़ाई उत्तर प्रदेश मे ही लड़ी जानी है और यहां फेडरल फ्रंट के लिए कवायद कर रहे दूसरे किसी भी दल का कोई अस्तित्व नहीं है।
कांग्रेस का संकट:फेडरल फ्रंट की कवायद से कांग्रेस संकट में होगी। एक तरफ जहां कांग्रेस से अलग हुए ममता और पवार जैसे नेता फिलहाल कांग्रेस में किसी को बड़े खेमे के नेतृत्व के लायक नहीं मानते हैं। वहीं ममता के सुझाए फार्मूले पर अगर कांग्रेस चले तो पंजा शायद खाली ही रह जाए। ममता का फार्मूला है कि राज्यों मे जो भी शक्तिशाली पार्टी हो उसे हर दल समर्थन करे। लोकसभा चुनाव के लिहाज से ऐसे सभी राज्यों में क्षेत्रीय दल कांग्रेस के मुकाबले मजबूत हैं जहां लोकसभा की ज्यादा सीटें है। यानी कांग्रेस के शामिल होने के बाद दबदबा क्षेत्रीय दलों का होगा दो शायद कांग्रेस को कभी मंजूर न हो।