जाकिर के प्रत्यर्पण से मलेशिया का इंकार करना, भारत के साथ संबंधों को करेगा खराब
भारत और मलेशिया के मध्य प्राचीन काल से करीबी संबंध रहे हैं। दोनों ही बहु-धर्मी और बहु-नस्लीय देश हैं तथा दोनों आतंकवाद से भी जूझ रहे हैं।
(महेंद्र वेद)। भारत और मलेशिया के मध्य प्राचीन काल से करीबी संबंध रहे हैं। दोनों ही बहु-धर्मी और बहु-नस्लीय देश हैं तथा दोनों आतंकवाद से भी जूझ रहे हैं। ऐसे में मलेशिया की ओर से विवादित इस्लामिक प्रचारक जाकिर नाइक के प्रत्यर्पण से इन्कार करने पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है। इससे दोनों देशों के संबंधों पर भी असर पड़ सकता है। गौरतलब है कि जाकिर नाइक उस वक्त से भारत में वांछित है, जब बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक कैफे में हुए आतंकी हमले के बाद पकड़े एक युवक ने यह खुलासा किया था कि वह नाइक के भाषणों से प्रेरित रहा है। कई देशों में जाकिर नाइक के आने पर रोक है, लेकिन सऊदी अरब जैसे कुछ देश उसकी आवभगत भी करते हैं और मलेशिया तो उसे अपनी स्थाई नागरिकता भी प्रदान कर चुका है।
जाकिर को सौंपने की मांग
भारत पिछले लगभग सात महीने से मलेशिया से वर्ष 2010 में दोनों के बीच हुई संधि के तहत जाकिर को सौंपने की मांग कर रहा है, लेकिन न तो बीते जून में सत्ता से बेदखल हुई नजीब रजाक की सरकार ने इस मांग को तवज्जो दी और न ही महातिर मोहम्मद का नया निजाम इस पर सकारात्मक रुख दर्शा रहा है। मलेशिया में पहले भी 22 साल शासन कर चुके महातिर की जड़ें भारत से जुड़ी हैं। उनके पूर्वज तमिलनाडु के तंजावुर से पलायन कर वहां पहुंचे थे। लेकिन महातिर ने हमेशा अपने इस अतीत को छुपाने की कोशिश की ताकि वे खुद को वहां की बहुसंख्यक मलय आबादी के साथ बेहतर ढंग से जोड़ सकें।
जाकिर के प्रति मलेशिया का रवैया
में लगा था कि बीते चुनाव में 21 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोगों के अधिसंख्य हिस्से के वोट हासिल करने वाले महातिर 93 साल की इस उम्र में अब भारत के प्रति अपनी उदासीनता को त्यागेंगे। लेकिन हम गलत थे। हालांकि नाइक के सदंर्भ में उनके गृह मंत्री ने यह जरूर कहा कि कानून के दायरे से कोई नहीं बच सकता, लेकिन फिर ऐसी खबरें भी आईं कि महातिर ने नाइक से एक संक्षिप्त मुलाकात की और अब वे कह रहे हैं कि जब तक नाइक को मलेशिया के किसी कानून का उल्लंघन करता नहीं पाया जाता, वे उसे भारत के हवाले नहीं करेंगे। ऐसे में प्रमुख सवाल यही है कि प्रत्यर्पण संधि का क्या हुआ? जाहिर तौर पर यह मामला भारत से भागे एक ऐसे शख्स से जुड़ा है, जिसकी गतिविधियां हालिया अतीत में खुद मलेशिया में भी चिंता का सबब रही हैं। लेकिन पहले पूर्ववर्ती नजीब रजाक सरकार ने सियासी तकाजों के चलते इस मसले पर अपना रुख बदल लिया और अब महातिर सरकार भी ऐसा ही कर रही है।
पाम ऑयल के आयात में कटौती
