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SC/ST कानून में बदलाव पर गुस्‍सा होने वाले जरा इस ओर भी जरूर ध्‍यान दें

अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून में सळ्प्रीम कोर्ट द्वारा किए गए संशोधन को केंद्र सरकार द्वारा निरस्त करने के बाद सवर्णो में आक्रोश है जिसका प्रदर्शन उन्होंने छह सितंबर को देशव्यापी बंद के जरिये किया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 08 Sep 2018 01:34 PM (IST)Updated: Sat, 08 Sep 2018 01:34 PM (IST)
SC/ST कानून में बदलाव पर गुस्‍सा होने वाले जरा इस ओर भी जरूर ध्‍यान दें
SC/ST कानून में बदलाव पर गुस्‍सा होने वाले जरा इस ओर भी जरूर ध्‍यान दें

अवधेश कुमार। इसे सवर्ण विरोध का नाम दिया जा रहा है। हालांकि विरोध प्रदर्शनों में अनेक जगह सवर्णो के साथ पिछड़ी जाति में शामिल लोग भी भागीदारी कर रहे हैं। वस्तुत: अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून में उच्चतम न्यायालय द्वारा किए गए संशोधन को निरस्त करने के विरुद्ध प्रदर्शन कई राज्यों तक विस्तारित हो गया है। यह स्थिति थोड़ी डरावनी है। जातीय आधार पर हो रहे आक्रोश प्रदर्शन की संभावित प्रतिक्रिया कुछ भी हो सकती है। यदि उच्चतम न्यायालय के फैसले को कायम रखा जाता तो मौजूदा विरोध प्रदर्शन नहीं होता। किंतु तब अनुसूचित जाति के नेता क्या करते जिन्होंने दो अप्रैल को उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरोध में ही बंद आयोजित किया था। उस बंद का कोई औचित्य नहीं था।

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संशोधन से असंतोष

अजा अजजा कानून पर सुप्रीम कोर्ट के संशोधन को खत्म करने के विरुद्ध एक बड़े वर्ग में असंतोष है। इस असंतोष का कुछ नेता या पार्टियां राजनीतिक उपयोग कर रही होंगी। किंतु इस आधार पर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।  न तो उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कानून को गलत ठहराया था और न केंद्र सरकार ने कोई नया कानून बना दिया है। न्यायालय ने तथ्यों के आधार पर यह मत व्यक्त किया कि इस कानून का व्यापक दुरुपयोग हो रहा है जिसे रोका जाना चाहिए।

दुरुपयोग रोकने के लिए बदलाव

न्यायालय ने दुरुपयोग रोकने के लिए इसमें थोड़ा बदलाव किया। पहला, किसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होते ही उसे गिरफ्तार नहीं किया जाए। डीएसपी स्तर के अधिकारी उस मामले की एक सप्ताह में जांच कर उसकी सच्चाई जानें। रिपोर्ट वो एसएसपी को दें जिसके आदेश पर गिरफ्तारी हो। दूसरा, मुदकमा देखने वाले मजिस्ट्रेट भी ये देखें कि वाकई जो आरोप लगाए गए हैं वे सच हो सकते हैं या नहीं। तीसरा, किसी अधिकारी या कर्मचारी पर इस कानून के तहत आरोप लगे हैं तो उसकी गिरफ्तारी के पूर्व नियुक्ति ऑथोरिटी की अनुमति लेनी होगी। और चौथा किसी कर्मचारी या अधिकारी को अग्रिम जमानत लेने का अधिकार होगा।

विरोधियों का सरकार पर हमला

निष्पक्ष तरीके से देखा जाए तो यह बदलाव कानून को ज्यादा न्यायासंगत और विवेकशील बनाने वाला था। विरोधी पार्टियों ने मोदी सरकार पर हमला आरंभ कर दिया कि उसने जानबूझकर न्यायालय में पक्ष ठीक से नहीं रखा क्योंकि यह अजा अजजा विरोधी है। जो जातियां इस समय गुस्से में हैं वे कुछ बातों का ध्यान रखें। पहला, उच्चतम न्यायालय के बदलाव को निरस्त करने वाला विधेयक सभी दलों की सहमति से संसद के दोनों सदनों में पारित हुआ। किसी एक दल को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। दूसरा, कानून लगभग वही है जो उच्चतम न्यायालय के फैसले के पूर्व था। इसमें ऐसा बड़ा बदलाव नहीं हुआ है जिससे यह पहले से ज्यादा कठोर हो गया हो। यानी यह न कोई नया कानून है न इसमें बड़े बदलाव किए गए हैं। यह केवल दुष्प्रचार है। निष्कर्ष यह कि कोई भी दल यदि विरोध करने वालों के साथ खड़ा होकर सहानुभूति जताता है तो वह झूठा और पाखंडी है।

