मुंबई, पीटीआइ/जेएनएन। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के बागी तेवरों से महाराष्ट्र में मची खींचतान ने पूरे देश के सियासी माहौल को गरमा दिया है। यही नहीं शिवसेना सांसद संजय राउत के ताजा बयान ने भी इस सियासी सरगर्मी में आग में घी डालने का काम किया है। संजय राउत ने कहा कि यदि असम में डेरा डालने वाले बागी विधायकों का समूह 24 घंटे में मुंबई लौटता है और उद्धव ठाकरे से चर्चा करता है तो शिवसेना महा विकास आघाड़ी की सरकार छोड़ने के लिए भी तैयार है। इस बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं...
शक्ति परीक्षण के मिल रहे संकेत
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल द्वारा बागी नेता एकनाथ शिंदे के स्थान पर अजय चौधरी को सदन में शिवसेना विधायक दल के नेता के रूप में नियुक्ति को मंजूरी दिए जाने के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन जल्द शक्ति परीक्षण के माध्यम से अपना बहुमत साबित करने पर जोर दे सकता है।
लाया जा सकता है अविश्वास प्रस्ताव
महाराष्ट्र के पूर्व महाधिवक्ता श्रीहरि अने ने कहा कि शिंदे की अगुआई में बागी विधायकों का समूह कह सकता है कि वह वर्तमान महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार का समर्थन नहीं करता और वर्तमान सरकार बहुमत खो बैठी है। इसके परिणामस्वरूप अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने कहा, 'विधानसभा उपाध्यक्ष द्वारा शिंदे के स्थान पर चौधरी को समूह के नेता के रूप में नियुक्ति को मंजूरी देने का मतलब हो सकता है कि अविश्वास प्रस्ताव एवं मत-विभाजन की प्रक्रिया शीघ्र हो।'
तब शक्ति परीक्षण ही विकल्प
शिवसेना नीत एमवीए सरकार (शिवसेना, कांग्रेस एवं राकांपा की गठबंधन सरकार) कह सकती है कि उसके पास अपना बहुमत है और वह विश्वास प्रस्ताव पेश का आह्वान कर सकती है। अने ने कहा कि शक्ति परीक्षण की प्रक्रिया तब शुरू होगी जब यह पूरी तरह स्थापित हो जाएगा कि बागी समूह के पास जरूरी संख्या बल है। जब यह स्थापित हो जाएगा तब उससे संकेत मिलेगा कि एमवीए बहुमत खो बैठा है। बागी समूह भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकता है जिसके बाद राज्यपाल शक्ति परीक्षण के लिए कह सकते हैं।'
असली शिवसेना कौन..?
अने ने कहा कि असली शिवसेना कौन है और तीर-धुनष के निशान का दावेदार कौन है, इसका फैसला चुनाव आयोग द्वारा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, 'आयोग तो बस किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण करता है एवं उसे चुनाव चिह्न आवंटित करता है।' उन्होंने कहा, शिंदे कह चुके हैं कि वही असली शिवसेना की अगुआई करते हैं और वह पार्टी के चुनाव चिह्न पर दावा करने वाले हैं जिसका उद्धव ठाकरे के खेमे द्वारा विरोध किया जाएगा।
अयोग्यता से बचने का रास्ता
अने ने कहा कि अयोग्यता से बचने के लिए राजनीतिक दल के दो तिहाई विधायकों को अलग होना चाहिए, न कि मूल पार्टी में यह टूट होनी चाहिए क्योंकि उसकी सदस्यता लाखों में होती है और इस विभाजन को तय करना कठिन काम है। वहीं संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप कहते हैं कि यदि शिवसेना के अधिकांश सदस्य यदि एकनाथ शिंदे के साथ हैं तो वह नए दल बनाकर भी सत्ता में आ सकते हैं।
बहुमत के लिए 145 का आंकड़ा जरूरी
एमवीए में शिवसेना के 55, राकांपा के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं। राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में सामान्य बहुमत के लिए 145 का आंकड़ा जरूरी है। भाजपा के पास अपने 106 विधायक हैं और उसे राज ठाकरे की अगुआई वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, स्वाभिमानी पक्ष व राष्ट्रीय समाज पक्ष के एक-एक विधायक एवं छह निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इस प्रकार सदन में उसके पास सहयोगियों को मिलाकर कुल 116 विधायक हैं।
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