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पीएम की पसंदीदा योजना का ये हाल तो बाकी का क्या होगा

बहुत कम सांसद हैं, जिन्होंने अपने निजी प्रयास से योजनाओं को लागू कराने में सफल हो सके हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 08:56 PM (IST)Updated: Thu, 23 Aug 2018 02:07 PM (IST)
पीएम की पसंदीदा योजना का ये हाल तो बाकी का क्या होगा
पीएम की पसंदीदा योजना का ये हाल तो बाकी का क्या होगा

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। अपने देश में सरकारी योजनाएं कैसे तालमेल के अभाव और कानूनी दावपेंच में उलझकर दम तोड़ देती है, आदर्श गांव योजना उसकी जीती-जागती मिसाल है। यह कोई सामान्य योजना नहीं है बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी का प्रिय प्रोजेक्ट है। अगर पीएम की पसंदीदा योजना का ये हाल है तो बाकियों का क्यो होगा, यह सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है।

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क्या है आदर्श गांव योजना
चार साल पहले लागू की गई इस योजना के तहत लोकसभा और राज्य सभा के सभी सांसदों को एक-एक गांव को गोद लेकर उन्हें आदर्श गांव के रूप में विकसित करना था।

पुरानी बोतल में नई शराब
दरअसल, सांसद आदर्श ग्राम को विकसित करने के लिए कोई अलग योजना नहीं है, बल्कि पहले से ही चल रही केंद्र व राज्य की योजनाओं को लागू कर उन्हें मॉडल गांव बनाना था। केंद्र व राज्य सरकार की ज्यादातर योजनाएं गांवों में पहले से ही चल रही हैं। लेकिन उनके अमल में होने वाले घालमेल को ठीक करने की चुनौती से जूझने के बजाय सांसदों ने योजना से ही किनारा करना मुनासिब समझा है। बहुत कम सांसद हैं, जिन्होंने अपने निजी प्रयास से योजनाओं को लागू कराने में सफल हो सके हैं।

तालमेल की कमी सबसे बड़ा रोड़ा
केंद्र व राज्यों की योजनाओं के बीच तालमेल का अभाव ही आदर्श ग्राम योजना की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बन गया। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर आदर्श गांव योजना के पहले चरण में ज्यादातर सांसदों ने आगे बढ़कर उत्साह दिखाया लेकिन जल्दी ही उनका उत्साह काफूर हो गया। गांवों का आदर्श बनाने में सांसदों की रुचि कम हो गई। नतीजा यह हुआ कि दूसरे व तीसरे चरण में गांवों को आदर्श बनाने की रफ्तार कम हो गई। विपक्ष के साथ राजग के सांसदों ने भी गांवों को गोद लेने से पल्ला झाड़ लिया है।

आठ सौ सांसदों में से 80 ने भी नहीं दिखाई दिलचस्पी
वैसे तो इसकी नैतिक जिम्मेदारी स्थानीय सांसदों की है, लेकिन सफलता असफलता पूरी तरह राज्यों की प्रशानिक इकाइयों पर डाल दिया गया है। सांसदों की मानें तो यही एक कारण है कि योजना के पहले चरण में उत्साह से गांवों का चयन करने वाले सांसदों ने दूसरे और तीसरे चरण में हाथ पीछे ही रखा। लोकसभा व राज्यसभा के ज्यादातर सदस्यों ने योजना से तौबा कर लिया। आठ सौ सांसदों में से दस फीसद ने भी दूसरे व तीसरे चरण में गांवों का चयन नहीं किया है।

कानूनी दावपेंच आ रहे आड़े
कहने को तो सांसद आदर्श गांव के विकास के लिए केंद्र की सवा दो सौ योजनाएं हैं, लेकिन कानूनी कानूनी पेंच और नियमों में खामियों के चलते उन्हें लागू करना आसान नहीं है। यद्यपि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपनी एक योजनाओं के नियमों में समुचित संशोधन किया है। लेकिन बात नहीं बन पाई। आदर्श गांवों के विकास के लिए जिला स्तर पर कमेटियां गठित की गई, लेकिन ऐसी बहुत सी कमेटियां दिखावटी ही रहीं।

नहीं सुलझी चुनौतियां 
- सांसद आदर्श गांव की आर्थिक, सामाजिक, मानवीय और वैयक्तिक विकास की योजनाएं शिथिल रहीं
- केंद्र की 223 योजनाओं के साथ राज्यों की 80 से अधिक योजनाएं लागू करने का प्रावधान हैं
- केंद्र व राज्य की योजनाओं के बीच तालमेल बनाने की अड़चनें
- ग्रामीण विकास और स्वच्छता व पेयजल मंत्रालय ने अपनी 14 योजनाओं के नियम-कानून में संशोधन किया है
- पीएमजीएसवाई की सड़कों को कानून में पर्याप्त संशोधन, ताकि सभी आदर्श गांवों को पक्की सड़कों से जोड़ने को प्राथमिकता दी जा सके
- सांसद आदर्श गांवों में डाकघर बनाने की योजना सिरे नहीं चढ़ी, नहीं खुले डाकघर
- गांवों के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने वाली योजनाएं भी कानूनी अड़ंगों के चलते लागू नहीं हो पाईं
- स्थानीय पंचायत और अन्य एजेंसियों के बीच तालमेल का सर्वथा अभाव योजना पर भारी पड़ा


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