कांग्रेस का आरोप

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि उनकी पार्टी में ब्राह्मण का खून है। यह लोगों को भड़काकर जातीय युद्ध कराने और उसका राजनीतिक लाभ लेने की शर्मनाक रणनीति है। यह बात अलग है कि मध्यप्रदेश में जगह-जगह विरोध करने वाले भाजपा एवं कांग्रेस दोनों का विरोध कर रहे हैं लेकिन हर जगह यह स्थिति नहीं है। यह सही है कि उच्चतम न्यायालय ने दुरुपयोग रोकने के लिए गिरफ्तारी और जमानत के संबंध में जो तार्किक बदलाव किया था उसे कायम रखा जाना चाहिए था। किंतु संसद ने उसे निरस्त कर दिया तो उससे बिल्कळ्ल नई स्थिति नहीं बनी है। न्यायालय को छोड़कर किसी के निर्णय का अहिंसक विरोध करने का अधिकार हर नागरिक को है। हां, यह देखना होगा कि हम जो विरोध कर रहे हैं उसका समाज पर कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ेगा।

शिवराज के सामने प्रदर्शन

मध्यप्रदेश की एक सभा में जिस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर चप्पल फेंके गए, उनकी गाड़ी पर पत्थर मारा गया वह बिल्‍कुल स्वीकार्य नहीं है। कई जगह शरीर के ऊपरी भाग से कपड़े उतारकर प्रदर्शन किए जा रहे हैं। कहीं-कहीं धमकी और भय पैदा करने की भाषा का भी इस्तेमाल हो रहा है। हम नहीं भूल सकते कि अनुसूचित जाति जनजाति में शामिल जातियों के साथ हमारे समाज में अत्याचार और अन्याय हुआ है। इसलिए उनके हक में बने कानून अभी रहेंगे। ठीक है कि समता से युक्त समाज का निर्माण केवल कानून से नहीं हो सकता। उस स्थिति में तो बिल्‍ुकल नहीं जब राजनीतिक दल वोट पाने के औजार के रूप में इसका इस्तेमाल कर रहे हों। यही हो रहा है।

गलत भाव का पैदा होना

वास्तव में अनुसूचित जाति जनजाति के साथ न्याय करने के नाम पर राजनीति ऐसी स्थिति पैदा करती जा रही है जिससे सवर्णो के बड़े वर्ग के अंदर यह भाव पैदा हुआ है कि अब हमारे साथ अन्याय हो रहा है। कानून कोई भी हो उसका दुरुपयोग होता है तो उसे रोकने का उपाय किया ही जाना चाहिए। एक स्वस्थ समाज कळ्छ अंतराल पर अन्याय दूर करने वाले कानूनों या उपायों की समीक्षा कर उसमें समयानुसार बदलाव करता रहता है। दुर्भाग्य से वोटों की छीनाझपटी की रणनीति ने हमारी राजनीति को इतना विवेकशून्य और दुर्बल बना दिया है कि वह ऐसा साहस करने को तैयार ही नहीं।

सभी का है दायित्‍व 

समाज में किसी प्रकार का टकराव और संघर्ष न हो, समाज एक रहे, शांति और व्यवस्था कायम रहे इसका ध्यान रखना सबका दायित्व है। संतोष की बात है कि अभी तक टकराव की स्थिति पैदा नहीं हुई है। यह कायम रहना चाहिए। विरोध से यह भाव भी पैदा नहीं होना चाहिए कि वाकई अभी भी अजा अजजा को लेकर कळ्छ जातियों के अंदर हीनता का भाव है। यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। विरोधी न तो राजनीतिक दलों के हाथों का खिलौना बन जाएं और न ऐसी स्थिति पैदा करें जिससे जातीय टकराव की किंचित भी संभावना पैदा हो। साथ ही विरोध उस सीमा तक न चला जाए जहां से वापस आने का भी कोई रास्ता न बचे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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