दलित एजेंडे पर आगे दिखने की कवायद में लोजपा, कहा-मुद्दों के आधार पर भाजपा को समर्थन
चिराग पासवान ने कहा कि वह टीडीपी की तरह राजग छोड़ने नहीं बल्कि अंदर रहकर ही लड़ाई लड़ने में विश्वास रखते हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। 2019 चुनाव से पहले राजग के सहयोगी दल भी अपना अपना एजेंडा बढ़ाने में जुट गए हैं। कुछ इसी प्रयास में लोजपा ने एससी एसटी एक्ट में बदलाव के अध्यादेश लाने की डेडलाइन दे दी। लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष व सांसद चिराग पासवान ने कहा कि 10 अगस्त को दलितों का प्रदर्शन है जो अप्रैल के प्रदर्शन से भी ज्यादा बड़ा हो सकता है। उससे पहले पहले सरकार को अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त कर देना चाहिए ताकि एससी एसटी एक्ट अपने पुराने स्वरूप में लागू हो जाए। वहीं यह फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल को भी एनजीटी के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की।
पिछले एक सप्ताह में लोजपा की ओर से बार-बार यह मांग दोहराई जा रही है। खुद केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान भी इसका इजहार कर चुके हैं।
शुक्रवार को चिराग थोड़े ज्यादा आक्रामक भी दिखे और इशारों इशारों में कुछ संदेश भी देते दिखे। उन्होंने कहा- 'भाजपा को समर्थन मुद्दों के आधार पर दिया था। हम इसलिए भाजपा के साथ आए क्योंकि दलितों का विकास हो सकता था।' हालांकि दूसरे ही पल उन्होंने यह भी साफ किया कि वह टीडीपी की तरह राजग छोड़ने नहीं बल्कि अंदर रहकर ही लड़ाई लड़ने में विश्वास रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में उन्होंने पूरा विश्र्वास भी जताया और कहा कि उन्हें आश्वासन मिला है कि सरकार दलितों को न्याय दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
पर एससी एसटी एक्ट को लेकर चार महीनों से जंग चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार पुलिस एससी एसटी एक्ट का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज नहीं कर रही है। क्योंकि एफआइआर से पहले जांच की बात कही गई है। इसके खिलाफ 10 अगस्त को दलितों का भारत बंद का आहान है। लोजपा की दलित सेना भी इसमें हिस्सा लेगी।
यह पूछे जाने पर कि अगर 9 अगस्त तक उनकी मांगें नहीं मानी जाती है तब क्या उनकी पार्टी राजग से अलग हो सकती है? उन्होंने सीधा जवाब देने से बचते हुए कहा कि समय आने पर फैसला लिया जाएगा।
ध्यान रहे कि लोक जनशक्ति पार्टी के पास लोकसभा की 6 सीटें हैं। वही नीतीश कुमार के दोबारा भाजपा के साथ आने के बाद हालात बदले हैं और माना जा रहा है कि सीटों के बंटवारे मे भाजपा के साथ साथ दूसरे सहयोगी दलों को कुछ सीट छोड़ना पड़ सकता है। ऐसे में हर दल दांव पेंच में जुटा है।