Move to Jagran APP

चार खेमों में बंटी देवीलाल की विरासत, हरियाणा के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की यह कहानी

2009 में प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता के दौरान इनेलो का गृह क्षेत्र डबवाली ही परिवार की जंग का मैदान बन गया।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 09:55 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 07:53 AM (IST)
चार खेमों में बंटी देवीलाल की विरासत, हरियाणा के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की यह कहानी
चार खेमों में बंटी देवीलाल की विरासत, हरियाणा के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की यह कहानी

नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय राजनीति में किंगमेकर शब्द तब तक नया था जब तक कि देवीलाल के उदय को देश ने नहीं देखा था। हरियाणा की राजनीति में देवीलाल के असर को समझना हो तो सिर्फ उन रैलियों को याद किया जा सकता है जो पिछली सदी के नौवें दशक में पहले जनता दल और फिर इंडियन नेशनल लोकदल के बैनर के तले की जाती थीं। एक समय था जब बहुमत से संसदीय दल का नेता चुन लिए जाने के बावजूद देवीलाल ने अपनी जगह विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया था, लेकिन आज उनके परिवार में विरासत की जंग चल रही है और यह चार खेमों में बंटी दिखाई दे रही है।

loksabha election banner

 

हरियाणा के सिरसा जिले से ताल्लुक रखने वाले देवीलाल ने राष्ट्रीय राजनीति में ऐसा सिक्का जमाया कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं। यह देवीलाल ही थे जिन्होंने 1987 में हरियाणा विधानसभा के चुनाव में 90 में से 85 सीटें हासिल कर कांग्रेस को महज पांच सीटों पर ला दिया था। उनकी इस कामयाबी के बाद ही यह रूपरेखा बनने लगी थी कि देवीलाल केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस विरोधी मोर्चे का चेहरा हो सकते हैं।

देश के उपप्रधानमंत्री और हरियाणा के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके देवीलाल के उत्तराधिकारी हर साल उनका जन्मदिन सम्मान दिवस के रूप में मनाते हैं। इस बार रैली का आयोजन जाटलैंड माने जाने वाले सोनीपत जिले के गोहाना में हुआ। देवीलाल के उत्तराधिकारी अपने-अपने राजनीतिक वर्चस्व को स्थापित करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। कहा जाता है कि देवीलाल यथास्थिति में बदलाव को महत्व देते थे। मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश और लालू प्रसाद को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका थी। उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की विरासत के संघर्ष में 1989 में अजित सिंह और मुलायम सिंह आमने-सामने खड़े हो गए थे, लेकिन देवीलाल ने अपना समर्थन मुलायम को दिया और इससे उनकी राह आसान हो गई। लालू यादव के पास जनता दल के विधायकों का समर्थन नहीं था, लेकिन देवीलाल उनको चाहते थे।

हरियाणा में भी उन्होंने अलग-अलग अवसरों पर दूसरों को आगे किया। हरियाणा के गठन से पहले दस साल तक सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने वाले देवीलाल ने कभी भगवत दयाल को तो कभी वीरेंद्र सिंह को आगे किया। बंसीलाल को पहली बार राज्य सभा भेजने से लेकर मुख्यमंत्री बनाने में भी उनके योगदान की चर्चा राजनीतिक गलियारों में रहती है।

राजनीति के जानकार कहते हैं कि देवीलाल के परिवार के लोग उनकी विरासत को अच्छी तरह से पोषित नहीं कर पाए। हरियाणा के चार बार मुख्यमंत्री रह चुके उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला, जगदीश चौटाला और रणजीत सिंह में हमेशा टकराव रहा। बाद में अगली पीढ़ी में भी टकराव की खबरें आती रहीं।

ओमप्रकाश चौटाला और अजय सिंह चौटाला के जेल जाने के बाद जिस तरह से हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला ने पार्टी को संभाला उसे लेकर माना जाने लगा था कि अब सब कुछ पटरी पर आ रहा है, मगर अजय सिंह चौटाला के हिसार से सांसद बेटे दुष्यंत चौटाला की बढ़ती सक्रियता कहीं न कहीं देवीलाल की विरासत को हासिल करने के लिए संघर्ष व जिद्दोजहद की कहानी बयान कर रही है।

देवीलाल का परिवार फिलहाल चार खेमों में बंटा हुआ है। जगदीश चौटाला के बेटे आदित्य ने हाल ही में सिरसा जिले के डबवाली में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की रैली कराई है। अभय चौटाला ने एसवाईएल नहर निर्माण के मुद्दे पर सरकार की घेरेबंदी की, लेकिन कांग्रेस विधायक करण सिंह दलाल के साथ विधानसभा में हुए जूता प्रकरण के कारण उन पर सवाल उठने लगे हैं। इसके विपरीत दुष्यंत चौटाला ने अपने पिता के जननायक सेवादल को सक्रिय बनाकर साफ संकेत दे दिया है कि भविष्य की राजनीति पर उनकी भी उतनी ही निगाह है जितनी अभय चौटाला और उनके बेटों की है।

हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार के सदस्यों के बीच खींचतान का ही नतीजा है कि परिवार के सदस्यों का चुनाव में आमना-सामना हो चुका है। देवीलाल के परिवार में विरासत की जंग की शुरुआत 2000 में हुई थी। रोड़ी विधानसभा क्षेत्र से ओमप्रकाश चौटाला ने कांग्रेस प्रत्याशी अपने छोटे भाई रणजीत सिंह को हराया था।

2009 में प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता के दौरान इनेलो का गृह क्षेत्र डबवाली ही परिवार की जंग का मैदान बन गया। देवीलाल परिवार के तीन सदस्यों ने एक साथ चुनाव में ताल ठोंकी।

कांग्रेस की ओर से डॉ. केवी सिंह मैदान में उतरे थे। इनेलो की ओर से देवीलाल के पौत्र अजय सिंह चौटाला खड़े हुए। कांग्रेस की ओर से टिकट न मिलने से बागी हुए पूर्व उपप्रधानमंत्री के पौत्र रवि चौटाला (प्रताप सिंह चौटाला के बेटे) ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा। अपने चचेरे भाई तथा चाचा को हराकर अजय सिंह विजयी बने। बात यहीं खत्म नहीं हुई। जेबीटी भर्ती घोटाले में सजा काट रहे अजय सिंह चौटाला की पत्नी नैना सिंह चौटाला ने 2014 में राजनीति में कदम रखा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.