सीजेआई के खिलाफ महाभियोग को लेकर वेंकैया के फैसले पर कानूनविदों की मिली-जुली राय
जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग नोटिस को अस्वीकार करने के फैसले पर नामी वकीलों और पूर्व न्यायाधीशों की राय बंटी हुई है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग नोटिस को अस्वीकार करने के फैसले पर नामी वकीलों और पूर्व न्यायाधीशों की राय बंटी हुई है। इस नोटिस को सोमवार को राज्यसभा के सभापति की हैसियत से उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने अस्वीकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पीबी सावंत और दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसएन धींगरा ने नायडू के फैसले को उचित बताया है। उन्होंने कहा है कि उप राष्ट्रपति ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ नोटिस को राजनीति से प्रेरित और बिना साक्ष्य वाला पाया। जबकि कांग्रेस के सांसद व वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने नायडू के फैसले को गलत करार दिया है।
- जस्टिस सावंत और जस्टिस धींगरा बोले, सही है नायडू का निर्णय
- तुलसी और भूषण ने फैसले को असंवैधानिक बताया
देश के वरिष्ठ अधिवक्ता सोली सोराबजी और फली नरीमन को भी वेंकैया नायडू के फैसले में गलती नहीं लगती। उन्होंने कहा है कि नोटिस में महाभियोग चलाने के लिए पर्याप्त वजन नहीं था। नरीमन ने कहा, महाभियोग के नोटिस पर फैसला लेने के लिए राज्यसभा के सभापति ही संविधान द्वारा अधिकृत प्राधिकारी हैं। इस पर कोर्ट में फैसला नहीं हो सकता।
भाजपा नेता व वरिष्ठ अधिवक्ता अमन सिन्हा भी वेंकैया नायडू के फैसले के साथ खड़े हैं। जबकि अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने वेंकैया नायडू के फैसले को असंवैधानिक और राजनीतिक कारणों से लिया गया बताया है। लेकिन बार कौंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा ने उप राष्ट्रपति के फैसले को बिल्कुल सही करार दिया है। कहा, नायडू के फैसले से देश के संवेदनशील लोग प्रसन्न हुए हैं।