अतीत में भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल के आयात में कटौती करते हुए नाराजगी का संदेश भी भेजा, लेकिन आज मलेशिया प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से ज्यादा समृद्ध है और भारत मलेशियाई पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है। ऐसे में यह देखना अभी बाकी है कि इस ताजा इन्कार को लेकर भारत कैसी प्रतिक्रिया देता है और महातिर इस मामले पर कैसे आगे बढ़ते हैं। गौरतलब है कि मलेशिया में राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। मलेशिया के एक प्रमुख प्रांत पेनांग के उपमुख्यमंत्री पलानीसामी रामासामी भारतीय मूल के हैं और उनकी डेमोक्रेटिक एक्शन पार्टी (डीएपी) नए गठबंधन का हिस्सा है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से महातिर से कानून के शासन का सम्मान करने और भारत के साथ हुई प्रत्यर्पण संधि का मान रखने की अपील की है।
मलेशिया और भारत की संधि
मासामी ने कहा-तनिक विचार करें कि यदि (वांटेड अरबपति फायनेंसर) झो लो भारत में होता तो क्या मलेशिया द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि के आधार पर उसे वापस मांगने में दिलचस्पी नहीं लेता? हमारे व भारत के मध्य जो प्रत्यर्पण संधि हुई है, उसका हमें सम्मान करना चाहिए। आखिर हम क्यों एक अपराधी को संरक्षण दे रहे हैं? उसे वापस भारत जाने दें, जहां उस पर मुकदमा चले और वह अदालत में अपना बचाव करे और निदरेष साबित होने के बाद वह चाहे तो एक मलेशियाई नागरिक बनने के लिए वापस लौट सकता है। मलेशिया दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत से कुछ दूरी पर स्थित एक देश है, जिसके साथ भारत के संबंध ठीक ही हैं। लेकिन भारत के आस-पड़ोस में क्या हो रहा है? स्पष्ट तौर पर कहें तो तकरीबन सभी पड़ोसी देशों से भारत के संबंध तनावपूर्ण भले ही न हों, लेकिन इनमें ठंडापन तो जरूर आ गया है।
इन देशों का भारत के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर
समें एक अपवाद छोटा-सा देश भूटान है और दूसरा है बांग्लादेश, जिसकी प्रधानमंत्री शेख हसीना के दिल में भारत के लिए हमेशा से एक सॉफ्ट कॉर्नर रहा है, क्योंकि इसने उनके मुल्क की आजादी में खास मदद की थी। हमारा एक बड़ा पड़ोसी देश है चीन, जिसके साथ हमारे रिश्ते इस बात पर निर्भर करते हैं कि सीमा पर हालात कैसे हैं। चीन से रिश्तों में डर भी है और अविश्वास भी। दोनों देशों द्वारा सदेच्छाएं जाहिर करने के बावजूद सीमा विवाद निकट भविष्य में सुलझता नजर नहीं आता। भारत-पाकिस्तान के रिश्ते के बारे में जितना कम कहा जाए, उतना बेहतर। पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की कोशिशें सार्क के अलावा कहीं और फलीभूत नहीं हुईं, क्योंकि पाक पर चीन का हाथ है। नेपाल भी अब चीन की ओर झुक रहा है।
चीन के जाल में पड़ोसी
श्रीलंका भी चीनी परियोजनाओं और फंड के प्रलोभन में फंसते हुए हुए भारत के साथ अपने संबंधों को नए सिरे से संतुलित करने में लगा है। यह सही है कि चीनी ड्रैगन पूरी दुनिया में ताकतवर हुआ है, लेकिन इसकी मौजूदगी समूचे एशिया में काफी बढ़ गई है। दक्षिण एशिया में भारत का सदियों से जो वर्चस्व था, वह अब खोता नजर आ रहा है। आखिर इससे हम क्या समङों कि मालदीव जैसा देश भी हमें हिदायत दे रहा है कि हम उसके मामलों में दखलंदाजी न करें। इस बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए भारत को खासकर पड़ोसी देशों के संदर्भ में अपनी कूटनीति को नए सिरे से तय करना होगा। छोटे पड़ोसी देशों के साथ हमारे संबंधों में ठंडापन क्यों आ गया, इसके लिए अपने इस या उस राजनेता अथवा इस या उस सरकार को दोष देना ठीक नहीं है। यह एक राष्ट्रीय चुनौती है कि वैश्विक मंच पर कैसे हम अपनी धमक बरकरार रखें।
(लेखक विदेश संबंधी मामलों के जानकार हैं)