कानून मंत्री ने न्यायिक जवाबदेही के लिए अंदरूनी सुधारों पर दिया जोर
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सुप्रीम कोर्ट लॉन में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बोल रहे थे जहां प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अन्य गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी में राष्ट्र ध्वज फहराया
नई दिल्ली, प्रेट्र। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट समेत सभी अदालतों में अनुशासन, न्यायिक उपयुक्तता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अंदरूनी (इनहाउस) सुधारात्मक उपाय करने पर जोर दिया। उन्होंने जनहित याचिका पर टालमटोल का रवैया अपनाने के लिए कुछ हाई कोर्टो की आलोचना भी की।
रविशंकर प्रसाद सुप्रीम कोर्ट लॉन में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बोल रहे थे जहां प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अन्य गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी में राष्ट्र ध्वज फहराया। इन लोगों में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल भी मौजूद थे।
1980 के दशक की अपीलें अभी भी लंबित
रविशंकर ने कहा कि पुरानी अपीलों के निस्तारण के लिए फास्ट ट्रैक रुख होना चाहिए क्योंकि 1980 के दशक की फौजदारी और दीवानी अपीलें अभी भी हाई कोर्टो में लंबित हैं। उन्होंने कहा, 'कुछ राज्यों के हाई कोर्टो में जनहित याचिकाओं को इस तरह से रोककर रखा गया है जैसे वे अपने राज्य प्रशासन के समानांतर चल रहे हैं। क्या किया जाना चाहिए?'
पुरानी अपीलों के निस्तारण के लिए फास्ट ट्रैक रुख
उन्होंने कहा, 'मैं देखता हूं कि 1982/1983 की फौजदारी अपीलें अब भी हाई कोर्टो में लंबित हैं। मैं नाम नहीं लेना चाहता लेकिन वे हाई कोर्टो में लंबित हैं। 1977/1978 की दीवानी अपीलें अब भी लंबित हैं और यहां तक कि प्रथम अपीलें भी लंबित हैं। पुरानी अपीलों के निस्तारण के लिए फास्ट ट्रैक रुख होना चाहिए। 10 वर्ष पुराने मामलों को प्राथमिकता के आधार पर लें और उसके बाद पांच वर्ष पुराने मामलों पर आएं।'
कानून मंत्री ने कहा कि जिस तरह कुछ हाई कोर्टो द्वारा कुछ फैसले दिए गए वे 'मनमाने' थे। उन्होंने कहा, 'कुछ न्यायाधीश अपनी सेवानिवृत्ति से केवल दो दिन पहले संदिग्ध वैधता वाले फैसले देते हैं और उसे उचित ठहराने के लिए तीन दिन टेलीविजन पर बैठते हैं। मुझे नहीं लगता कि ऐसा होना चाहिए, एक मंच होना चाहिए।'
अटॉनी जनरल ने दिया 'कोर्ट ऑफ अपील' का सुझाव
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने भी फौजदारी एवं दीवानी अपीलों के लंबित रहने पर चिंता जताते हुए कहा कि देश के चारों क्षेत्रों (पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण) में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टो के बीच में 'कोर्ट ऑफ अपील' होने चाहिए। इन 'कोर्ट ऑफ अपील' में अलग जज होने चाहिए। ये जज हाई कोर्टो से प्रोन्नत कर लाए जा सकते हैं और इस प्रक्रिया के लिए सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की व्यवस्था आधार बन सकती है।
उन्होंने कहा, 'मैं कल सुप्रीम कोर्ट की वाद सूची देख रहा था, 30 दीवानी अपीलें थीं जो कि 2007 से लंबित हैं, जो लगभग 12 वर्ष का समय होता है। कल्पना कीजिए इतने ही मामले हाई कोर्टो और जिला अदालतों में लंबित हैं, संभव है नौ से 10 वर्षों से। हमें आज एक साहसी व्यक्ति की जरूरत है जो हमारे देश में अदालती प्रणाली की समस्याओं को दूर कर सके।'
अदालतों में अमर्यादित आचरण पर CJI ने जताया अफसोस
राष्ट्र ध्वज फहराने के के बाद प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका अमर्यादित आचरण के अभूतपूर्व तरीके से बढ़ते मामलों की गवाह बन रही है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि गरिमापूर्ण तरीके से होने वाली चर्चाओं और बहस की जगह अदालतों में मुखर आचरण अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि न्यायपालिका की गरिमा और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए ऐसे लोगों की तेजी से पहचान हो और इन्हें अलग-थलग किया जाए।