लालू, मुलायम और मायावती को भी तीर्थ पर पड़ेगी ब्राह्मण की जरूरत
लालू, मुलायम और मायावती जैसे नेताओं को भी तीर्थ पर ब्राह्मण की आवश्यकता पड़ेगी। समरसता के मुद्दे पर नेताओं को आड़े हाथ भी लिया।
उज्जैन, नईदुनिया। महाकाल के आंगन में देश के 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजन परंपरा पर आधारित शैव महोत्सव के मंच से शनिवार को महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विशोकानंदजी ने वर्ण व्यवस्था की हिमायत की। कहा कि यह वेद प्रतिपादित व्यवस्था है। लालू, मुलायम और मायावती जैसे नेताओं को भी तीर्थ पर ब्राह्मण की आवश्यकता पड़ेगी। समरसता के मुद्दे पर नेताओं को आड़े हाथ भी लिया। कहा, मंच से नेता समरसता की बात करते हैं। बाद में जाति के आधार पर आरक्षण देते हैं। यह कैसी समरसता है।
गौरतलब है कि इसी मंच से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समरसता की बात कर चुके हैं। शैव महोत्सव के दूसरे दिन महाकाल प्रवचन हॉल में प्रथम सत्र में कर्मकांड और पूजा विषय पर बोलते हुए विशोकानंदजी ने कहा कि 84 लाख योनि पार करने के बाद जीवात्मा की शुद्घिकरण के लिए मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। मनुष्य जीवन का विशेष परिमार्जन करने के लिए चार वर्ण बनाए गए हैं। इन चारों वर्णों में होकर ही व्यक्ति शुद्घ होता है और संन्यास में प्रतिष्ठित होता है। इसलिए समरसता का आशय सबको मिलाना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है जो जहां है उसे वहीं समृद्घ बनाना है।
कहा कि आरक्षण से यह व्यवस्था प्रभावित प्रतीत होती है। इसलिए, अगर आरक्षण देना है तो आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए, न कि जातिगत आधार पर क्योंकि जो नेता जिस जाति का होता है, उसकी हिमायत करता है। सत्र का विषय प्रवर्तन डॉ. रमण मिश्र ने किया। सारस्वत अतिथि प्रो. वीरू पाक्ष जे जड्डीपाल थे। अध्यक्षता डॉ. सदाशिव कुमार द्विवेदी ने की।
पंचामृत बनाने की प्रचलित विधि सही नहीं
महोत्सव के मंच से पहले सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. श्रीकिशोर मिश्र ने कहा कि शिवलिंग अभिषेक के लिए पंचामृत निर्माण का अपना शास्त्रीय विधान है। प्रचलित विधि से जो पंचामृत बनाया जा रहा है, वह उचित नहीं है। विधानपूर्वक बनाया गया पंचामृत ही फलकारी है। अप्रचलित विधि से बनाए गए पंचामृत से हानि भी हो सकती है।
इन विषयों पर हुए तीन सत्र
-कर्मकांड और पूजा विधान
-धर्मशास्त्र में शिव तत्व
-द्वादश ज्योतिर्लिगों का पौराणिक अर्चना विधान
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